प्रयागराज : महिला जज को आपत्तिजनक संदेश भेजने वाले अधिवक्ता को अवमानना नोटिस जारी
प्रयागराज, अमृत विचार। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने हाल ही में एक वकील के खिलाफ कथित रूप से पीछा करने, आपत्तिजनक टिप्पणी करने, जातिसूचक शब्दों का इस्तेमाल करने और फेसबुक पर एक महिला न्यायिक अधिकारी के साथ दुर्व्यवहार करने के लिए उसके खिलाफ एक अवमानना नोटिस जारी करते हुए कहा कि उनके खिलाफ अवमानना कार्यवाही क्यों शुरू नहीं की जानी चाहिए?
हाईकोर्ट ने पिछले महीने न्यायिक अधिकारी द्वारा दाखिल याचिका को स्वीकार करते हुए रजिस्ट्री को यह निर्देश दिया था कि वह आपराधिक अवमानना का स्वत: संज्ञान लेने के लिए मामले को उपयुक्त पीठ के समक्ष रखें। न्यायमूर्ति अश्विनी कुमार मिश्रा और न्यायमूर्ति विनोद दिवाकर की खंडपीठ ने मामले को स्वत: संज्ञान में लिया और पाया कि अवमानना का कार्य प्रथम दृष्टया आपराधिक है।
गौरतलब है कि वकील अभय प्रताप महाराजगंज अदालत में प्रैक्टिस करता है और उसी जिले में पदस्थ एक सिविल जज/महिला न्यायिक अधिकारी को उनके फेसबुक अकाउंट पर आपत्तिजनक, परेशान करने वाले और अभद्र संदेश भेजे थे। महिला अधिकारी द्वारा अधिवक्ता को सोशल मीडिया पर ब्लॉक करने के बाद वह उनकी कोर्ट में आने लगा। वह उनकी कोर्ट में बैठकर उन्हें लगातार देखता रहता था।
कोई अन्य विकल्प न होने के कारण उन्होंने वकील के खिलाफ आईपीसी की विभिन्न धाराओं व आईटी एक्ट की धारा 67 के तहत शिकायत दर्ज की। मामले में अवमाननाकर्ता को निचली अदालत द्वारा दी गई जमानत को रद्द करने वाली एक अन्य बेंच द्वारा पारित आदेश का उल्लेख करते हुए अदालत ने कहा कि उसकी हरकतें प्रथम दृष्टया अदालत की अवमानना अधिनियम, 1971 की धारा 2 (सी) के तहत आपराधिक अवमानना की श्रेणी में आती है। मालूम हो कि हाईकोर्ट की एकल पीठ ने अधिवक्ता की जमानत रद्द करते हुए उसे निचली अदालत के समक्ष आत्मसमर्पण करने का आदेश दिया था और निचली अदालत को छह महीने के भीतर अवमानना कार्यवाही पूरी करने के निर्देश दिए गए थे।
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