एआई विनियमन

 एआई विनियमन

जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में कृत्रिम बुद्धि (एआई) का प्रवेश हालांकि अभी अपनी शुरुआती अवस्था में है लेकिन इसे लेकर भविष्य का खाका अभी से खींचा जाने लगा है। एआई ने तकनीकि प्रशासन के लिए तुरंत एक व्यापक और वैश्विक नज़रिया बनाने की ज़रूरत पैदा कर दी है क्योंकि इसके ज़रिए खतरनाक और बाधा डालने वाले औज़ार गढ़े जा सकते हैं, जिनसे हमारे अस्तित्व के लिए ही संकट पैदा होने का डर है।

कुछ लोग कृत्रिम बुद्धि के युद्धों में इस्तेमाल की आशंका को लेकर चिंतित हैं, तो कुछ इस बात से कि यह हमारी निजी जिंदगी तक में दखल देने लगेगा। निश्चित रूप से वैश्विक स्तर पर एआई और दूसरी उभरती तकनीकों के लिए बेहतर प्रशासनिक ढांचा बनाने की ज़रूरत है।

एआई के क्षेत्र में जैसे-जैसे आगे बढ़ेंगे, अनियंत्रित निर्णय प्रणाली को ले कर दुनियाभर में सरकारों के सामने इससे जुड़े अधिक संवेदनशील और जटिल नैतिक मुद्दे आएंगे। एआई को किस तरह विनियमित किया जाए और इसे कैसे जवाबदेह बनाया जाए, इस बात पर विमर्श आसान नहीं है।

महत्वपूर्ण है कि भारत की असाधारण प्रगति में सूचना प्रौद्योगिकी और डिजिटल अर्थव्यवस्था का बड़ा योगदान रहा है। संभावना है कि वर्ष 2028 तक भारत दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था होगा। आने वाला समय तकनीकी कूटनीति पर ध्यान केंद्रित करने का है। उभरती तकनीकों के मामले में भारत की राय बहुत अहम है।

दुनिया की निगाह इस पर लगी है कि भारत एआई के क्षेत्र में प्रगति को किस तरह बढ़ावा देता है और इसे कैसे नियंत्रित करता है। हाल ही में हिरोशिमा में हुए जी-7 शिखर सम्मेलन की परिचर्चाओं से भी संकेत मिलता है कि आज आज़ाद समाजों की स्थिरता दांव पर लगी है। एआई के नियमन के लिए एक साझा नज़रिया विकसित करना लोकतांत्रिक देशों के ही हित में होगा। 

पिछले दिनों इलेक्ट्रॉनिक्स और आईटी मंत्रालय ने संसद में कहा कि भारत सरकार देश में कृत्रिम बुद्धि के विकास को कानून लाने या विनियमित करने पर विचार नहीं कर रही है। विशेषज्ञों के मुताबिक सरकार को लग सकता है कि तेजी से प्रगति के बावजूद प्रौद्योगिकी अभी बहुत ही प्रारंभिक अवस्था में है और विनियमन समय की आवश्यकता नहीं है।

ऐसे में कड़े नियम लागू करने से नवाचार प्रभावित हो सकता है। उदाहरण के लिए यूरोपीय संघ द्वारा तैयार किए गए एआई अधिनियम को कई लोग बहुत कड़े रूप में देखते हैं। एआई को जल्दबाजी में विनियमित करने के बजाय भारत के लिए स्थिति का निरीक्षण करना और उसका आकलन करना समझ में आता है।