हल्द्वानी: उत्तराखंड का लोक पर्व हरेला...क्यों है खास, क्या है महत्व... जानने के लिए पढ़िए ये खबर

Amrit Vichar Network
Published By Bhupesh Kanaujia
On

हल्द्वानी, अमृत विचार। देवभूमि उत्तराखंड में  ऋतुओं के अनुसार कई पर्व मनाए जाते हैं उनमें से एक पर्व है हरेला... हरेला शब्द का तात्पर्य हरयाली से है, यह पर्व वर्ष में तीन बार आता है, पहला चैत मास में दूसरा श्रावण मास में और आखिरी बार आता है आश्विन मास में। 

चैत्र मास में प्रथम दिन बोया जाता है तथा नवमी को काटा जाता है। श्रावण मास में सावन लगने से नौ दिन पहले आषाढ़ में बोया जाता है और दस दिन बाद श्रावण के प्रथम दिन काटा जाता है। आश्विन मास में नवरात्र के पहले दिन बोया जाता है और दशहरा के दिन काटा जाता है। लोगों द्वारा श्रावण मास में पड़ने वाले हरेले को अधिक महत्व दिया जाता हैं क्योंकि श्रावण मास शंकर भगवान जी को विशेष प्रिय है। 

सावन लगने से नौ दिन पहले पांच या सात प्रकार के अनाज के बीज एक रिंगाल को छोटी टोकरी में मिटटी डाल के बोई जाती हैं इसे सूर्य की सीधी रोशनी से बचाया जाता है और प्रतिदिन सुबह पानी से सींचा जाता है। 9 वें दिन इनकी पाती की टहनी से गुड़ाई की जाती है और दसवें यानि कि हरेला के दिन इसे काटा जाता है। 

घर के बुजुर्ग सुबह पूजा-पाठ करके हरेले को देवताओं को चढ़ाते हैं उसके बाद घर के सभी सदस्यों को हरेला लगाया जाता है। हरेला चढ़ाते समय बड़े- बुजुर्गो द्वारा जी रया ,जागि रया ,यो दिन बार, भेटने रया,दुबक जस जड़ हैजो,पात जस पौल हैजो,स्यालक जस त्राण हैजो,हिमालय में ह्यू छन तक,गंगा में पाणी छन तक,हरेला त्यार मानते रया,जी रया जागी रया.

हरेला घर मे सुख, समृद्धि व शान्ति के लिए बोया और काटा जाता है। हरेला अच्छी फसल का सूचक है, हरेला इस कामना के साथ बोया जाता है कि इस साल फसलो को नुकसान ना हो।यह भी मान्यता है कि जिसका हरेला जितना बडा होगा उसे कृषि मे उतना ही फायदा होगा। वैसे तो हरेला घर-घर में बोया जाता है, लेकिन किसी-किसी गांव में हरेला पर्व को सामूहिक रुप से स्थानीय ग्राम देवता मंदिर में भी मनाया जाता है। 

गांव के लोग द्वारा मिलकर मंदिर में हरेला बोया जाता है। सावन का महीना हिन्दू धर्म में पवित्र महीनों में से एक माना जाता है। यह महिना भगवान शिव को समर्पित है। और भगवान शिव को यह महीना अत्यधिक पसंद भी है।

इसीलिए यह त्यौहार भी भगवान शिव परिवार को समर्पित है। श्रावण मास के हरेले में भगवान शिव परिवार की पूजा अर्चना की जाती है (शिव,माता पार्वती और भगवान गणेश) की मूर्तियां शुद्ध मिट्टी से बना कर उन्हें प्राकृतिक रंग से सजाया-संवारा जाता है जिन्हें स्थानीय भाषा में डिकारे कहां जाता है।

हरेले के दिन इन मूर्तियों की पूजा अर्चना हरेले से की जाती है। और इस पर्व को शिव पार्वती विवाह के रूप में भी मनाया जाता है। वहीं इस दिन घरों में पकवान मनाए जाते हैं और इन पकवानों को नाते-रिश्तेदारों और मित्रगणों के साथ साझा किया जाता है।

संबंधित समाचार