काशीपुर: जिले के ईंट भट्टे होंगे Zigzag प्रणाली से लैस
आईआईटी रुड़की ने तैयारी की है यह प्रणाली, प्रदूषण फ्री के साथ ही ईंटों के बर्निंग लाग में भी आएगी कमी
कुंदन बिष्ट, काशीपुर, अमृत विचार। जिले के ईंट भट्टे अब आईआईटी रुड़की द्वारा तैयार जिकजेक प्रणाली से लैस होंगे। अब तक जिले के 35 ईंट भट्टों ने इस प्रणाली को लगा लिया है। इससे न केवल प्रदूषण में कमी होगी। बल्कि, ईंट भट्टों की वर्निंग कॉस्ट भी कम आएगी, जिससे ईंट भट्टा संचालकों को फायदा होगा।
जिले के ईंट भट्टे अब तक नेचुरल ड्राफ्ट पर आधारित थे, जिससे प्रदूषण काफी मात्रा में हो रहा था। उत्तराखंड पर्यावरण संरक्षण एवं प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (पीसीबी) ने ईंट भट्टा संचालकों को आईआईटी रुड़की द्वारा तैयार की गई जिकजेक आधारित प्रणाली को अपनाने के निर्देश दिए थे। लेकिन, इसकी लागत अधिक आने पर ईंट भट्टा संचालक इसे लगाने में कतरा रहे थे। जब पीसीबी ने सख्ती की तो ईंट भट्टा संचालकों ने इस प्रणाली को लगाना शुरू कर दिया।
पीसीबी के क्षेत्रीय अधिकारी नरेश गोस्वामी ने बताया कि ईंट भट्टों के नेचुरल ड्राफ्ट पर आधारित होने से ईंटों को पकाने के लिए इसमें पहले प्लास्टिक, टायर, लकड़ी आदि का इस्तेमाल होता था। इससे प्रदूषण अधिक फैलता था। साथ ही ईंट भट्टा संचालकों को बर्निंग कास्ट अधिक लगती थी। लेकिन, जिकजेक प्रणाली के प्रयोग से प्रदूषण में काफी कमी आई है साथ ही ईंटों की क्वालिटी भी अच्छी हुई है। देवभूमि ईंट भट्टा वेलफेयर सोसायटी उत्तराखंड के जिलाध्यक्ष जगदीश कांबोज ने बताया कि नेचुरल ड्राफ्ट की तुलना में जिकजेक प्रणाली लगाने में दोगुनी लागत आती है।
जहां नेचुरल ड्राफ्ट में 25 लाख की लागत आती है तो वहीं जिकजेक प्रणाली अपनाने में 50 लाख तक की लागत आ जाती है। नेचुरल ड्राफ्ट में आठ लाख ईंट लगती है, जबकि जिकजेक प्रणाली अपनाने में 16 लाख ईंट लगानी पड़ जाती है। उन्होंने बताया कि जहां पहले चिमनी से कार्बन निकलने के चलते राख से श्रमिकों और ग्राहकों के कपड़े काले पड़ जाते थे। वहीं, जिकजेक प्रणाली से यह समस्या नहीं है। इस प्रणाली में बर्निंग लागत में कमी आने के साथ ही अव्वल ईंटों का प्रतिशत भी बढ़ गया है। बताया कि इस प्रणाली में कार्बन भट्टे के अंदर ही जल जाता है और ईंटों का गीलापन ही वाष्प के रूप में चिमनी से बाहर निकलता है।
जिकजेक प्रणाली से यह होंगे फायदे
-ईंट भट्टे होंगे प्रदूषण फ्री
-बर्निंग लागत में आएगी कमी
- ईंटों की क्वालिटी प्रतिशत बढ़ेगी
- ईंटों की क्वालिटी के साथ मिलेगा अच्छा दाम
जिकजेक प्रणाली लगाने में लागत अधिक है। लेकिन, इसके फायदे भी मिल रहे हैं। जिले में करीब 42 ईंट भट्टे हैं, जिसमें से 35 ईंट भट्टों ने यह प्रणाली अपना ली है। इस प्रणाली से ईंटों की क्वालिटी में बढ़ोत्तरी हुई है। जिससे दाम भी अच्छे मिल रहे हैं। खास बात यह है कि यह प्रणाली प्रदूषण फ्री है।
- जगदीश कांबोज, जिलाध्यक्ष, देवभूमि ईंट भट्टा वेलफेयर सोसायटी उत्तराखंड
ईंट भट्ठों के जिकजेक प्रणाली अपनाने की प्रक्रिया जिले में जारी है। आईआईटी रुड़की द्वारा इस प्रणाली को विकसित किया गया है। इसे लगाने से ईंट भट्टा संचालकों को फायदा हो रहा है। साथ ही ईंट भट्टो से होने वाले प्रदूषण में भी कमी आई है।
- नरेश गोस्वामी, क्षेत्रीय अधिकारी, पीसीबी, काशीपुर।
