FIDE World Cup Chess Tournament : प्रज्ञानानंदा के कोच ने कहा- भारत में शतरंज का मजबूत इको सिस्टम बनाने की जरूरत 

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Published By Bhawna
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नई दिल्ली।  फिडे विश्व कप में आर प्रज्ञानानंदा के ऐतिहासिक प्रदर्शन के बाद देश में शतरंज को मिली लोकप्रियता को क्षणिक बनाने से बचने के लिए उनके कोच आर बी रमेश कुमार ने देश में इस खेल का मजबूत बुनियादी ढांचा तैयार करने की अपील की है। प्रज्ञानानंदा अजरबैजान के बाकू में हुए फिडे विश्व कप फाइनल में दुनिया के नंबर एक खिलाड़ी मैग्नस कार्लसन से गुरुवार को टाइब्रेक में 1.5 - 0.5 से हार गए लेकिन फाइनल तक के सफर में उन्होंने कई दिग्गजों को हराया। इस प्रदर्शन के बाद उन्होंने कैंडिडेट्स टूर्नामेंट 2024 के लिये क्वालीफाई कर लिया और विश्वनाथन आनंद के बाद ऐसा करने वाले वह दूसरे भारतीय हैं।

रोमानिया के बुकारेस्ट से उनके कोच रमेश ने इंटरव्यू में कहा, प्रज्ञानानंदा की सफलता ने शतरंज को हर भारतीय की जुबां पर ला दिया है लेकिन यह देखा गया है कि जब कुछ अच्छा होता है तो हम शतरंज की बात करते हैं और फिर भूल जाते हैं। भारत में शतरंज का मजबूत इको सिस्टम नहीं है। उन्होंने कहा, हमारे पास दूर दराज गांवों में भी प्रतिभावान खिलाड़ी मौजूद हैं जिन्हें तलाशने और तराशने की जरूरत है। भारतीय खिलाड़ी निजी कोचों पर निर्भर रहते हैं और कई बार आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं होने पर प्रतिभाशाली होने के बावजूद वे खेल में आगे नहीं बढ पाते। इसके लिए अखिल भारतीय स्तर पर कोचिंग की व्यवस्था होनी चाहिए ताकि और खिलाड़ी आगे आ सकें। खुद एक ग्रैंडमास्टर रहे रमेश ने कहा कि भारत शतरंज में महाशक्ति बनकर उभर रहा है और अब समय आ गया है जब प्रज्ञानानंदा, अर्जुन एरिगेसी, डी गुकेश जैसे खिलाड़ियों को विश्वनाथन आनंद की विरासत संभालनी चाहिए। 

उन्होंने कहा, प्रज्ञानानंदा की जीत काफी महत्वपूर्ण है क्योंकि हर खेल के विकास के लिये रोल मॉडल की जरूरत होती है। अब तक विश्वनाथन आनंद ही थे और हम सभी ने उन्हें देखकर खेलना शुरू किया । उन्होंने बरसों तक यह जिम्मेदारी अकेले संभाली लेकिन अब समय आ गया है कि ये युवा खिलाड़ी उस विरासत को आगे बढायें। प्रज्ञानानंदा को 18 वर्ष की कम उम्र में अप्रतिम सफलता मिलने से खेल पर से ध्यान तो नहीं हटेगा, यह पूछने पर पिछले दस साल से उनके साथ जुड़े कोच ने कहा कि उसका ‘सपोर्ट सिस्टम’ काफी मजबूत है। उन्होंने कहा, उसका ध्यान नहीं भटकेगा। वह जमीन से जुड़ा है और उसका सहयोगी तंत्र काफी मजबूत है। उसके माता पिता इतने सरल हैं कि अपने फोन भी उन्होंने कल बंद कर दिये । वे सुर्खियों में आना नहीं चाहते और प्रज्ञानानंदा में भी वही संस्कार हैं। उन्होंने कहा कि प्रज्ञानानंदा को सिर्फ खेल से ही प्यार नहीं है बल्कि वह सीखने का भी पूरा आनंद लेता है और यही उसकी सफलता का राज है।

उन्होंने कहा आम तौर पर बच्चों को खेलना तो पसंद होता है लेकिन अभ्यास ऊबाऊ और नीरस होने के कारण वे उससे भागते हैं लेकिन प्रज्ञानानंदा सीखने की प्रक्रिया का भी पूरा आनंद लेता है। वह अपनी गलतियों से सीखता है और उन्हें सुधारने पर मेहनत करता है। यह पूछने पर कि अलग देश में होने के कारण वह अपने शिष्य से कैसे संपर्क में रहे , उन्होंने कहा कि तकनीक से सब संभव है। उन्होंने कहा, हम वाट्सअप से एक दूसरे से जुड़े थे। मैं आनलाइन उसके मुकाबले देखता और अपना फीडबैक लिखकर कम्प्यूटर में स्टोर कर लेता। वह मुकाबले के बाद उसे देखता और यह रोज का रूटीन था। 

उन्होंने कहा, हम इतने साल से एक दूसरे के साथ हैं कि अब ज्यादा कहने की जरूरत नहीं होती। वह समझ जाता है कि मेरा फीडबैक क्या होगा। भारतीय शतरंज में इतने साल में आये बदलाव के बारे में पूछने पर उन्होंने कहा कि पहले भारत को ‘पुशओवर’ की तरह देखा जाता था लेकिन अब भारत शतरंज में महाशक्ति बन गया है। उन्होंने कहा, हमारे समय में इंटरनेट नहीं था, टूर्नामेंटों का अभाव था, पहचान या पुरस्कार नहीं मिलते थे। लेकिन अब ‘प्रोब्लम आफ प्लेंटी’ हो गया है और सही चुनना जरूरी है। युवा खिलाड़ियों से मैं यही कहूंगा कि मेहनत करना नहीं छोड़े और खुद अपने खेल पर काम करते रहें।

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