प्रयागराज : सरकार को बांके बिहारी मंदिर के आंतरिक मामलों तथा दान के पैसों को न छूने का निर्देश 

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Published By Jagat Mishra
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प्रयागराज, अमृत विचार। इलाहाबाद हाईकोर्ट में मथुरा के वृंदावन स्थित विश्व प्रसिद्ध बांके बिहारी मंदिर कॉरिडोर मामले में मंगलवार को सुनवाई हुई। जिसमें कोर्ट ने राज्य सरकार को मंदिर के पूजा-अनुष्ठानों में हस्तक्षेप न करने और मंदिर प्रबंधन के पैसे को न छूने के लिए निर्देश दिया। इसके साथ ही मौखिक रूप से यह भी टिप्पणी की कि अगर राज्य मंदिर के फंड का उपयोग करने का इच्छुक है तो उसे उचित ढंग से ऐसा करना होगा। उक्त आदेश मुख्य न्यायाधीश प्रीतिंकर दिवाकर और न्यायमूर्ति आशुतोष श्रीवास्तव के खंडपीठ ने गोस्वामियों और सेवायतों की ओर से दाखिल याचिका पर सुनवाई के दौरान पारित किया। 

दरअसल सेवायत और गोस्वामी सदियों से मंदिर की देखभाल करते आ रहे हैं और प्रस्तावित कॉरिडोर के विभिन्न पहलुओं पर आपत्ति जताते हुए उनका कहना है कि वृंदावन की पहचान कुंज गलियों से है, जिसे मिटाकर सरकार कॉरिडोर बनाना चाहती है जबकि इन गलियों का धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व है। इसके साथ ही सेवायतों ने मंदिर मामलों में स्थानीय प्रशासन की भागीदारी पर भी आपत्ति जताई है। बांके बिहारी मंदिर एक निजी मंदिर है, इसीलिए इसमें किसी बाहरी हस्तक्षेप की अनुमति बर्दाश्त नहीं की जा सकती है। मंगलवार को हुई सुनवाई के दौरान गोस्वामियों के अधिवक्ता ने कोर्ट को बताया कि राज्य द्वारा मंदिर के प्रबंधन को अपने कब्जे में लेने का डर है। 

दूसरी तरफ राज्य का पक्ष रखते हुए महाधिवक्ता ने कोर्ट को सूचित किया कि राज्य मंदिर के सुरक्षा मामलों का प्रबंधन कर रहा है। इसी संदर्भ में हलफनामा दाखिल करने के लिए उन्होंने कुछ समय मांगा, जिसके सापेक्ष कोर्ट ने मामले को आगामी 5 अक्टूबर के लिए सूचीबद्ध कर दिया।

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