लखनऊ: गेहूं, जौ और राई पेट और शरीर को पहुंचाता है नुकसान, जानिए बीएचयू आईएमएस के डॉक्टर ने क्या कहा...
लखनऊ, अमृत विचार। गेहूं से बनी रोटी भारतीय थाली का अहम हिस्सा है, शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति हो जो भोजन में रोटी या फिर गेहूं के आटे का इस्तेमाल न करता हो, लेकिन गेहूं का इस्तेमाल पेट और शरीर को गंभीर नुकसान पहुंचा सकता है। शोध में इस बात की जानकारी भी सामने आई है। कई बार तो गेहूं के प्रयोग से जान को भी खतरा हो सकता है।
इसी तरह जौ और राई भी गेहूं की तरह ही नुकसान दायक होती है। यहां यह बताना जरूरी है कि राई भी गेहूं की तरह एक अनाज होता है। गेहूं जौ और राई में ग्लूटेन नाम का कैमिकल पाया जाता है, जो नुकसान का असली होता है। यह जानकारी वाराणसी स्थित बीएचयू आईएमएस के गैस्ट्रोएंटरोलॉजिस्ट डॉ. देवेश प्रकाश यादव ने दी है।
वह राजधानी के गोमती नगर स्थित एक निजी होटल में आयोजित यूपी चैप्टर ऑफ इंडियन सोसाइटी ऑफ गैस्ट्रोएंटरोलॉजी की तरफ से आयोजित संगोष्ठी को संबोधित कर रहे थे। हालांकि उन्होंने इस दौरान यह भी साफ किया है कि हर किसी को इससे दिक्कत हो यह भी जरूरी नहीं, यह कुछ प्रतिशत जनसंख्या को ही प्रभावित करता है। डॉ. देवेश प्रकाश यादव ने बताया कि गेहू, जौ और राई से होने वाले पेट की समस्या तीन प्रकार की होती है। एलर्जी, सिलियक डिजीज और नॉन सिलियक ग्लूटेन सेंसिटिविटी।
एलर्जी
डॉ. देवेश की माने तो गेहूं के सेवन से स्किन में रैसेज, सांस का फूलना, दमा की बीमारी हो सकती है। यदि इन समस्याओं से बचना है तो गेहूं का प्रयोग बंद करना होगा।
सीलिएक डिजीज
डॉ. देवेश ने बताया कि सीलिएक डिजीज करीब एक प्रतिशित जनसंख्या में देखा जाता है। यह समस्या ज्यादातर बच्चों में पाया जाता है। इसके अलावा 50 से 60 तक की उम्र में भी हो सकता है। उन्होंने बताया कि गेहूं में ग्लूटेन नाम का एक कैमिकल होता है। जिससे छोटी आंत खराब होती है। छोटी आंत में इस कैमिकल से नुकसान होने पर डायरिया, पेट दर्द, खून की कमी, लंम्बाई न बढ़ना, हड्डियों का कमजोर होना जैसे तमाम लक्षण शरीर में दिखाई पड़ते हैं। इलाज में देरी होने पर मौत का कारण भी हो सकता है।
नॉन सिलियक ग्लूटेन सेंसिटिविटी
उन्होंने बताया कि नॉन सिलियक ग्लूटेन सेंसिटिविटी करीब 20 प्रतिशत जनसंख्या में देखी गई है। जिनकों पेट फूलना, कब्ज, गैस, पेट फूलना, डिप्रेशन और घबराहट होती हो। वह विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें। हालांकि इस तरह की दिक्कत होने पर जान को खतरा नहीं होता है।
यूपी चैप्टर ऑफ इंडियन सोसाइटी ऑफ गैस्ट्रोएंटरोलॉजी की तरफ से आयोजित इस संगोष्ठी के आयोजन अध्यक्ष डॉ. पुनीत मल्होत्रा और आयोजन सचिव डॉ. सुमित रूंगटा हैं
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