प्रयागराज : कोडीनयुक्त कफ सिरप मामले में आरोपी की याचिका खारिज

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Published By Virendra Pandey
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प्रयागराज, अमृत विचार : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश में उजागर हुए नकली/अवैध दवा रैकेट की जांच पर रोक लगाने से साफ इनकार करते हुए याचिका खारिज कर दी। कोर्ट ने माना कि याची एफआईआर में नामजद है तथा जांच शुरुआती चरण में चल रही है। ऐसे में गिरफ्तारी पर रोक लगाना न केवल साक्ष्यों के नष्ट होने की आशंका बढ़ाएगा, बल्कि सुप्रीम कोर्ट के स्थापित सिद्धांतों के भी विरुद्ध होगा।

याची ने पुलिस स्टेशन कोतवाली, ग़ाज़ीपुर में भारतीय न्याय संहिता, 2023 की धारा 206(ए), 271, 276 और 318(4) के साथ ही औषधि और प्रसाधन अधिनियम,1945 की धारा 27ए के तहत औषधि निरीक्षक बृजेश कुमार मौर्य द्वारा 24 नवंबर 2025 को दर्ज प्राथमिकी को रद्द करने और गिरफ्तारी पर रोक लगाने की मांग की थी, लेकिन कोर्ट ने मामले की गंभीरता और उपलब्ध सामग्री को देखते हुए हस्तक्षेप से इंकार कर दिया। उक्त आदेश न्यायमूर्ति अजय भनोट और न्यायमूर्ति गरिमा प्रसाद की खंडपीठ ने गाजीपुर के निलेश कुमार श्रीवास्तव की याचिका पर सुनवाई करते हुए पारित किया। हालांकि याची के अधिवक्ता ने तर्क दिया कि मेसर्स शुभम फार्मा यानी याची की फर्म मार्च 2025 में ही बंद हो चुकी है, उसने पहले जो व्यवसाय किया था, उससे संबंधित दस्तावेज भी नारकोटिक्स विभाग के अधिकारियों को उपलब्ध करा दिया गया है। 

पूरा मामला अंतर्राज्यीय ड्रग रैकेट से जुड़ा हुआ है। एफआईआर के अनुसार मेसर्स शैली ट्रेडर्स, रांची, झारखंड से भारी मात्रा में कोडीनयुक्त कफ सिरप धोखाधड़ी से उत्तर प्रदेश में लाया जा रहा था, जिनके लिए राज्यभर के विभिन्न दवा व्यापारियों द्वारा जाली दस्तावेज तैयार किए गए, जो वास्तविक स्टॉक से मेल नहीं खाते थे। कोडीन कफ सिरप मामले में आपराधिक षड्यंत्र के तहत सदोष लाभ प्राप्त करने के उद्देश्य से कूटरचित बिल के आधार पर कोडीनयुक्त औषधि के गैर- चिकित्सकीय दुरुपयोग और विक्रय करने के आपराधिक कार्य के संबंध में अब तक कुल 128 एफआईआर पंजीकृत हो चुकी हैं।

राज्य की ओर से अपर महाधिवक्ता ने तर्क दिया कि इस प्रकार की “अनियंत्रित और धोखाधड़ीपूर्ण सप्लाई जन-स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा” है। कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का हवाला देते हुए कहा कि  एफआईआर को रद्द करना केवल अत्यंत दुर्लभ मामलों में ही संभव है और कोर्ट जांच की विश्वसनीयता का मूल्यांकन नहीं कर सकती। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि जांच लंबित रहने के दौरान गिरफ्तारी पर रोक या “नो कोर्सिव स्टेप्स” जैसे आदेश साधारणतया नहीं दिए जाने चाहिए। वर्तमान मामले में जांच अभी पूरी नहीं हुई है। अतः इस स्तर पर प्राथमिकी में हस्तक्षेप का औचित्य नहीं है।

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