दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा- अपने बच्चे का पिता होने से इंकार करने से अधिक क्रूर कुछ नहीं हो सकता

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Published By Moazzam Beg
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नई दिल्ली। दिल्ली उच्च न्यायालय ने 10 साल से अधिक समय से अलग रह रहे एक जोड़े को तलाक की अनुमति देते हुए बुधवार को कहा कि अपने ही बच्चे का पिता होने से इनकार करने से अधिक क्रूर कुछ नहीं हो सकता।

न्यायमूर्ति सुरेश कुमार कैत और न्यायमूर्ति नीना बंसल कृष्णा की पीठ ने क्रूरता के आधार पर एक व्यक्ति को तलाक की अनुमति देने के पारिवारिक अदालत के आदेश को बरकरार रखते हुए एक फैसले में यह टिप्पणी की। 

तलाक की अनुमति देने के पारिवारिक अदालत के फैसले को चुनौती देने वाली महिला की अपील को खारिज करते हुए उच्च न्यायालय ने कहा कि इस निष्कर्ष में कोई त्रुटि नहीं है कि पत्नी का कृत्य स्पष्ट रूप से पति और उसके परिवार के सदस्यों के प्रति क्रूरता है जो हिंदू विवाह अधिनियम के तहत तलाक पाने का अधिकार है। हालांकि, पीठ ने व्यक्ति के अपनी पत्नी के प्रति उस व्यवहार को लेकर आलोचना भी की, जब उसने अपने पति को संदेश के माध्यम से अपनी गर्भावस्था के बारे में सूचित किया था। 

अदालत ने कहा कि अप्रैल 2013 में महिला ने ससुराल छोड़ने के बाद, पति को अपनी गर्भावस्था के बारे में सूचित किया, जिसके जवाब में उसने बच्चे का पिता होने से इनकार करते हुए एक संदेश लिखा। इस जोड़े की शादी अप्रैल 2012 में हुई और नवंबर 2013 में एक बच्चे का जन्म हुआ। शादी के तुरंत बाद दोनों के बीच मतभेद पैदा हो गए और महिला अप्रैल 2013 में ससुराल से चली गई। 

उच्च न्यायालय ने कहा कि महिला ने अपने पति और ससुराल वालों के खिलाफ क्रूरता और दहेज उत्पीड़न सहित आपराधिक मामले दर्ज कराए थे, लेकिन वह किसी भी आरोप को साबित नहीं कर सकी। 

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