ISRO: भारतीय वैज्ञानिक प्रमोद पुरुषोत्तम काले ने 60 साल बाद ध्वनि राकेट के लिए उल्टी गिनती कर इतिहास दोहराया

ISRO: भारतीय वैज्ञानिक प्रमोद पुरुषोत्तम काले ने 60 साल बाद ध्वनि राकेट के लिए उल्टी गिनती कर इतिहास दोहराया

तिरुवनंतपुरम। भारत के पहले ‘ध्वनि रॉकेट’ प्रक्षेपण के समय उल्टी गिनती करने वाले वैज्ञानिक प्रमोद पुरुषोत्तम काले ने 60 साल बाद शनिवार को एक अन्य रॉकेट के प्रक्षेपण से पहले उल्टी गिनती शुरू कर इतिहास दोहराया।

ये भी पढ़ें - MP: अवैध रूप से रेत खनन कर ले जा रही ट्रैक्टर-ट्रौली ने पटवारी को कुचला, मौत

छह दशक पहले केरल में तिरुवनंतपुरम के पास थुम्बा स्थित अस्थायी इक्वेटोरियल प्रक्षेपण स्थल से एक रॉकेट को प्रक्षेपित करने के मौके पर युवा वैज्ञानिक प्रमोद पुरुषोत्तम काले ने आत्मविश्वास के साथ 20 सेकंड की उल्टी गिनती (काउंटडाउन) शुरू की थी, तब देश का अंतरिक्ष कार्यक्रम अपने शुरुआती चरण में था।

लेकिन शनिवार को इतिहास ने खुद को दोहराया जब विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र में 80 वर्ष से अधिक उम्र के काले ने एक बार फिर रॉकेट प्रक्षेपण के लिए उल्टी गिनती का मार्गदर्शन करने के लिए माइक्रोफोन उठाया। काले महान वैज्ञानिक विक्रम साराभाई के समर्पित शिष्य रहे हैं। नये रॉकेट का प्रक्षेपण उसी स्थान से किया गया जहां से 21 नवंबर, 1963 को भारत के पहले ‘ध्वनि रॉकेट’ को प्रक्षेपित किया गया था।

काले ने कहा कि याद रखने वाली सबसे अहम बात यह है कि देश के पहले ‘ध्वनि रॉकेट’ का प्रक्षेपण सूर्यास्त के बाद देर शाम को किया गया था और खुद वह उलटी गिनती कर रहे थे। प्रसन्नचित काले ने उन दिनों को याद करते हुए कहा, ‘‘मैंने घड़ी विकसित कर ली थी, लेकिन वह घड़ी ऊपर की गिनती कर रही थी, नीचे की नहीं। इसलिए उन्होंने मुझसे उलटी गिनती करने के लिए कहा था।’’

इस प्रक्षेपण से देश में अंतरिक्ष क्षेत्र में विकास का मार्ग प्रशस्त हुआ और 1969 में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) की स्थापना हुई। विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र (वीएसएससी) के निदेशक रहे अहमदाबाद निवासी काले ने कहा कि उन्होंने कुछ और समय तक रॉकेट प्रक्षेपण के लिए उल्टी गिनती करना जारी रखा, क्योंकि उस समय प्रक्षेपण का समय बहुत महत्वपूर्ण था।

पुराने दिनों को याद करते हुए काले ने कहा कि विक्रम साराभाई द्वारा तैयार शुरुआती बैच में से केवल एपीजे अब्दुल कलाम ही एक ‘एरोनॉटिकल इंजीनियर’ थे। उन्होंने कहा कि साराभाई ने इस बैच का गठन किया और जनवरी 1963 में इसके सदस्यों को रॉकेट उत्पादन, प्रक्षेपण और रॉकेट इंस्ट्रूमेंटेशन में प्रशिक्षण के लिए भेजा।

काले का मानना ​​है कि गगनयान के जरिए इसरो जल्द ही अपने मुख्य मिशन को पूरा करेगा और अंतरिक्ष स्टेशन बनाने में सफल होगा। इसरो के साथ दशकों की सेवा के बाद काले वीएसएससी के निदेशक के रूप में सेवानिवृत्त हुए। उन्होंने वीएसएससी से ही अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में अपनी यात्रा शुरू की थी।

ये भी पढ़ें - उत्तरकाशी सिलक्यारा सुरंग: मशीन के टुकड़े निकालने के बाद हाथ से शुरू होगा श्रमिकों तक पहुंचने का काम