महुआ मोइत्रा की लोकसभा सदस्यता खत्म, टीएमसी नेता ने बताया ‘कंगारू अदालत की सजा’  

महुआ मोइत्रा की लोकसभा सदस्यता खत्म, टीएमसी नेता ने बताया ‘कंगारू अदालत की सजा’  

नई दिल्ली। तृणमूल कांग्रेस की सांसद महुआ मोइत्रा को ‘पैसे लेकर सवाल पूछने’ के मामले में शुक्रवार को ‘अनैतिक एवं अशोभनीय आचरण’ के लिए सदन की सदस्यता से निष्कासित कर दिया गया।

मोइत्रा ने अपने इस निष्कासन की तुलना ‘कंगारू अदालत’ द्वारा फांसी की सजा दिए जाने से करते हुए आरोप लगाया कि सरकार लोकसभा की आचार समिति को विपक्ष को झुकने के लिए मजबूर करने का हथियार बना रही है।

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस की प्रमुख ममता बनर्जी ने मोइत्रा को लोकसभा की सदस्यता से निष्कासित करने के फैसले की निंदा की और इस कदम को देश के संसदीय लोकतंत्र के साथ ‘‘विश्वासघात’’ करार दिया। संसदीय कार्य मंत्री प्रह्लाद जोशी ने लोकसभा में मोइत्रा के निष्कासन का प्रस्ताव पेश किया, जिसे सदन ने ध्वनिमत से मंजूरी दे दी।

इससे पहले सदन में लोकसभा की आचार समिति की उस रिपोर्ट को चर्चा के बाद मंजूरी दी गई जिसमें मोइत्रा को निष्कासित करने की सिफारिश की गई थी। विपक्ष, विशेषकर तृणमूल कांग्रेस ने आसन से कई बार यह आग्रह किया कि मोइत्रा को सदन में अपना पक्ष रखने का मौका मिले, लेकिन लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने पहले की संसदीय परिपाटी का हवाला देते हुए इससे इनकार कर दिया।

सदन में चर्चा के बाद जोशी द्वारा रखे गए प्रस्ताव का उल्लेख करते हुए बिरला ने कहा, ‘‘महुआ मोइत्रा के खिलाफ सदन में प्रश्न पूछने के बदले नकदी लेने में प्रत्यक्ष संलिप्तता के संदर्भ में सांसद निशिकांत दुबे द्वारा 15 अक्टूबर को दी गई शिकायत पर आचार समिति की पहली रिपोर्ट पर विचार के उपरांत समिति के इन निष्कर्षों को यह सभा स्वीकार करती है कि सांसद महुआ मोइत्रा का आचरण अनैतिक और संसद सदस्य के रूप में अशोभनीय है।

इस कारण उनका लोकसभा सदस्य बने रहना उपयुक्त नहीं होगा। इसलिए यह सभा संकल्प करती है कि उन्हें लोकसभा की सदस्यता से निष्कासित कर दिया जाए।’’ इसके बाद सदन ने ध्वनिमत से प्रस्ताव को मंजूरी दे दी।

प्रस्ताव पारित होने से पहले ही कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस समेत ज्यादातर विपक्षी दलों के सदस्य सदन से बाहर चले गए। मोइत्रा के निष्कासन का प्रस्ताव पारित होने के तत्काल बाद बिरला ने सदन की कार्यवाही अपराह्न करीब तीन बजकर 10 मिनट पर सोमवार सुबह 11 बजे तक के लिए स्थगित कर दी।

लोकसभा की आचार समिति की सिफारिश पर सदन की सदस्यता से निष्कासित किये जाने के कुछ मिनट बाद अपनी प्रतिक्रिया में मोइत्रा ने कहा कि उन्हें उस आचार संहिता के उल्लंघन का दोषी पाया गया है, जो अस्तित्व में ही नहीं है और उन्हें नकदी या उपहार दिए जाने का कोई सबूत नहीं है। मोइत्रा ने कहा, ‘‘आचार समिति मुझे उस बात के लिए दंडित कर रही है, जो लोकसभा में सामान्य है, स्वीकृत है तथा जिसे प्रोत्साहित किया गया है।

’’ उन्होंने कहा कि उनके खिलाफ पूरा मामला ‘लॉगिन विवरण’ साझा करने पर आधारित है, लेकिन इस पहलू के लिए कोई नियम तय नहीं हैं। लोकसभा में आचार समिति की रिपोर्ट पर चर्चा के दौरान विपक्षी सदस्यों ने ‘प्राकृतिक न्याय’ का विषय उठाया और कहा कि सब कुछ जल्दबाजी में किया जा रहा है तथा मोइत्रा को उनकी बात रखने का मौका नहीं दिया गया।

चर्चा में भाग लेते हुए कांग्रेस की ओर से मनीष तिवारी ने कहा कि वकालत पेशे में 31 साल के कॅरियर में उन्होंने जल्दबाजी में बहस जरूर की होगी, लेकिन सदन में जितनी जल्दबाजी में उन्हें चर्चा में हिस्सा लेना पड़ रहा है, वैसा कभी उन्होंने नहीं देखा।

उन्होंने सवाल खड़े किये कि क्या आचार समिति किसी के मौलिक अधिकारों का हनन कर सकती है? उन्होंने कहा कि यह कैसी न्याय प्रक्रिया है जिसके तहत अभियुक्त को अपनी बात रखने का मौका भी नहीं दिया गया।

तिवारी ने कहा, ‘‘समिति ये तो सिफारिश कर सकती है कि कोई व्यक्ति गुनहगार है या नहीं, लेकिन सजा क्या होगी, इसका फैसला सदन ही कर सकता है। समिति सदस्यता रद्द करने का निर्णय कैसे ले सकती है।

’’ उन्होंने तीन दलों द्वारा अपने सदस्यों को व्हिप जारी करने पर सवाल खड़े किये और कहा कि सदन की कार्यवाही तत्काल स्थगित करने और व्हिप वापस लेने का आदेश दिया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि इस मामले में यहां उपस्थित सदस्य न्यायाधीश के रूप में हैं, न कि पार्टी सदस्य के रूप में। इस पर अध्यक्ष ओम बिरला ने कहा कि यह संसद है न कि अदालत। उन्होंने कहा, ‘‘यह संसद है न कि अदालत है।

मैं न्यायाधीश नहीं हूं, सभापति हूं...यहां मैं निर्णय नहीं कर रहा, बल्कि सभा निर्णय कर रही है।’’ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की सांसद हिना गावित ने कहा कि महुआ मोइत्रा के खिलाफ ‘रिश्वत लेकर सवाल पूछने’ के आरोप से जुड़े प्रकरण के चलते पूरी दुनिया में भारतीय सांसदों की छवि धूमिल हुई है।

मोइत्रा के मामले से संबंधित आचार समिति की रिपोर्ट पर लोकसभा में चर्चा में भाग लेते हुए भाजपा सांसद हिना गावित ने कहा कि मोइत्रा ने नियम तोड़ा है तथा कानून से ऊपर कोई नहीं है। उन्होंने विपक्ष पर निशाना साधते हुए कहा कि वर्ष 2005 में इसी तरह के एक प्रकरण में कांग्रेस की सरकार के समय जिस दिन रिपोर्ट आई थी, उसी दिन 10 सांसदों को सदन से बाहर निकाला गया था और उन्हें भी अपना पक्ष रखने का मौका नहीं दिया गया था।

दरअसल, विपक्षी दलों ने सवाल किया था कि मोइत्रा के मामले में शुक्रवार को ही दोपहर 12 बजे आचार समिति की रिपोर्ट सदन में पेश की गई और उसी दिन उस पर चर्चा क्यों हो रही है? उन्होंने इस मामले में प्रभावित सांसद मोइत्रा को उनका पक्ष रखने देने का भी अनुरोध किया था जिसे लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने पुरानी परिपाटी का हवाला देते हुए स्वीकार नहीं किया था।

गावित का कहना था, ‘‘इससे पहले 13 सांसदों को सदन से निष्कासित किया गया था। महुआ मोइत्रा और पिछले मामले में फर्क है। इस मामले में कंपनी अस्तित्व में है, दर्शन हीरानंदानी का नाम है। हीरानंदानी का पांच प्रमुख क्षेत्रों में व्यवसाय है।

’’ उन्होंने दावा किया कि मोइत्रा ने वर्ष 2019 से अब तक सदन में कुल 61 सवाल बतौर सांसद पूछे हैं, जिनमें से 50 सवाल उन्हीं क्षेत्रों से संबंधित थे जिनमें हीरानंदानी का हित है। हिना गावित का कहना था, ‘‘मोइत्रा की आईडी 47 बार दुबई से लॉग इन हुई। छह बार अन्य देशों से इसे लॉग इन किया गया।

’’ हिना गावित ने कहा कि समिति के समक्ष महुआ मोइत्रा से कोई ऐसा व्यक्तिगत सवाल नहीं पूछा गया जिससे उन्हें लगा कि ‘उनका चीरहरण हो रहा है।’ भाजपा की अपराजिता सांरगी ने कहा कि यह विषय अहम है क्योंकि संसद की मर्यादा और संवैधानिक प्रक्रियाओं से जुड़ा हुआ है। आचार समिति की सदस्य अपराजिता ने दावा किया कि महुआ मोइत्रा ने समिति की बैठक में असंवैधानिक शब्दों का प्रयोग किया था और उन्होंने बैठक से वॉकआउट किया था।

तृणमूल कांग्रेस ने महुआ मोइत्रा के मामले में आचार समिति की कार्यवाही की निष्पक्षता पर सवाल खड़े करते हुए लोकसभा में कहा कि पार्टी नेता के खिलाफ नकदी के लेनदेन का कोई सबूत नहीं है।

सदन में आचार समिति की रिपोर्ट पर चर्चा के दौरान तृणमूल कांग्रेस के नेता सुदीप बंदोपाध्याय ने लोकसभा अध्यक्ष से कई बार आग्रह किया कि मोइत्रा को उनका पक्ष रखने का मौका दिया जाए, लेकिन बिरला ने पुरानी संसदीय परिपाटी का हवाला देते हुए इससे इनकार कर दिया।

बिरला ने पार्टी सांसद कल्याण बनर्जी को बोलने का मौका दिया। कल्याण बनर्जी ने कहा कि दर्शन हीरानंदानी को समिति के समक्ष नहीं बुलाया गया और उनका हलफनामा आया। बनर्जी ने कहा कि जब तक व्यक्ति सामने नहीं कहता कि उसका हलफनामा है तो उसकी बात को कैसे माना जा सकता है।

उन्होंने आरोप लगाया कि आचार समिति ने महुआ मोइत्रा को अनुच्छेद 14 के तहत मिले मौलिक अधिकार का हनन किया है। उनका कहना था, ‘‘यह नहीं बताया गया कि कितनी नकदी का लेनदेन हुआ है। कोई सबूत नहीं दिया गया।

’’ जनता दल (यू) के गिरधारी यादव ने कहा कि दर्शन हीरानंदानी को समिति के समक्ष जिरह के लिए क्यों नहीं बुलाया गया। भाजपा सांसद विनोद कुमार सोनकर की अध्यक्षता वाली आचार समिति ने गत नौ नवंबर को अपनी एक बैठक में मोइत्रा को ‘पैसे लेकर सदन में सवाल पूछने’ के आरोपों में लोकसभा से निष्कासित करने की सिफारिश वाली रिपोर्ट को स्वीकार किया था। समिति के छह सदस्यों ने रिपोर्ट के पक्ष में मतदान किया था। इनमें कांग्रेस से निलंबित सांसद परनीत कौर भी शामिल हैं। समिति के चार विपक्षी सदस्यों ने रिपोर्ट पर असहमति नोट दिए थे। 

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