पीलीभीत: नेताजी के दबाव में अफसर भूले जिम्मेदारी, ..और रातोंरात कटा आम का बाग,  शासन को भेजी रिपोर्ट

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Published By Om Parkash chaubey
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पीलीभीत, अमृत विचार: शहर में रातों रात आम के बाग के कटान के मामले में डीएम की सख्ती के बाद पीटीआर के डिप्टी डायरेक्टर और सिटी मजिस्ट्रेट से कराई गई जांच में सामाजिक वानिकी और उद्यान विभाग के अधिकारियों की लापरवाही निकली है। यह भी सामने आया है कि कलमी पेड़ों के नाम पर फलदार वृक्षों का भी सफाया कर दिया गया। इसके अलावा कई अन्य नियमों की भी कटान करते वक्त अनदेखी की गई।  

डीएम और शासन स्तर पर जांच रिपोर्ट भेज दी गई है। बताते हैं अनुमति से पूर्व रिपोर्ट लगाने के लिए एक नेताजी का भी दबाव रहा।  बता दें कि शहर में टनकपुर हाईवे से सटे इलाके में कॉलोनी विकसित करने को 18 दिसंबर की रात 48 आम के पेड़ों को कटवा दिया गया। रातोंरात हुए इस कटान से प्रशासन में खलबली मच गई। दूसरे दिन उन्नीस दिसंबर को मामला सिटी मजिस्ट्रेट सुनील कुमार सिंह के संज्ञान में आने पर जेई विनियमित क्षेत्र और राजस्व कर्मियों को मौके पर भेजकर कटान रुकवा दिया गया था।

कई बिंदुओं पर मामले की जांच कराई गई। कटान करने वाले सामाजिक वानिकी से 48 कलमी पेड़ों को काटने की अनुमति होने का हवाला दे रहे थे। सामाजिक वानिकी प्रभाग के तत्कालीन डीएफओ द्वारा पेड़ काटने की अनुमति दी गई थी। डीएम ने बीते दिनों सामाजिक वानिकी प्रभाग के डीएफओ को तलब कर 21 दिसंबर को सवाल जवाब किए तो वह संतोषजनक जवाब डीएम को नहीं दे सके थे।

गुमराह करने का भी प्रयास किया था। फिर सिटी मजिस्ट्रेट सुनील कुमार सिंह और टाइगर रिजर्व के डिप्टी डायरेक्टर नवीन खंडेलवाल को जांच दी गई थी। दोनों अधिकारियों ने जांच पूरी कर रिपोर्ट डीएम को भेजी। जिसके बाद डीएम के स्तर से रिपोर्ट शासन को भेज दी गई है। जिसमें तत्कालीन सामाजिक वानिकी डीएफओ और जिला उद्यान अधिकारी की लापरवाही सामने आई है।

कलमी पेड़ों के नाम पर फलदार पेड़ों को भी काटा गया। अनुमति देते वक्त मौके पर पड़ताल किए बिना ही अनुमति दे दी गई। कटान की जगह के बारे में भी कोई पड़ताल नहीं की गई। ऐसे में कार्रवाई भी तय मानी जा रही है।

नेताजी के दबाव में भूल गए जिम्मेदारी: इस प्रकरण की जांच के दौरान सामने आया है कि जिला उद्यान अधिकारी ने बिना मौके पर जाए ही अपनी रिपोर्ट लगा दी थी।  उन्होंने उद्यान विभाग के इंस्पेक्टर कामेश्वर की ओर से दी गई आख्या पर ही अपनी रिपोर्ट को ओके कर सामाजिक वानिकी को भेज दिया था।

बताते हैं कि इसके पीछे सत्ता के एक नेता का भी दबाव रहा। जिसके चलते लापरवाही बरतते हुए अनुमति दे दी गई। फिलहाल अब जांच के बाद कार्रवाई की आंच आती दिख रही है तो परतें खुलने लगी हैं।

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