विश्व में भारतीय संस्कृति की सुगंध बिखेर रही है हिन्दी : प्रो. शैलेन्द्र मिश्र 

Amrit Vichar Network
Published By Jagat Mishra
On

विश्व हिंदी दिवस पर एलबीएस महाविद्यालय में हुई संगोष्ठी 

गोंडा, अमृत विचार। हिंदी भारतीय संस्कृति की अस्मिता की सुगन्ध को सम्पूर्ण विश्व में बिखेर रही है और अपने विराट स्वरूप से वह विश्वभाषा बनने की ओर अग्रसर है। विश्व हिन्दी दिवस के अवसर पर यह विचार लाल बहादुर शास्त्री महाविद्यालय में बुधवार को  'हिन्दी का वैश्विक परिदृश्य' विषयक संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए हिन्दी विभागाध्यक्ष डा. शैलेन्द्र नाथ मिश्र ने व्यक्त किए। 

शोध केन्द्र में आयोजित संगोष्ठी को हिन्दी प्रेमियों व छात्रों को सम्बोधित करते हुए श्री मिश्र ने अपने निष्कर्ष में कहा कि  ध्यान देने योग्य है कि भारत ने जिस तरह किसी देश पर आक्रमण नहीं किया, उसी तरह भारतीय भाषाएं अपनी असीम विशेषताओं से ही दिग्दिगंत तक विस्तृत होती रहीं। उन्होंने आक्रामक भाव कभी नहीं अपनाया। उन्होंने कहा कि हिंदी विभाग देवीपाटन मंडल के साहित्यकारों के साथ हिंदी एवं हिंदीतर क्षेत्र के साहित्यकारों पर शोध कार्य भी करवा रहा है। 

जिसमें दक्षिण भारत की डॉ. चिट्टि अन्नपूर्णा, डॉ. एस. ए. मंजुनाथ सहित देशांतर नार्वे के सुरेश चंद्र शुक्ल, टोरंटो से प्रोफेसर रत्नाकर नारले, प्रो. पुष्पिता अवस्थी, धर्मपाल महेंद्र जैन, तेजेंद्र शर्मा सहित अनेक अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सक्रिय साहित्यकार शामिल है। विचार सभा में हिंदी विभाग के प्रो. जयशंकर तिवारी ने कहा कि पिछले वर्षों में महामारी के दौरान हिंदी विभाग द्वारा प्रारंभ किए गए गंगा कावेरी व्याख्यान के अंतर्गत 108 विद्वानों के व्याख्यान संपन्न हुए हैं। जिसमें देश के लगभग सभी मूर्धन्य विद्वानों ने महाविद्यालय के इस अनूठे कार्यक्रम में योगदान दिया है। उन्होंने यह भी बताया कि लंदन से प्रसिद्ध कथाकार तेजेंद्र शर्मा, टोरंटो कनाडा से धर्मपाल महेंद्र जैन, उज़्बेकिस्तान से प्रोफेसर उल्फत मुहिबोवा, अमेरिका से डॉ. कविता वाचक्नवी, चीन से डॉ. विवेक मणि त्रिपाठी, सिंगापुर से डॉ. संध्या सिंह और विश्व हिंदी सचिवालय मॉरीशस के सचिव रह चुके प्रोफेसर विनोद मिश्र ने भी व्याख्यानमाला में मूल्यवान व्याख्यान दिया है। पत्रकार आर. जे. शुक्ला ने हिंदी पत्रकारिता के द्वारा हिंदी के प्रसार को रेखांकित किया उन्होंने कहा कि मुद्रण और इलेक्ट्रॉनिक पत्रकारिता ने हिंदी को न केवल विशिष्ट ऊंचाई प्रदान की है बल्कि देश की सीमाओं को पार कर विश्व भर में उसका विजय ध्वज लहराया है।

हिंदी विभाग के प्रोफेसर अच्युत शुक्ला ने साहित्य और सिनेमा के द्वारा हिंदी के प्रचार-प्रसार को विस्तार से प्रस्तुत किया। उन्होंने बताया कि हिंदी सिनेमा ने हिंदी को अंतरराष्ट्रीय बनाने में सबसे बड़ी भूमिका निभाया है‌‌ इसके साथ ही अन्य वाणिज्यिक कर्म से भी हिंदी फलती-फूलती रही है। एमए उत्तरार्द्ध हिंदी के विद्यार्थी पुष्कर बाबू ने कहा कि हिंदी दूब की तरह पूरी विनम्रता और हरीतिमा के साथ वसुधा-व्यापिनी हो रही है। उन्होंने कहा कि 21 वीं सदी भारतीय संस्कृति और भारतीय भाषाओं विशेष रूप से हिंदी की है। संगोष्ठी में हिन्दी छात्र-छात्राओं ने भी विचार व्यक्त किए।


ये भी पढ़ें -Lucknow to Ayodhya : सुविधाएं परखने खुद रोडवेज बस में सवार हुए परिवहन मंत्री, की तारीफ

संबंधित समाचार