लखीमपुर-खीरी: घाटे की अर्थव्यवस्था से उबर नहीं पा रहीं बजाज की चीनी मिलें, नाहक पिस रहे गन्ना किसान
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लखीमपुर खीरी, अमृत विचारः जनपद में बजाज ग्रुप की तीन चीनी मिलें गोला, पलिया व खंभारखेड़ा करीब एक दशक से घाटे की अर्थव्यवस्था का शिकार बनी हुई है, जिसमें किसान नाहक ही पिस रहे हैं। चीनी मिलों की कारस्तानी किसानों के लिए अभिशाप साबित हो रही है, क्योंकि किसानों को समय पर भुगतान नहीं मिल रहा है और न ही गन्ना एक्ट के मुताबिक देर से भुगतान मिलने पर ब्याज दिया जा रहा है।
इन चीनी मिलों द्वारा गन्ना एक्ट के मुताबिक निर्धारित समय अवधि में भुगतान न किए जाने से हजारों किसान आर्थिक संकट से जूझ रहे हैं। वहीं शासन-प्रशासन मिलकर अभी तक किसानों के जी का जंजाल बन चुकी समस्या को दूर नहीं करा सका है। पेराई सत्र 2023-24 में इन तीनों मिलों पर किसानों का 489.15 करोड़ रूपये गन्ना मूल्य बकाया हो चुका है।
गन्ना एक्ट के मुताबिक चीनी मिलों को किसानों से गन्ना खरीदने की तिथि से 14 दिन में भुगतान करने का नियम है। 14 दिन में भुगतान न करने पर मिलों को देरी से भुगतान करने पर ब्याज समेत गन्ना मूल्य का भुगतान करने का प्राविधान है, लेकिन बजाज ग्रुप की तीन चीनी मिलें पिछले कई वर्षों से गन्ना एक्ट को दरकिनार कर मनमानी कर रही हैं।
तीनों मिलों ने चालू पेराई सत्र में मात्र कुछ दिन का भुगतान किया है, जिसमें गोला मिल ने 8.30 प्रतिशत (19.42 करोड़), पलिया ने 13.42 प्रतिशत (20 करोड़) और खंभारखेड़ा मिल ने 10.36 प्रतिशत (16.81 करोड़) भुगतान किया है। जबकि इन तीनों मिलों पर किसानों का 489.15 करोड़ से अधिक गन्ना मूल्य बकाया हो चुका है।
बताते चलें कि इन तीन मिलों ने पिछले पेराई सत्र का बकाया गन्ना मूल्य का भुगतान चालू पेराई सत्र की चीनी बेचकर किया है। इससे किसानों के सामने गन्ना मूल्य भुगतान समय से न मिलने की समस्या बनी हुई है।
बताते चलें कि बजाज ग्रुप ने करीब एक दशक पहले बिजली बनाने की संयत्र लगाकर सरकार को बिजली बेची थी, जिसके बाद बजाज ग्रुप की तीनों मिलों की अर्थव्यवस्था बदहाल होती गई।
तीनों मिलें बैंकों का कर्ज न लौटाने के कारण डिफॉल्टर घोषित हो चुकी है, जिससे इन मिलों का बैंक द्वारा कैश क्रेडिट लिमिट नहीं बनाया जा रहा। इस कारण यह मिलें किसानों को भुगतान करने में अक्षम साबित हो रही हैं, लेकिन इसका खामियाजा निर्दोष किसानों को भुगतना पड़ रहा है।
शासन-प्रशासन की खास मेहरबानी के कारण इन मिलों द्वारा गन्ना एक्ट के मुताबिक किसानों को गन्ना मूल्य के साथ ब्याज का भुगतान नहीं किया जा रहा है, जिससे किसानों के हित में बनाए गए नियम-कायदे भी बेमानी साबित हो रहे हैं। ऐसे हालात में गन्ना किसान खुद को ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं, क्योंकि एक तो समय से भुगतान नहीं मिलता है और दूसरे गन्ना एक्ट की शर्तों के मुताबिक देर से भुगतान के साथ ब्याज नहीं दिया जा रहा है। इसका सीधा फायदा चीनी मिल मालिक उठा रहे हैं।
सिर्फ तीन मिलें गन्ना एक्ट के मुताबिक समय से कर रही भुगतान
कुल नौ चीनी मिलों में से तीन चीनी मिलें ही गन्ना एक्ट की शर्तों के मुताबिक किसानों को समय से 14 दिन में भुगतान कर रही हैं। डीसीएम ग्रुप की अजबापुर, बलरामपुर ग्रुप की कुंभी और गुलरिया मिल द्वारा अभी तक 14 दिन में भुगतान किया जा रहा है, जिससे यह मिलें बकाया की श्रेणी से बाहर हैं। वहीं ऐरा, बेलरायां और संपूर्णानगर मिलें भी धीमी गति से भुगतान कर रही हैं, जिससे यह भी बकाएदारों की श्रेणी में शामिल हैं।
चीनी मिलवार बकाया भुगतान (करोड़ में)
गोला 214.59
पलिया 129.07
खंभारखेड़ा 145.49
ऐरा 38.20
बेलरायां 8.16
संपूर्णानगर 14.53
बजाज ग्रुप की मिलें घाटे की अर्थव्यवस्था में चल रही हैं। बैंक द्वारा कैश क्रेडिट लिमिट न बनाए जाने के कारण गोला, पलिया व खंभारखेड़ा मिलें समय से भुगतान नहीं कर पा रही हैं। पिछले वर्ष का बकाया भुगतान इस वर्ष कराया गया है। तीनों मिलों की चीनी बिक्री पर निगरानी रखी जा रही है, जिससे चीनी बिक्री से प्राप्त होने वाली धनराशि से किसानों को भुगतान कराया जा रहा है---वेदप्रकाश सिंह, जिला गन्ना अधिकारी।
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