विश्व रेडियो दिवस कल: बदलते दौर में पीछे छूट गया रेडियो, अब बचे हैं गिने चुने 'नामलेवा', एक समय करता था राज!

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Published By Sachin Sharma
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सूचना शिक्षा के संचार में रेडियो की रही अहम भूमिका 

काशीनाथ दीक्षित, दरियाबाद, बाराबंकी। विश्व रेडियो दिवस प्रतिवर्ष 13 फरवरी को दुनियाभर में मनाया जाता है। इस दिन संचार के माध्यम के तौर पर रेडियो की भूमिका पर चर्चा होती है और लोगों को इस बाबत जागरूक किया जाता है। रेडियो एक ऐसी सेवा है जो दुनियाभर में सूचना का आदान-प्रदान करता है। आपदा या आपात कालीन स्थिति में रेडियो का महत्व बढ़ जाता है।

ऐसे में विश्व रेडियो दिवस को मनाने का उद्देश्य दुनिया भर के युवाओं को रेडियो की आवश्यकता और महत्व के प्रति जागरूक करना होता है। सूचना फैलाने के लिए सबसे शक्तिशाली और सस्ते माध्यम के तौर पर रेडियो को जाना जाता है। भले ही रेडियो सदियों पुराना माध्यम हो लेकिन संचार के लिए इसका इस्तेमाल आज भी हो रहा है । 

अधिकांश लोगों की दिनचर्या का हिस्सा है रेडियो 

रेडियो हम में से अधिकांश की दिनचर्या का एक खास हिस्सा है। किसी को काम करते हुए रेडियो पर गाने सुनना पसंद है तो किसी को पढ़ते हुए। कोई अपने तनाव को कम करने के लिए रेडियो सुनता है तो कोई थकान मिटाने और रिलेक्स होने के लिए। हम भले किसी भी मकसद से रेडियो का इस्तेमाल करें लेकिन इसका उपयोग जरूर करते हैं।

ट्रांसमीटर से भेजी जाती है एनाउंसर की आवाज

पर क्या आप जानते हैं कि रेडियो स्टेशन पर बैठे रेडियो अनाउंसर की आवाज या फिर गाने हम तक कैसे पहुंचते हैं? दरअसल जब रेडियो अनाउंसर  रेडियो स्टेशन पर माइक्रोफोन पर बोलता है तब माइक्रोफोन उसकी आवाज को इलेक्ट्रिकल सिग्नल में बदल देता है, लेकिन यह सिग्नल काफी कमजोर होता है और ज्यादा लंबी दूरी तय नहीं कर सकता इसलिए इसे ट्रांसमीटर में भेजा जाता है।

ट्रांसमीटर इस सिग्नल को कुछ स्ट्रांग सिग्नल्स के साथ मिला देता है। यह स्ट्रांग सिग्नल्स कैरियर वेव्स होती हैं। अब इन मिली हुईं वेव्स को एक खास एनटीना की मदद से प्रकाश की गति से बाहर भेजा जाता है और जब ये वेव्स आपके रेडियो के एंटीना तक पहुंचते हैं तब एंटीना उन्हें कैच कर रेडियो के एम्प्लीफायर तक पहुंचाता है और एम्प्लीफायर इसे और स्ट्रांग कर स्पीकर तक पहुंचाती है। सिग्नल्स पाकर स्पीकर वाइब्रेट होता है।

1923 में किया गया था पहला प्रसारण

भारत में रेडियो प्रसारण का पहला कार्यक्रम 1923 में रेडियो क्लब ऑफ मुंबई द्वारा किया गया था। इसके बाद 1927 में प्रसारण सेवा का गठन हुआ। 1936 में इसे ऑल इंडिया रेडियो का नाम दिया गया। आज इसके 200 से ज्यादा केंद्र हैं। ऑल इंडिया रेडियो अपने प्राथमिक चैनल के साथ विज्ञापन प्रसारण सेवा विविध भारती, एफएम चैनल और विदेश प्रसारण चैनल भी संचालित करता है।  कभी रेडियो सिलोन (कोलंबो से प्रसारित) का भी जलवा था ।

भारत की आजादी के चंद साल बाद 30 मार्च 1951 को रेडियो सिलोन की स्थापना हुई जो भारत में शहर से गांव तक न केवल सुना जाता था । बल्कि जिसके प्रसारणों ने हजारों की जिंदगी बदल दी उस वक्त का शायद ही कोई श्रोता हो जो बिनाका गीतमाला में अमीन सयानी की दिलकश आवाज को भूल पाया हो । जब आकाशवाणी का प्रसारण लोगो के घरों में गूँजने लगा तब अक्सर लोगों के मन में यह सवाल आता था  कि विविध भारती पर पहला एनाउंसमेंट किसने किया होगा

विविध भारती को पहली आवाज थी दी शील ने

आपको बता दें कि 3 अक्टूबर  1957 को विविध भारती का आगाज शील  कुमार शर्मा की आवाज में हुआ था उन्होंने कहा था यह विविध भारती है आकाशवाणी का पंचरंगी कार्यक्रम । देश ही नही दुनिया भर में सूचना के आदान-प्रदान और लोगों को शिक्षित करने में रेडियो की अहम भूमिका रही है । इसका इस्तेमाल हर उम्र को उन विषयों की चर्चा में शामिल करने के लिए किया गया जो उनको प्रभावित व शिक्षित करते थे । उस दौर में रेडियो दैवीय आपदाओं के दौरान लोगों की कीमती जानों को बचाने में काफी  मददगार हुआ करता था । उन दिनों की अपेक्षा आज के डिजिटल दौर में सूचना क्रांति पहले से कही ज्यादा प्रबल है ।

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