प्रयागराज: अपराधियों की हिस्ट्रीशीट पर हाईकोर्ट ने की अहम टिप्पणी, कहा इसे तैयार करते समय अपराध की श्रेणी... 

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Published By Sachin Sharma
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प्रयागराज। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पुलिस द्वारा तैयार हिस्ट्रीशीट को रद्द करने की मांग को लेकर दाखिल याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि हिस्ट्रीशीटर करार दिए जाने के बाद किसी अपराधी को क्या नुकसान होते हैं या उसके जीवन में उसे इसके क्या परिणाम भुगतने पड़ते हैं। इन प्रश्नों का उत्तर अन्वेषण द्वारा ही प्राप्त किया जा सकता है। 

हिस्ट्रीशीटर एक पदनाम है, जिसे पुलिस द्वारा महत्वपूर्ण आपराधिक इतिहास वाले व्यक्तियों की पहचान करने के लिए नियोजित किया गया है। यह लेबल उन लोगों को दिया जाता है, जिन्हें कई अपराधों में संलिप्त पाया गया है। उनकी आपराधिक गतिविधियों का विवरण पुलिस हिस्ट्रीशीट में विधिवत दर्ज करती है। 

हिस्ट्रीशीट अपराधियों को लगातार पुलिस जांच के अधीन रखती है। एक बार हिस्ट्रीशीट खुलने के बाद अपराधियों को नियमित रूप से पुलिस स्टेशन में उपस्थिति दर्ज करानी पड़ती है। इस नियम के उल्लंघन पर पुलिस अधिकारियों को अपराधियों के आवासों का दौरा करना होता है। 

कोर्ट ने अपराधियों पर पुलिस द्वारा निगरानी रखने के तरीके पर टिप्पणी करते हुए कहा कि यह अपराध और आपराधिक नेटवर्क और सिस्टम का युग है। हालांकि प्रौद्योगिकी प्रगति के बावजूद अब भी जांच एजेंसियां अधिकांश कार्य मैन्युअल रूप से करती हैं। लगभग सभी पुलिस स्टेशनों में तकनीकी जानकारी के अभाव में बड़ी संख्या में आपराधिक मामलों को संभालने की क्षमता नहीं होती है। सीसीटीएनएस प्रणाली का उद्देश्य पुलिस की दक्षता और प्रभावशीलता को बढ़ाना है। 

उक्त टिप्पणी न्यायमूर्ति महेश चंद्र त्रिपाठी और न्यायमूर्ति क्षितिज शैलेंद्र की खंडपीठ ने आफताब आलम की याचिका पर सुनवाई करते हुए की। याची के खिलाफ पुलिस स्टेशन नैनी, इलाहाबाद में आईपीसी के विभिन्न धाराओं के तहत जाली मुद्रा का इस्तेमाल करने के कारण प्राथमिकी दर्ज कराई गई थी। 

याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने मुख्य रूप से कहा कि हिस्ट्रीशीट केवल उन्हीं व्यक्तियों की खोली जानी चाहिए जो आदतन अपराधी हैं। उक्त टिप्पणियों के साथ कोर्ट ने याचिका निस्तारित कर दी।

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