बरेली: कार्यवृत्त में गलत जानकारी दी और खोल दीं बंद अवैध दुकानें

एक पार्षद ने शपथपत्र देकर सदन की कार्यवाही को बताया था गलत

बरेली: कार्यवृत्त में गलत जानकारी दी और खोल दीं बंद अवैध दुकानें

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बरेली, अमृत विचार। नगर निगम की बोर्ड बैठक में कुतुबखाना सब्जी मंडी की अवैध दुकानों को खोलने का प्रस्ताव पास किया गया था। अब यह बात निकल कर सामने आ रही है। मामले में ऑडिटर ने भी आपत्ति दर्ज कराई थी, लेकिन उसे नजर अंदाज किया गया। कमेटी ने भी रिपोर्ट में दुकानों पर अवैध कब्जेदारों के काबिज होने की बात कही थी। इसके बाद भी दुकानें खोल दी गईं।

कुतुबखाना सब्जी मंडी की बंद दुकानों को खोलने के प्रस्ताव के खिलाफ पार्षद कपिल कांत ने बोर्ड बैठक में आपत्ति दर्ज कराते हुए मोशन चस्पा कराया था। पार्षद संजय राय और राजकुमार राजपूत इस मोशन अनुमोदक थे। मामले की शिकायत मंडलायुक्त से भी की गई। उसमें जांच करने के आदेश नगर आयुक्त को दिए गए। इस बीच संजय राय किन्हीं कारणों से पीछे हट गए, लेकिन दूसरे पार्षद ने शपथपत्र देकर अनुमोदक रहना स्वीकार किया।

अवैध दुकानें खुलवाने के लिए कार्यवृत्त से की गई थी छेड़छाड़
सूत्रों के अनुसार अवैध दुकानें खुलवाने के लिए कार्यवृत्त से छेड़छाड़ की गई थी। सदन की 23 अगस्त 23 की बैठक के बाद जो कार्यवृत्त उसी दिन जारी हो जाना चाहिए, वह 15 दिन बाद 6 सितंबर को जारी किया गया। इस कार्यवृत्त में भी यह दर्ज किया गया कि कुतुबखाना सब्जी मंडी में कुछ दुकानें डिमांड रजिस्टर पर दर्ज नहीं हैं। सूत्र बताते हैं शासनादेश है कि बैठक के बाद मुख्य नगर अधिकारी और अन्य अफसरों के हस्ताक्षर से कार्यवृत्त जारी किया जाएगा । इसमें कोई संशोधन होता है तो उसे शासन को भेजा जाएगा, लेकिन कुतुबखाना सब्जी मंडी की दुकानें खुलवाने के लिए जारी किए गए संशोधित कार्यवृत्त में नगर आयुक्त के हस्ताक्षर ही नहीं हैं। केवल एक जनप्रतिनिधि के हस्ताक्षर हैं।

स्थिति जानने के लिए बनी थी कमेटी
पिछले साल अगस्त में हुई बोर्ड बैठक के बाद दुकानों को खुलवाने और उनकी स्थिति जानने के लिए कमेटी बनी थी। कमेटी ने भी रिपोर्ट में कहा कि निगम की दुकान में काबिज व्यक्ति ने अनुमति के बिना पक्का निर्माण कर लिया है। दुकान नंबर 14 सी,15सी, 25 सी के बारे में कहा गया कि निगम की अनुमति के बिना तीन दुकानों को एक और डबल स्टोरी कर लिया गया। यह दुकानें अफसरों की कृपा पर बिना किराए वर्षों से चलती आ रही हैं। 2016- 17 की आडिट रिपोर्ट में भी ऑडिटर ने आपत्ति दर्ज कराई थी। 2012-13 से न तो उक्त दुकानें आवंटित की गई। इनकी मांग भी रजिस्टर पर अंकित नहीं की गई और न किराये की वसूली प्रदर्शित की गई।

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