मुरादाबाद : मौसम के बदले मिजाज से आलू की फसल में बीमारी का खतरा, जिला कृषि अधिकारी ने खेतों का किया निरीक्षण

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Published By Bhawna
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किसानों को दी फसल को बीमारी से बचाव की जानकारी

मुरादाबाद, अमृत विचार। बढ़ती ठंड और घने कोहरे की वजह से आलू की फसल में बीमारी लगने का खतरा बना हुआ है। जिला कृषि अधिकारी डॉ. राजेंद्र सिंह ने देहात क्षेत्र में जाकर किसानों के खेत में निरिक्षण किया और किसानों को बीमारी से बचाव की जानकारी दी। उन्होंने बताया कि बढ़ती ठंड में किसानों द्वारा बोई गई फसलों में फंफूदी जनित रोगों के लगने की सम्भावना बढ़ जाती है। साथ ही मौसम में उतार-चढ़ाव होने पर माहू, चिप्स आदि कीटों के लगने की सम्भावना हो जाती है।

बुधवार को जिला कृषि अधिकारी डॉ. राजेंद्र सिंह ने बताया कि इस वक्त बोई गई आलू की फसलों में निरन्तर देख-रेख करने की आवश्यकता है। बोई गई फसलों में आलू की फसलें इस समय सबसे अधिक रोगों व कीटों से प्रभावित होती है। आलू की फसल में लेट विलाइट नमक बीमारी लगने का खतरा है। आलू की फसल में इस समय अगेती व पिछेती झुलसा रोग के प्रकोप की सम्भावना सबसे अधिक होती है।

अगेती झुलसा से पत्तियों पर कथई भूरे रंग के छोटे-छोटे चकदे बन जाते हैं। जो धीरे-धीरे बढ़ जाते हैं, जिससे पिछेती झुलसा में पत्तियों व तनों पर भूरे रंग के धब्बे और चकदे के ठीक निचली सतह पर काई जैसी फंगस जमा हो जाती है। उन्होंने बताया कि पिछेती झुलसा रोग आलू की फसल पर तेजी से बढ़ता है, जिसको तुरन्त नियंत्रित करने की आवश्यकता होती है।

उन्होंने बचाव की जानकारी देते हुए बताया कि अगेती व पिछेती झुलसा के नियंत्रण के लिए मैकोजेब 75 प्रतिशत इब्ल्यूच्ची की 2.5 ग्राम मात्रा प्रति लीटर पानी अथवा कार्वेण्डाजिम 12 प्रतिशत मैकोजेब 63 प्रतिशत डब्ल्यू.पी. की 2 ग्राम मात्रा प्रति लीटर पानी अथवा जिनेय 75 प्रतिशत डब्ल्यू.पी. की 2.5 ग्राम मात्रा प्रति लीटर पानी के हिसाब से घोल बनाकर फसल पर छिड़काव करें। पिछेती झुलसा का प्रकोप होने पर मेटाएक्सिल 4 प्रतिशत मैकोजेब 64 प्रति. की 2.5 ग्राम मात्रा प्रति लीटर पानी अथवा सायमोक्सानिल 8 प्रतिशत मैकोजेब 64 प्रति की 3 ग्राम मात्रा प्रति लीटर पानी अभया एजेस्ट्रोबिन 18.2 प्रतिनात डिफेनोकोनाजोल 11.4 प्रतिशत एससी की 1 एमएस मात्रा प्रति लीटर पानी अथवा कॉपर आयसीकलोराइड 50 प्रतिशत की 2 ग्राम मात्रा प्रति लीटर पानी के हिसाब से घोल बनाकर छिड़काव करें।

वहीं आलू के खेत में आग जला कर फसल पर धुंए की परत बना कर फसल को पाला से बचाया जा सकता है। अगती खेती में मंडी में आई आलू की फसल में स्वाद की कमी आ रही है। जिससे थोक विक्रेता का आलू बाजार में सधिक मात्रा में नहीं आ पा रहा है। थोक विक्रेताओं को आलू की फसल में इस बार काफी नुकसान होने की संभावना बनी हुई है।

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