Valentine's Day 2025: लवर्स-लेन में लिपटी हैं, न जाने कितनी लव स्टोरी, अंग्रेज जोड़े ही बिताते थे समय
कानपुर, (शैलेश अवस्थी)। पहले तो रोज मिला करती थी तुम छिप-छिपकर, अब ये हाल है कि खत से भी मुलाकात नहीं, रात के ख्वाब सुनाती थी जिसे तुम दिन में, उससे कहने को तुम्हें आज कोई बात नहीं... कवि नीरज की ये पंक्तियां सीएसए कृषि विश्वविद्यालय की उस सर्पाकार लवर्स-लेन के लिए मुफीद बैठती हैं, जो कभी अनगिनत प्रेम कथाओं की साक्षी बनने के बाद अब सूनी नजर आती है।
कानपुर में अंग्रेजों की जमाने में प्रेमियों के कई ठिकाने थे, लेकिन वहां सिर्फ अंग्रेज जोड़ों की ही इंट्री हुआ करती थी। 1878 में अकाल पड़ा तो देश में बड़े पैमाने पर नहरें और तालाब बनवाये गए। कानपुर में जहां अब चंद्र शेखर आज़ाद कृषि विश्वविद्यालय है, वहां एक विशाल तालाब था, जिसे पाटकर सर्किट हाउस, यतीमखाना और कचहरी के साथ अफसरों के बंगले बनवाये गए। 1893 में कृषि कॉलेज का निर्माण हुआ।

इसी दौरान अंग्रेज अफसरों ने सर्पाकार डगर (कंपनी बाग चौराहे की तरफ से गेट में प्रवेश करते ही मुख्य इमारत तक) बनवाई, जिसे लवर्स-लेन कहा गया। इस रास्ते की बनावट ऐसी है, जहां किनारों पर दूर-दूर बैठें तो एक दूसरे को नहीं देख सकते। इसके दोनों तरफ घने पेड़ थे। लेकिन अब वो बात नहीं रही।
फूलबाग़ में जिसे अब केईएम हाल कहते हैं, वहां लकड़ी का मजबूत फ्लोर बनाया गया था, जहां अंग्रेज जोड़ों की शामें गीत-संगीत पर गुलजार होती थीं। लेकिन भारतीयों का प्रवेश वर्जित था। आजादी के बाद मोतीझील की सूनसान झुरमुटें प्रेमी युगलों का पसंदीदा ठिकाना बनीं। अभी भी दोपहर में यहां बड़ी संख्या में प्रेमी जोड़े पहुंचते हैं।
चिड़ियाघर भी प्रेमियों का ठिकाना है, इसे वहां पेड़ों के तनों पर उकेरे प्रेमी और प्रेमिकाओं के नाम तथा दिल के निशान देखकर समझा जा सकता है।अब गंगा बैराज खास मिलन स्थल बन गया है। लेकिन पुलिस के ऑपरेशन मजनू और कुछ संगठनों की वजह से इन सार्वजनिक जगहों पर वेलेंटाइन-डे के मौके पर प्रेमी युगल अब ज्यादा नजर नहीं आते हैं।
गंगा बैराज, मैगी पॉइंट, बिठूर और रेस्टोरेंट
समय के साथ गंगा बैराज, बिठूर और रेस्टोरेंट प्रेम दीवानों के ठिकाने बन गए हैं। कई रेस्टोरेंट, खास तौर पर शहर के बाहरी इलाकों में जोड़ों के ठिकाने हैं। इनमें छोटे-छोटे केबिन डिजाइन किए गए हैं, जहां जोड़े सुकून से समय बिताते हैं।
