संसदीय समिति ने सरकार से कहा- मुफ्त कानूनी सहायता करने वालों को प्रोत्साहन दिया जाए

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Published By Deepak Mishra
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नई दिल्ली। संसद की एक समिति ने कहा है कि मुफ्त कानूनी सहायता उपलब्ध कराने वाले वकीलों के लिए ‘‘राष्ट्रीय पंजीयन’’ स्थापित करने की जरूरत है ताकि उनके काम को न सिर्फ पहचान मिले, बल्कि उनके करियर में तरक्की भी हो सके। कानून और कार्मिक संबंधी स्थायी समिति ने इस बात पर अफसोस भी जताया कि हाशिये पर रहने वाले समुदायों के लिए आवश्यक कानूनी सेवाओं के अधिक उपयोग की क्षमता के बावजूद विधि स्वयंसेवकों (पीएलवी) का इस्तेमाल कम हो रहा है।

‘विधि सेवा प्राधिकरण अधिनियम के तहत कानूनी सहायता के कामकाज की समीक्षा’ पर अपनी पिछली रिपोर्ट पर आगे उठाए गए कदमों से संबिधित रिपोर्ट में समिति ने कहा कि ‘प्रो-बोनो’ (विशेष रूप से गरीबों के लिए दी जाने वाली मुफ्त कानूनी सेवा) को प्रोत्साहित करने और इससे संबंधित वकीलों के लिए प्रोत्साहन राशि बढ़ाने के प्रयास जारी हैं। 

समिति ने कहा, ‘‘व्यवस्थिति प्रोत्साहन और औपचारिक मान्यता के कारण इन लोगों की व्यापक भागीदारी नहीं हो पा रही है। प्रभावी कानूनी प्रतिनिधित्व की महत्वपूर्ण भूमिका स्वीकारते हुए संवैधानिक अदालतों (उच्चतम न्यायालय और 25 उच्च न्यायालयों) ने विशेष रूप से कैदियों के लिए मुफ्त कानूनी सहायता सेवाओं को मजबूत करने की आवश्यकता पर जोर दिया है।’’ 

इस मुद्दे को संबोधित करने के लिए समिति ने ‘प्रो-बोनो’ वकीलों के लिए एक राष्ट्रीय पंजीयत की स्थापना, मान्यता प्रदान करने और उनके योगदान को वरिष्ठ पद या न्यायिक नियुक्तियों जैसे कैरियर में आगे बढ़ने के अवसरों से जोड़ने’’ की सिफारिश की है। यह रिपोर्ट हाल ही में संपन्न हुए बजट सत्र में संसद में पेश की गई थी। समिति ने यह सुझाव भी दिया कि ‘‘प्रोत्साहन राशि की दरों की वार्षिक समीक्षा को बाजार मानकों के अनुरूप संस्थागत बनाया जाना चाहिए।’’

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