Emergency : छात्रों ने यातनाएं सहकर भी दी थी आंदोलन को धार, रिश्तेदारों ने मुंह मोड़ा.....

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Published By Anjali Singh
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शैलेश अवस्थी, कानपुर l पचास साल पहले 25 जून 1975 को आपातकाल लागू हुआ, उसके बाद इसके खिलाफ आवाज़ उठाने वाले विपक्षी नेताओं और छात्रनेताओं को जेल में डाला जाने लगा l उस भयावह दौर में किसी को नौकरी से हांथ धोना पड़ा तो किसी को पुलिस ने ही सरेआम बीच सड़क पर ही धो डाला था l संकट की इस घड़ी में कइयों के रिश्तेदारों ने डर से मुंह मोड़ लिया तो ज़्यादातर के दोस्त भी अनजान बन गए l इस सबके के बीच सैकड़ों का हुज़ूम आपातकाल को लोकतंत्र की हत्या बताते हुए सड़क पर उतरा, आंदोलन किया और जेल जाने से भी बिल्कुल नहीं डरा l

आपातकाल के विरोध में छापे जाते 'जनता समाचार' और 'छात्र रणभेरी' अख़बार छिपकर बांटे और पढ़े जाते थे l कोई इन्हें पढ़ता दिखा तो उसे तत्काल गिरफ्तार कर लिया जाता था l सूबे में मुलायम सिंह यादव की सरकार बनी तो आपातकाल के विरोध में जेल गए लोगों को लोकतंत्र का सेनानी का दर्ज़ा देने के साथ हर महीने 20 हज़ार रुपए पेंशन का आदेश भी ज़ारी किया था l "अमृत विचार" से उस दौर में जेल गए नेताओं ने अपने अनुभव साझा किए....

बहन मृत्यु पर मुश्किल से मिली थी दो घंटे की रिहाई..

मुझे मेरे साथियों सहित गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया गया और कुछ दिन बाद बनारस जेल भेज दिया गया l देशद्रोह,  यानि मीसा ठोक दी गई l सदमे में बहन की हार्टअटैक से मृत्यु हो गई, लेकिन फिर भी रिहा नहीं किया गया, बड़ी मुश्किल से मात्र दो घंटे के लिए पेरोल पर छोड़ा गया तो बहन के अंतिम संस्कार में शामिल हो सका था l उत्पीड़न की हद थी और चौतरफ़ा भय व्याप्त था l-शिव कुमार बेरिया, सपा नेता एवं पूर्व मंत्री 

कालेज में सुतली बम फोड़ा, पुलिस ने जमकर तोड़ा...

मैं डीएवी कालेज का छात्रसंघ उपाध्यक्ष और स्वयंसेवक संघ से जुड़ा था l अशोक सिंहल के आदेश पर कालेज में सत्याग्रह के लिए पहुंचा, सुतली बम फोड़ फोड़ा और इंदिरा गांधी विरोधी नारे लगाए l भारी पुलिस बल आया और पीटकर जेल में डाल दिया था l तीन महीने बाद चलने के काबिल हुआ l देशद्रोह सहित कई धारायें लगाई गईं, डर से नाते-रिश्तेदारों ने मुंह मोड़ लिया, लेकिन झुके नहीं l -रामदेव शुक्ला, वरिष्ठ भाजपा नेता एवं स्वयंसेवी 

पांच महीने की सज़ा भुगती और पिटे भी...

उस दौरान मैं भारतीय विद्यालय छात्रसंघ का महामंत्री था और विद्यार्थी परिषद के लिए काम करता था l इंदिरा गांधी विरोधी नारे लगाने के कारण मुझे गिरफ्तार किया गया था l मैंने अदालत में आरोप स्वीकार करते हुए कहा कि इंदिरा गांधी राष्ट्र नहीं हैं, उनके खिलाफ नारे राष्ट्रद्रोह कैसे हो सकता है l तब मुझे पांच महीने की सज़ा सुनाई गई और मैंने उसे भुगता भी l छात्र नेताओं ने ही उस आंदोलन को धार दी और बड़ी संख्या में वे जेल गए थे l अफ़सोस इसका कि जिन छात्रसंघो ने लोकतंत्र की रक्षा में बड़ी भूमिका निभाई, अब उनका अस्तित्व ही खत्म कर दिया गया है l-कौशल किशोर शर्मा, वरिष्ठ अधिवक्ता 

इंदिरा गांधी के कार्यक्रमों का परचा फाड़ा, नौकरी गई..

मैं स्वयं सेवक संघ से जुड़ा था l देर रात पुलिस आई और मुझे इस तरह उठा ले गई, जैसे डकैत l पहले थाने, फिर जेल में खूब प्रताड़ित किया गया l मेरे ससुर ने मुझसे कहा कि इंदिरा गांधी के 20 सूत्री कार्यक्रमों के पर्चे पर समर्थन के दस्तखत कर दो तो नौकरी बच जाएगी l उनके लिहाज़ से दस्तखत तो कर दिए, लेकिन उन्होंने मेरे तेवर और गुस्सा देख परचा वहीं फड़वा दिया l मेरा परिवार बहुत अभाव में आ गया था, लेकिन हम झुके नहीं l-सोम नारायण शुक्ला, भाजपा के पूर्व ज़िलाध्यक्ष

दुःख और अभाव के बीच कर्तव्य की ख़ुशी भी...

मैं जनसंघ से जुड़ी थी और मुझे गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया गया था l मेरे साथ मेरी तीन साल की बच्ची नीलिमा भी जेल गई l परिवार की चिंता, अभाव और दुःख के बीच देश प्रेम और कर्तव्य निर्वहन के संस्कार ने अवसाद ख़त्म कर दिया और खुश होकर जेल में जूलुस में शामिल होती, इंदिरा गांधी विरोधी नारे लगाती और अपने साथियों के काम में हाथ बटाती थी l बड़े नेताओं का आशीर्वाद मिला ल-प्रेमलता कटियार, भाजपा नेत्री एवं पूर्व मंत्री..

कांग्रेसी बप्पा की नाक में टीन का बिल्ला मारा...

मेरे पिता गौरीशंकर जी गिरफ्तार किए गए तो मुझे गुस्सा था l घर चलना मुश्किल था l तभी पान वाले बप्पा ने चिढ़ाने के लिए मुझे कांग्रेस का टीन का बिल्ला दिया तो मैंने उसे उसकी नाक में फेंक कर मारा l उसकी नाक फट गई, खून निकलने लगा और फिर पुलिस आई l मैं पांच साल का था तो छोड़ दिया गया l इस बीच पिता जी की नौकरी चली गई तो घर में भोजन के लाले पड़ गए ल-अनूप अवस्थी, भाजपा नेता एवं मीडिया प्रभारी

पिताजी को रोक खुद दी गिरफ़्तारी और नारे....

मेरे पिता जी स्वयंसेवक संघ से जुड़े थे और वह गिरफ़्तारी की ज़िद पर अड़े थे, लेकिन घर कैसे चलता l हम उन्हें समझा कर आंदोलनकारियों की टोली में शामिल हो गए और विजयनगर चौराहे पर गिरफ्तार कर लिए गए l पुलिस हमें बेज्जत करती थाने ले गई, फिर जेल भेज दिया, लेकिन जोश कायम रहा l लोकतंत्र की रक्षा ज़रूरी थी ल-प्रकाश चंद्र शुक्ला, स्वयंसेवी एवं कारोबारी

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