हाईकोर्ट : अतिक्रमण की बीमारी का उपचार होना आवश्यक
प्रयागराज, अमृत विचार। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अतिक्रमण की शिकायत लेकर दाखिल जनहित याचिकाओं पर संज्ञान लेते हुए कहा कि ऐसे याचियों को प्रायः अतिक्रमणकारियों और कभी-कभी सरकारी अधिकारियों द्वारा भी धमकाया जाता है। कोर्ट ने माना कि अतिक्रमण की शिकायत 'रोजमर्रा की बीमारी' बन गई है, जिसका इलाज होना अत्यंत आवश्यक है।
अधिकारी और अतिक्रमणकारी ऐसे याचियों को शारीरिक हमले या धमकी देकर याचिका वापस लेने पर मजबूर करते हैं। यह खतरा गंभीर रूप ले चुका है और इसे सख्ती से रोकना आवश्यक हो गया है। उक्त आदेश न्यायमूर्ति जे जे मुनीर की एकलपीठ ने अधिवक्ता कमला कांत द्वारा दाखिल अतिक्रमण के आरोपों से जुड़ी जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए पारित किया।
याचिका में दावा किया गया था कि याचिका दाखिल करने के बाद से ही विपक्षियों द्वारा उन पर और उनके परिवार के सदस्यों पर हमला किया जा रहा है और उनके साथ दुर्व्यवहार किया जा रहा है। इस पर कोर्ट ने कड़ा रुख अपनाते हुए विपक्षियों को याची के परिसर में प्रवेश ना करने तथा याची के परिवार के किसी भी सदस्य से 5 मीटर की दूरी बनाए रखने का स्पष्ट आदेश दिया है। कोर्ट ने जोर देकर कहा कि यह निषेधाज्ञा याची के परिवार के सभी सदस्यों पर लागू होगी।
कोर्ट ने उपरोक्त निर्देशों के प्रभावी क्रियान्वयन को सुनिश्चित करने के लिए पुलिस अधीक्षक, मिर्जापुर और थाना प्रभारी लालगंज, मिर्जापुर को निर्देश दिया, साथ ही आदेश के उल्लंघन पर उन्हें व्यक्तिगत रूप से कोर्ट में उपस्थित होने का भी निर्देश दिया। इसके अलावा संबंधित एसडीओ और जिला मजिस्ट्रेट, मिर्जापुर से एक हलफनामा दाखिल कर यूपी राजस्व संहिता, 2006 की धारा 67 के तहत उक्त मामलों में कार्यवाही की प्रगति का विवरण देने का निर्देश दिया। मामले की सुनवाई आगामी 18 जुलाई को सूचीबद्ध की गई है।
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