आंखों की हरकत खोलती है कई राज... मातृभाषा कैसे बदलती है पढ़ने का अंदाज!
हैमिल्टन। अंतरराष्ट्रीय शोध ने सनसनीखेज खुलासा किया है कि आपकी पहली भाषा न सिर्फ़ सोच को ढालती है, बल्कि पढ़ते वक़्त आंखों की चाल तक तय करती है। इससे पता चलता है कि दुनिया भर के लोग अलग-अलग भाषाओं में टेक्स्ट को कितनी अनोखी तरह से ग्रहण करते हैं।
पढ़ना एक गहन दिमाग़ी कला है, जो करियर की ऊँचाइयाँ और समाज में जगह बनाने का पैमाना बनती है। नए मुल्क में बसने वालों की कामयाबी अक्सर इस पर टिकी होती है कि वे नई ज़बान में कितनी रवानगी से पढ़ पाते हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि भाषाई महारत और पढ़ाई की कुशलता नौकरी व सामाजिक मेलजोल के लिए ज़रूरी कुंजी हैं। कनाडा जैसे देशों में रिकॉर्ड तोड़ प्रवासी आ रहे हैं, लिहाज़ा दूसरी भाषा में पढ़ने के गुर सीखना अब ज़रूरी हो चला है।
दुनिया की लेखन प्रणालियां बेहद रंगारंग हैं। मगर अब तक ज़्यादातर रिसर्च अंग्रेज़ी तक सीमित रही। कुछ भाषाएं अक्षर-आधारित (अंग्रेज़ी, तुर्की), कुछ चित्र-चिह्न वाली (चीनी, जापानी), तो कुछ मात्रा-प्रतीक वाली (हिंदी) होती हैं। पढ़ने की दिशा भी अलग-अलग: बाएँ से दाएँ (रूसी, स्पेनिश) या दाएँ से बाएँ (अरबी, हिब्रू)। सवाल ये कि क्या मातृभाषा में अपनाई पढ़ाई की तरकीबें दूसरी भाषा में भी चली आती हैं?
इसी रहस्य को सुलझाने के लिए ‘मल्टीलिंगुअल आई-मूवमेंट कॉर्पस’ (एमईसीओ) नामकी महत्वाकांक्षी मुहिम चल रही है।
एमईसीओ का जादू क्या है?
दुनिया के 40+ देशों के वैज्ञानिक एक ही तरीके से पढ़ते समय आंखों की चाल ट्रैक कर रहे हैं। हाई-टेक कैमरे बताते हैं कि कौन से शब्द पर नज़र ठहरती है, कौन से दोहराए जाते हैं और कौन से उड़ाए जाते हैं। हर लैब में एक ही अंग्रेज़ी पैसेज पढ़ाया जाता है, साथ ही उसका मातृभाषा में अनुवाद – ताकि फर्क साफ़ दिखे।
चौंकाने वाला नतीजा
मातृभाषा की पढ़ाई शैली दूसरी भाषा पर भी हावी रहती है। करीब 50% मामलों में आंखों की गति पहली भाषा की छाप लिए होती है। मिसाल के तौर पर, कोरियाई में शब्द छोटे मगर घने होते हैं, इसलिए पाठक तेज़ रफ्तार से कई शब्द स्किप करते हैं। वहीं फिनिश में शब्द लंबे-चौड़े, तो हर शब्द पर देर तक रुकते हैं। ये आदतें दूसरी भाषा में भी चिपकी रहती हैं।
दिलचस्प बात: समझ का स्तर मूल अंग्रेज़ी बोलने वालों जितना हो सकता है, मगर आँखें ज़्यादा मेहनत करती दिखती हैं – बार-बार लौटना, लंबी ठहराव।
दूरगामी असर... नई उम्मीद
चीनी विज्ञान अकादमी की याकियान बोरोगजून बाओ, जो पारंपरिक मंगोल लिपि पर काम कर रही हैं, कहती हैं, “एमईसीओ ने मुझे मज़बूत रिसर्च फ्रेमवर्क दिया। ये कम पढ़ी-लिखी भाषाओं पर नई रोशनी डालेगा।” ब्राज़ील की मरीना लीटे मानती हैं कि ये डेटा ब्राज़ीलियाई पुर्तगाली की साक्षरता को निखार सकता है।
शोधकर्ता उम्मीद करते हैं कि बहुभाषी क्लासरूम में ऐसे नतीजे शिक्षकों व नीति-निर्माताओं को ज़्यादा कारगर तरीके सुझाएंगे – ताकि हर बच्चा अपनी ज़बान की ताकत के साथ नई भाषाएँ भी आसानी से गले लगा सके।
