मॉय फर्स्ट राइड: एक भूल जो सबक बन गई

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Published By Anjali Singh
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बचपन में जब भी परिवार के साथ बस में सफर करना होता था, मेरी आंखें हमेशा ड्राइवर की हर हरकत पर टिकी रहती थीं। बाकी बच्चे खिड़की से बाहर झांकते थे, लेकिन मेरा ध्यान इसी बात पर रहता था कि ड्राइवर दो पैरों से तीन पैडल कैसे संभालता है, गियर कब बदलता है और इतने बड़े वाहन को कैसे बिना लड़खड़ाए चलाता है। एक सवाल तो हमेशा मेरे मन को छेड़ता था कि ड्राइवर की सीट बीच में क्यों नहीं होती? अगर होती, तो वह दोनों तरफ बराबर देख सकता। बचपन की इन छोटी-छोटी जिज्ञासाओं ने मुझे गाड़ियों को समझने की एक अजीब-सी उत्सुकता दे दी थी।

इसी वजह से मैं घर पर अक्सर ड्राइविंग की नकल किया करती। मुंह से बस के इंजन की आवाजें निकालते हुए, गियर बदलने का अभिनय करते हुए। तब लगता था कि मैं सिर्फ खेल रही हूं, पर आज समझ आता है कि यही ‘खेल’ मुझे असल स्टेयरिंग तक ले जाने वाला था।

पहली बार कार चलाने का मौका मुझे अचानक ही मिला। एक परिचित ने कहा-“तुम चाहो तो थोड़ी देर कार चला लो।” मैं चौंक भी गई और खुश भी हुईं। ड्राइविंग सीट पर बैठते ही दिल की धड़कन थोड़ी तेज हो गई। बगल वाली सीट पर मेरे बड़े भैया बैठ गए और मैंने मन ही मन सारी ड्राइविंग टिप्स दोहरा लीं। धीरे चलाना है, घबराना नहीं है, एक्सीलेटर हल्का दबाना है।

मैंने गाड़ी धीरे-धीरे आगे बढ़ाई। रास्ते में दो पेड़ थे, जिनके बीच से कार निकालनी थी। मैं ध्यान से स्टेयरिंग मोड़ रही थी, तभी दिमाग में पुराना सवाल जाग गया, हम तो आगे देखकर गाड़ी निकालते हैं, पर पीछे का हिस्सा अपने आप कैसे सुरक्षित निकल जाता है? कार रोककर उतरने का मन हुआ और मैंने सचमुच उतरकर देखा। कुछ देर सोचने के बाद समझ आया कि असली काम तो साइड मिरर करता है। यह समझकर मेरा आत्मविश्वास थोड़ा और बढ़ गया। घर लौटकर मुझे कार को दीवार से बिल्कुल सटाकर पार्क करने का विचार आया। धीरे-धीरे कार आगे बढ़ाई और दीवार के करीब रोक दी। मुझे खुद पर बड़ा गर्व महसूस हो रहा था। तभी अचानक कार जोर से आगे उछली और धक्क से दीवार से टकरा गई। मैं घबरा गई, हाथ-पैर कांपने लगे, समझ ही नहीं आया कि क्या हो गया।

कुछ देर बाद समझ आया- गलती मेरी ही थी। स्कूटर चलाने की आदत में मैंने ब्रेक दबाने की जगह वही पैडल दबाया, जहां स्कूटर में ब्रेक होती है, लेकिन कार में उसी जगह एक्सीलेटर होता है। गाड़ी ठीक करवाई, मन भी संभाला और एक बात हमेशा के लिए सीख ली कि ड्राइविंग सिर्फ देखने से नहीं आती, उसके लिए अभ्यास जरूरी है। अब भी तय नहीं कर पाती कि वह अनुभव सुखद था या दुखद, लेकिन इतना जरूर कह सकती हूँ कि उसी दिन मैंने गाड़ी चलाना सचमुच सीख लिया। ---- दीप्ती चंद्रा