शीतकालीन सत्र की धमाकेदार शुरुआत आज: SIR पर विपक्ष का हल्ला बोल, सदन में हंगामा पक्का!, मणिकम टैगोर ने की ये मांग

Amrit Vichar Network
Published By Muskan Dixit
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नई दिल्ली। संसद का शीतकालीन सत्र आज से शुरू हो रहा है और पहले दिन से ही गरमागरमी के पूरे आसार हैं। विपक्ष ने SIR (संभवतः संवेदनशील खुफिया रिपोर्ट या विशेष जांच रिपोर्ट) को लेकर हंगामा करने का पूरा मन बना लिया है। सत्र 19 दिसंबर तक चलेगा, लेकिन लग रहा है कि ज्यादातर दिन हल्ले-गुल्ले में ही निकल जाएंगे।

पहले दिन से तलवारें खिंचीं  

विपक्षी दल शुरू से ही SIR पर खुली बहस चाहते हैं। इसके अलावा दिल्ली में हाल के विस्फोटों के बाद राष्ट्रीय सुरक्षा, खतरनाक स्तर का वायु प्रदूषण, महंगाई, बेरोजगारी, किसानों की बदहाली और विदेश नीति जैसे मुद्दों पर भी जोरदार हमला बोलने की तैयारी है। कांग्रेस, टीएमसी, सपा, डीएमके समेत तमाम विपक्षी दल एकजुट दिख रहे हैं।

सर्वदलीय बैठक में भी नहीं पिघला बर्फ  

सत्र से एक दिन पहले रविवार को हुई सर्वदलीय बैठक में 36 दलों के करीब 50 नेता पहुंचे थे। सरकार की ओर से रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, जेपी नड्डा, किरेन रीजीजू और अर्जुन राम मेघवाल मौजूद रहे। विपक्ष ने चुनाव सुधारों पर बड़ी बहस की मांग रखी, तो सरकार ने कहा – "जल्द बताएंगे"।  
बैठक के बाद किरेन रीजीजू ने मजाकिया लहजे में कहा, “यह शीतकालीन सत्र है, सबको ठंडे दिमाग से काम करना चाहिए!” – लेकिन विपक्ष का मूड देखकर लगता नहीं कि कोई ठंडक-ठंडक रहने वाला है।

पहले दिन का संभावित सीन  

- सुबह 11 बजे दोनों सदनों की कार्यवाही शुरू होगी 
- विपक्ष का प्लान: SIR और राष्ट्रीय सुरक्षा पर स्थगन प्रस्ताव  
- सरकार की कोशिश: सदन सुचारु रूप से चलाने की  

कुल मिलाकर, इस बार का शीतकालीन सत्र “शीत” तो बिल्कुल नहीं रहने वाला। पहले दिन से ही सदन में आग उगलने और नारों की गूंज सुनाई देने वाली है। देखते हैं इस बार कितने दिन कामकाज चल पाता है और कितने दिन हंगामा!

SIR पर सत्र के पहले दिन लोकसभा में दिया स्थगन प्रस्ताव 

कांग्रेस के मणिकम टैगोर ने शीतकालीन सत्र के पहले दिन एसआईआर पर विशेष चर्चा कराने की मांग करते हुए लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला को स्थगन प्रस्ताव दिया है। 

टैगोर ने अपने स्थगन प्रस्ताव में आरोप लगाया है कि एसआईआर को एकतरफा, अलोकतांत्रिक और पूरी तरह अव्यवस्थित तरीके से लागू किया गया है। उनका कहना है कि इस पर न कोई चर्चा हुई, न किसी से कोई परामर्श हुआ, न राज्यों के साथ समन्वय और न ही जनता की समस्याओं पर विचार हुआ है। 

उन्होंने कहा कि बीएलओ दिन-रात काम कर रहे हैं, शिक्षक कक्षाओं और चुनावी दायित्वों के बीच संघर्ष कर रहे हैं। कई बीएलओ बेहोश हो चुके हैं। कुछ की मौत हो चुकी है। कुछ ने आत्महत्या तक कर ली है। इसके बावजूद चुनाव आयोग ने कोई जांच नहीं की, कोई डेटा जारी नहीं किया, और न ही राज्यवार तथा केंद्रशासित प्रदेशवार बीएलओ मौतों को स्वीकार किया है। उन्होंने कहा कि वह गंभीर मुद्दा है इसलिए सदन में इस पर विशेष चर्चा करना बहुत जरूरी है।

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