पौराणिक कथा: वृषभध्वज और गौ माता
महाभारत अनुशासन पर्व में वृषभ ध्वज की कथा आती है। एक बार गौ माता सुरभि का बछड़ा दूध पी रहा था। दूध पीते हुए बछड़े के मुख पर दूध की झाग लग गई। वही झाग हवा से उड़कर भगवान शंकर के मस्तक पर जा गिरी। ऐसा होने पर भगवान शिव कुछ क्रोधित हो गए।
उस समय प्रजापति जी ने भगवान शंकरसे कहा, “हे प्रभु! आपके मस्तक पर, जो दूध का छींटा पड़ा है। वह अमृत है। बछड़ों के पीने से गाय का दूध जूठा नहीं होता। जैसे अमृत का संग्रह करके चंद्रमा उसे बरसा देता है, वैसे ही रोहणी गायें भी अमृत से उत्पन्न दूध को बरसाती हैं।
जैसे वायु, अग्नि, सुवर्ण, समुंद्र और देवताओं का पिया हुआ अमृत, कभी जूठे नहीं होते, वैसे ही बछड़ों को पिलाती हुई गौ भी कभी दूषित नहीं होती। ये गौमाता अपने दूध-घी से समस्त जगत का पोषण करती हैं। सभी लोग इन गौओं के अमृतमय पवित्र दूध रुपी ऐश्वर्य की इच्छा करते हैं।”
तत्पश्चात प्रजापति जी ने महादेव जीको बहुत सी गौ और एक बैल दिया l इस पर शिवजी ने प्रसन्न होकर वृषभ अर्थात बैल को अपना वाहन बनाया और अपनी ध्वजा को उसी वृषभ के चिह्र से सुशोभित किया। इसी से उनका नाम ‘वृषभ ध्वज’ पड़ा। फिर देवताओं ने महादेव जी को पशुओं का स्वामी बना दिया और गौओं के बीच में उनका नाम ‘वृषांक’ रखा गया।
