हाईकोर्ट : जमानत मामलों में डीजीपी को प्रदेश स्तर पर जवाबदेही तंत्र लागू करने के निर्देश
प्रयागराज, अमृत विचार : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने जमानत मामलों में सरकारी अधिवक्ताओं को आवश्यक निर्देश देने में पुलिस अधिकारियों की लापरवाही पर कड़ी नाराजगी जताते हुए उत्तर प्रदेश के पुलिस महानिदेशक को आदेश दिया है कि वे सभी जिला पुलिस प्रमुखों को परिपत्र जारी करें। ऐसी चूक पाई जाने पर संबंधित अधिकारी के खिलाफ सख्त कार्रवाई अनिवार्य होगी। कोर्ट ने आगे कहा कि पुलिस अधिकारियों की लापरवाही के कारण न्यायालय के निर्देशों की उपेक्षा किसी आरोपी की स्वतंत्रता को सीमित करने का आधार नहीं हो सकती। उक्त टिप्पणी न्यायमूर्ति अरुण कुमार सिंह देशवाल की एकलपीठ ने बीएनएस की विभिन्न धाराओं के तहत दर्ज मामले में विनोद राम द्वारा दाखिल याचिका को स्वीकार करते हुए की।
याची की जमानत याचिका पर सुनवाई के दौरान 8 अक्टूबर को एजीए को जांच और अपहृत व्यक्ति की बरामदगी पर निर्देश प्राप्त करने को कहा गया था, लेकिन 17 नवंबर को पता चला कि बलिया, एसएसपी को अधिवक्ता के कार्यालय से पत्र भेजे जाने के बावजूद कोई निर्देश जारी नहीं हुआ। कोर्ट ने इसे “न्याय प्रशासन में हस्तक्षेप के अलावा कुछ नहीं” मानते हुए इसे “अवमाननापूर्ण कृत्य” करार दिया और एसएसपी, बलिया को व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होने का निर्देश दिया। उपरोक्त आदेश के अनुपालन में एसपी ओमवीर सिंह ने 25 नवंबर को हलफनामा दाखिल कर स्वीकार किया कि सरकारी अधिवक्ता की ओर से पत्र भेजे जाने के बावजूद जांच अधिकारी ने निर्देशों का पालन नहीं किया। उनके विरुद्ध प्रारंभिक जांच शुरू कर निलंबन की कार्रवाई की गई है।
पुलिस ने दावा किया कि तमाम प्रयासों के बाद भी अपहृत व्यक्ति का शव नहीं मिल सका और आशंका है कि आरोपी उसे नदी में फेंक चुके हों। कोर्ट ने कहा कि जांच अधिकारी की लापरवाही के कारण जमानत याचिका अनावश्यक रूप से एक महीने से अधिक लंबित रही। इस देरी के कारण आवेदक की स्वतंत्रता पर प्रतिबंध रहा और जमानत का मामला होने के बावजूद याची न्यायिक हिरासत में रहा। अतः कोर्ट ने राज्य सरकार पर जुर्माना लगाने और उसे याची को क्षतिपूर्ति स्वरूप देने का प्रस्ताव रखा, लेकिन अपर महाधिवक्ता द्वारा अनुरोध करने पर कि भविष्य में ऐसी चूक न दोहराने का राज्य स्तर पर प्रयास किया जाएगा, कोर्ट ने जुर्माने पर विराम लगा दिया।
मामले के गुण-दोष पर विचार करते हुए कोर्ट ने पाया कि याची और कथित अपहृत व्यक्ति के बीच संबंध का कोई प्रत्यक्ष साक्ष्य नहीं है और पूरा आरोप सह–अभियुक्त के बयान पर आधारित है। आरोपपत्र दाखिल होने तथा याची के विरुद्ध कोई आपराधिक इतिहास न होने को देखते हुए उसे जमानत प्रदान कर दी गई। इसके साथ ही कोर्ट ने भविष्य में किसी आरोपी की स्वतंत्रता पर प्रभाव डालने वाली विलंबित प्रक्रिया रोकने हेतु डीजीपी को निर्देश दिया कि सभी जिलों में स्पष्ट परिपत्र जारी कर दिया जाए कि जमानत प्रकरणों में निर्देश देने में लापरवाही पर संबंधित पुलिस अधिकारी के विरुद्ध कठोर अनुशासनात्मक कार्रवाई अनिवार्य होगी।
