पौराणिक कथा: सुदर्शन चक्र की उत्पत्ति
एक समय ऐसा आया जब धरती पर राक्षसों का अत्याचार अपनी चरम सीमा पर पहुंच गया। उनके आतंक से न केवल मनुष्य त्रस्त थे, बल्कि देवताओं के लिए भी धार्मिक कार्य करना कठिन हो गया था। राक्षसों का उद्देश्य केवल पृथ्वी को ही नहीं, बल्कि स्वर्गलोक को भी अपने अधीन करना था। देवराज इंद्र चिंतित थे, राक्षसों की शक्ति प्रतिदिन बढ़ रही थी और देवताओं का सामर्थ्य उनके सामने क्षीण पड़ रहा था। अंततः स्वर्ग के सभी देवगण इंद्र के नेतृत्व में भगवान विष्णु की शरण में पहुंचे और व्याकुल स्वर में बोले- “हे नारायण, राक्षसों का प्रकोप बढ़ता जा रहा है। कृपा कर हमें इस संकट से मुक्ति दें।” भगवान विष्णु देवताओं की व्यथा सुनकर गंभीर हुए। वे जानते थे कि इस विनाशकारी स्थिति का समाधान स्वयं वे नहीं, बल्कि भगवान शिव कर सकते हैं। विष्णुजी शिवजी को अपना आराध्य मानते थे और शिवजी विष्णुजी को अपना इष्ट। इसलिए देवताओं की रक्षा के लिए भगवान विष्णु ने हिमालय की पर्वत शृंखलाओं पर जाकर भगवान शिव की तपस्या करने का निश्चय किया।
विष्णुजी ने शिव के सहस्त्र नामों का जाप आरंभ किया। उनका संकल्प था कि प्रत्येक नाम के साथ एक कमल का फूल अर्पित करेंगे। तप की अग्नि में लीन होकर वे निरंतर एक-एक नाम का उच्चारण करते और कमल अर्पित करते गए। इस अद्भुत भक्ति को देखकर भगवान शिव ने मन ही मन सोचा-“ क्यों न आज मैं अपने आराध्य की भक्ति की परीक्षा लूं?” यही सोचकर शिव ने अपनी दिव्य शक्ति से एक कमल का फूल अदृश्य कर दिया।
तप में लीन भगवान विष्णु को इसका आभास तक न हुआ। जब सहस्त्र नामों के अंतिम नाम का उच्चारण करने का समय आया, तब उन्होंने देखा कि कमल एक कम है। यदि कमल चढ़ाया नहीं गया, तो उनका संकल्प भी अधूरा रह जाएगा और तपस्या भंग हो जाएगी। परंतु भगवान विष्णु का मन तनिक भी विचलित न हुआ। विष्णुजी कमल नयन कहलाते हैं, इसलिए उन्होंने निश्चय किया कि कमल के स्थान पर वे अपनी आंख अर्पित करेंगे। बिना किसी संकोच के अपनी एक आंख भगवान शिव को समर्पित कर दी।
विष्णुजी की इस निष्ठा और त्याग को देखकर भगवान शिव अत्यंत प्रसन्न हुए और तुरंत प्रकट होकर बोले- “हे विष्णु, तुम्हारी भक्ति से मैं अत्यंत प्रसन्न हूं। मांगो, क्या वर चाहते हो?” विष्णुजी ने विनम्र होकर कहा- “प्रभो, राक्षसों के अत्याचार से देवता और मनुष्य सभी कष्ट में हैं। उनका अंत करने हेतु आप ही अजेय शस्त्र दे सकते हैं। वही वर प्रदान कीजिए।” भगवान शिव ने मुस्कुराते हुए अपने परम दिव्य और अजेय शस्त्र सुदर्शन चक्र विष्णुजी को अर्पित किया। इस चक्र की शक्ति से भगवान विष्णु ने समस्त राक्षसों का संहार कर संसार को पुनः धर्म और शांति के मार्ग पर स्थापित किया। – फीचर डेस्क
