अमरकंटक की मिट्टी रंगों की अंतर्राष्ट्रीय उड़ान

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Published By Anjali Singh
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जनगण सिंह श्याम पहले दूरदर्शी भारतीय जनजातीय कलाकारों में से एक थे, जिन्हें अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिली। उनकी कलात्मक शैली परधान गोंड संस्कृति में गहराई से जड़ें जमाए हुए थीं। स्वयं शिक्षित न होने के बावजूद उनकी कला के प्रति रुचि ने उन्हें बचपन में ही रचनात्मकता की ओर प्रेरित किया। वे बालू में टहनियों से चित्र बनाते और चरने वाली भैंसों की पीठ पर चित्रांकन करते थे। उन्हें के सुपुत्र मयंक श्याम भी अपने पिता के नक्षे कदम पर चलते हुए एक अंतरराष्ट्रीय कलाकार बन चुके हैं। यूं तो मयंक के कलाकर्म की प्रदर्शनी विदेशों में होती रहती है। पर इस बात उसे ज्यादा खुशी इसलिए हुई कि पेरिस में प्रदर्शनी के साथ उसके कलाकर्म पर लिखी एक पुस्तक का लोकार्पण भी पेरिस में हुआ।-- रूबी सरकार, वरिष्ठ पत्रकर

Intangible Cultural Heritage (8)

जनगढ़  कलम

मयंक कहते हैं कि मैं खुद को बहुत भाग्यशाली मानता हूं कि मैं एक ऐसे यशस्वी पिता का पुत्र हूं, जिन्होंने अपनी अभूतपूर्व कलाप्रतिभा से एक नवीन चित्रकला शैली को जन्म दिया और उसे वैश्विक पहचान दिलाई। ‘जनगढ़ कलम’ के नाम से स्थापित इस चित्रकला शैली का मैं वारिस हूं और अपने पिता की गौरवशाली विरासत को आगे बढ़ाने का काम कर रहा हूं। ‘जनगढ़ कलम’ चित्रकला शैली की सही जानकारी न होने के कारण कुछ लोग इसे ‘गोंड पेंटिंग’ कहते हैं। 

विरासत को आगे बढ़ाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ 

मुझे अपने पिता से ‘जनगढ़ कलमकारी’ की न सिर्फ तालीम मिली, बल्कि उस विरासत को आगे बढ़ाने और निखारने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। हमारे पूर्वजों के द्वारा बताई गई पारंपरिक कहानियों, कथाओं एवं मेरे पिता के चित्रों से मुझे विशेष प्रेरणा मिली है, जिसके आधार पर मैं अपनी कल्पनाशील विचारों के द्वारा चित्र रचता हूं। मेरे पिता के कारण बचपन से ही मेरे अंदर कला के प्रति विशेष रुचि जन्म ले चुकी थी, परंतु मेरे पिता के देहांत के बाद निरंतर अपने इस कला के प्रति 20 सालों से कार्यरत हूं। वैसे तो आरंभ में मैंने सफेद कागज पर काली स्याही और पेन से चित्र बनाता था बाद में धीरे-धीरे मैं रंगों से जुड़ता चला गया और प्राकृतिक रंगों के जो निखार हैं, उसे एक्रेलिक कलर में बनाकर इस्तेमाल करने लगा और उन रंगों को अपनी चित्रकला में जोड़ने लगा, परंतु चित्रकला के साथ-साथ मैंने अपने पिता को मिट्टी की मूर्ति बनाते और काम करते हुए देखा था, इसलिए मन मे कहीं न कहीं मेरे अंदर मिट्टी और प्रकृति के रंग से जुड़े हुए कुछ काम करने की ललक बनी हुई थी, जिसे मैं किसी न किसी रूप में कभी न कभी करने का इच्छुक था। प्रधान गोंड समाज द्वारा अपने धार्मिक सामाजिक कार्यों में इस्तेमाल की जाने वाली पारंपरिक मिट्टी जिसका नाम रामराज है। यह मिट्टी अमरकंटक के जंगलों में नर्मदा नदी के किनारे मिलती है। मैंने इसी मिट्टी और प्राकृतिक रंगों पर काम करना शुरू किया। 

2021 में मिट्टी के रंगों से पहली बार कागज पर काम किया 

मैंने जनवरी 2021 में मिट्टी के रंगों से पहली बार कागज पर कम किया, जो मेरे लिए बहुत अद्भुत अनुभव था। मैंने पहली बार धरती के रंग से पहला चित्र धरती का ही बनाया। धरती की उत्पत्ति की कहानी को उसमें चित्रित किया था। धीरे-धीरे मैं धरती के रंगों की गहराइयों में उतरता चला गया। इस दौरान मैंने कुछ और भी प्रयोग किए और फूल पत्तियों के रंगों से भी काम करना शुरू किया, जो मेरे लिए और भी आकर्षण का केंद्र था। मयंक कहते हैं कि मेरे पिताजी ने गांव से अपनी दीवारों में अपनी इच्छा कल्पना से जो चित्र रचे थे, उससे प्रेरित होकर, उन्हें भोपाल शहर लाया गया और उन्होंने एक्रेलिक पोस्टर कलर से पहली बार भोपाल शहर में अपनी नई चित्रकला शैली को रचा। पिताजी के आशीर्वाद से प्रधान गोंड समुदाय में मुझे पहली बार पारंपरिक मिट्टी एवं प्राकृतिक रंगों से चित्र बनाने का गौरव प्राप्त हुआ। मैंने प्राकृतिक रंगों का धरती के रंगों के साथ तालमेल बिठाकर अपनी आत्म कल्पना से नए अकार के रंग रूपों को रचना शुरू कर दिया था। मैंने हर एक चित्र में उन कल्पनाओं को चित्रित किया है, जो मेरे अंतर्मन से निकला है।    

चोला माटी   

पेरिस में यह प्रदर्शनी ‘चोला माटी’ के नाम से आयोजित की गई। मेरे पिता एक गीत गाते थे, जिसका आशय यह था कि ‘यह तन मिट्टी का चोला है और एक दिन मिट्टी में मिल जाएगा।’ अपने पिता को मैंने ‘चोला माटी गीत’ गीत गाते हुए अक्सर सुना था। इस आधार पर मैंने मिट्टी और प्राकृतिक रंगों से निर्मित चित्रों की इस प्रदर्शनी के लिए ‘चोला माटी’ नाम सुझाया। जिसे स्वीकार किया गया और इसी नाम से यह प्रदर्शनी और पद्मजा श्रीवास्तव ने इसी नाम से इन चित्रों पर केंद्रित पुस्तक तैयार की।