रामटेक : वनवास के दौरान यहां रुके श्रीराम और पाया ब्रह्मास्त्र

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Published By Anjali Singh
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नागपुर से करीब 50 किलोमीटर दूर रामटेक नामक प्रसिद्ध ऐतिहासिक और धार्मिक स्थान है, जो प्राचीन राम मंदिर और महाकवि कालिदास से जुड़ाव की वजह से मशहूर है। रामटेक स्थित पहाड़ी श्रृंखला को सिंधूरगिरि पर्वत भी कहा जाता है। मान्यता है कि प्रभु श्रीराम वनवास के दौरान यहां माता सीता और भाई लक्ष्मण के साथ रुके थे, इसका उल्लेख वाल्मीकि रामायण और पद्मपुराण में मिलता है। यहीं पर अगस्त्य ऋ षि का आश्रम था। मान्यता यह भी है कि महर्षि अगत्स्य द्वारा यहीं पर प्रभु श्रीराम को ब्रह्मास्त्र दिया गया था। हिंदू धर्मग्रंथों के अनुसार प्रभु श्रीराम ने यहीं पर राक्षसों का संहार करने की प्रतिज्ञा ली थी, जिसका वर्णन रामचरित मानस में मिलता है। वैसे भी टेक का अर्थ प्रतिज्ञा होता है।- अजय त्रिवेदी, उप निदेशक युवा कल्याण

श्रीराम ने यहीं पर ली राक्षसों के संहार की प्रतिज्ञा

जब श्रीराम ने इस स्थान पर हर कहीं हड्डियों के ढेर देखे, तो उन्होंने इस बारे में ऋषि अगत्स्य से प्रश्न किया। इस पर उन्होंने बताया कि यह उन ऋ षियों की हड्डियां हैं, जिनके यज्ञ और पूजा में राक्षस विध्न डालते थे। इसके बाद श्रीराम ने राक्षसों के संहार की प्रतिज्ञा ली। इसी स्थान पर ऋ षि अगत्स्य द्वारा दिए गए ब्रह्मास्त्र से ही श्रीराम ने रावण का वध किया। इस मंदिर को लेकर कहानी है कि प्रभु श्रीराम ने वनवास के दौरान इस स्थान पर चार महीने तक माता सीता और लक्ष्मण के साथ समय बिताया था। माता सीता ने यहीं पहली रसोई बनाई थी और  स्थानीय ऋ षियों को भोजन कराया था।

किले जैसा आभास देता है मंदिर

एक छोटी पहाड़ी पर बने रामटेक मंदिर को गढ़ मंदिर भी कहा जाता है। केवल पत्थरों से बने होने के कारण यह मंदिर किसी किले जैसा लगता है। यह पत्थर एक दूसरे के ऊपर रखे हुए हैं। इसका निर्माण 18 वीं शताब्दी में नागपुर के मराठा शासक राजा रघुजी भोंसले ने छिंदवाड़ा में देवगढ़ के दुर्ग पर विजय प्राप्ति के बाद किया था। मंदिर के पूरब की ओर सुरनदी बहती है। मंदिर परिसर में एक तालाब भी है, जिसे लेकर मान्यता है कि इसमें पानी कभी कम या ज्यादा नहीं होता है। हमेशा सामान्य जल स्तर रहता है। ऐसा माना जाता है कि जब भी बिजली चमकती है, तो मंदिर के शिखर पर ज्योति प्रकाशित होती है, जिसमें भगवान राम का अक्स दिखाई देता है।

महाकवि कालिदास ने यहीं पर लिखा मेघदूत

रामटेक में महाकवि कालिदास जी का एक भव्य दिव्य स्मारक भी मौजूद है। यहीं पर कालिदास द्वारा मेघदूत काव्य की रचना किए जाने का उल्लेख है। इस जगह को रामगिरि भी कहा जाता है। रामटेक में दिगंबर जैन मंदिर भी है, जिसका निर्माण 17 वीं शताब्दी के दौरान जैनियों के दिगंबर संप्रदाय द्वारा किया गया था, जो भगवान महावीर के अनुयायी थे। यह मंदिर जैन धर्म का एक महत्वपूर्ण केंद्र और महाराष्ट्र के सबसे पुराने जैन मंदिरों में से एक है।