कबीर की रूहानियत में नया रंग: जैज-रॉक से लेकर कव्वाली तक, महिंद्रा कबीरा फेस्टिवल में कबीर भजनों का अनोखा फ्यूजन

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Published By Muskan Dixit
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वाराणसी। संत कबीर के दोहों, साखियों और भजनों को लंबे समय तक शास्त्रीय संगीत के साथ गाया जाता रहा है लेकिन अब नए पीढ़ी के गायक और संगीतकार कबीर के गीतों, भजनों के साथ नए प्रयोग कर रहे हैं और उन्हें रॉक, जैज जैसे पश्चिमी संगीत के साथ पेश कर रहे हैं।

अमेरिका के लास एंजिलिस में पैदा हुए और पले बढ़े आदित्य प्रकाश कर्नाटक संगीत के साथ जैज, रॉक संगीत और लोक गायिकी के साथ ही शास्त्रीय संगीत के संयोजन से कबीर के भजनों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक नया कलेवर दे रहे हैं। पिछले दिनों वाराणसी के घाटों पर आयोजित ‘महेंद्रा कबीरा फेस्टिवल’ के दौरान आदित्य ने अपनी गहरी और भारतीय शास्त्रीय रागों में पगी आवाज में कबीर का भजन ‘मोको कहां ढूंढे रे बंदे....’, ‘मीरा के प्रभु गिरधर नागर’, ‘नैनों की मत मानियो रे, नैनों की मत सुनियो’ गाए ।

आदित्य प्रकाश ने कहा, ‘‘ कबीर का काव्य समय की सीमाओं से परे है। कबीर वास्तव में उन लोगों पर सवाल उठाते हैं जो हमें सांप्रदायिक आधार पर विभाजित करना चाहते हैं। कबीर एक ताकत है , समाज में चेतना पैदा करने वाली ताकत। ’’ उनके साथ सेलो (वायलिन जैसा लेकिन बड़ा वाद्य यंत्र) पर क्रिस वोटेक जो. और नवतार (सितार एवं गिटार जैसा वाद्ययंत्र) पर विष्णु आर ने संगत की। इस नए वाद्य यंत्र नवतार को स्वयं विष्णु आर ने डिजाइन किया है और इसका पेटेंट भी उनके पास है। क्रिस वोटेक कुछ ऐसे चुनिंदा सेलो वादकों में से एक हैं जो भारतीय शास्त्रीय संगीत की गायकी अंग शैली में बजाते है जिससे वह सेलो वाद्य यंत्र पर भारतीय गीतों को आसानी से बजा पाते हैं। भारतीय शास्त्रीय संगीत के छात्र क्रिस उस्ताद जाकिर हुसैन जैसे दिग्गजों के साथ प्रस्तुति दे चुके हैं। फ्यूजन संगीत में कबीर के काव्य को ढालने संबंधी सवाल के जवाब में आदित्य प्रकाश का कहना था कि कबीर हमेशा समसामयिक रहे हैं। आप किसी भी समय में, किसी भी तरह से और किसी भी रूप में उन्हें परिभाषित कर सकते हैं। वे किसी एक समय से, किसी एक जाति, एक व्यक्ति या एक संस्कृति से बंधे हुए नहीं हैं । विश्व में कोई भी उनके काव्य और दर्शन से अपना संबंध स्थापित कर सकता है। महान संगीतज्ञ पंडित वसंतराव देशपांडे के पौत्र और प्रख्‍यात भारतीय शास्त्रीय गायक, संगीतकार राहुल देशपांडे ने बेजोड़ आवाज और गमक के उतार चढ़ाव के साथ गाया ‘उड़ जाएगा हंस अकेला, जग दर्शन का मेला....।’

उत्सव की शुरुआत 2014 में स्थापित उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र के समूह रहमत ए नुसरत कबीर के दोहों के गायन से हुई। गायक सर्वजीत टम्टा की अगुवाई में उनका समूह इन्हें कव्वाली की शैली में गा रहा है। वडाली बंधुओं और पद्मश्री अनवर खान मांगनियार जैसे दिग्गज संगीतज्ञों से दीक्षा प्राप्त करने वाले सर्वजीत और उनका समूह मुख्य रूप से नुसरत फतेह अली खान की कव्वालियों को गाता है लेकिन इसके साथ ही वह सूफियाना क़लाम, ग़ज़लें और कबीर के भजनों को भी सुर देता है। फेस्टिवल में समूह ने ‘चलती चाकी देख कर दिया कबीरा रोय, दो पाटन के बीच में साबुत बचा ना कोए’ गाकर माहौल में एक अलग ही रूहानियत पैदा कर दी। इसी समूह ने कबीर के लोकप्रिय भजन ‘भला हुआ मोरी गगरी फूटी...’ को भी कव्वाली के रूप में गाया।

कर्नाटक के बेंगलुरू में 2003 में स्थापित ‘अगम बैंड’ पारंपरिक ध्वनियों को आधुनिक संगीत शैलियों के साथ मिलाकर अद्भुत प्रभाव पैदा करने के लिए मशहूर है । देश का पहला कर्नाटक प्रोग्रेसिव म्यूजिक बैंड ‘अगम’ भी कबीर के भजनों के साथ ही सूफी कलाम के साथ नए प्रयोग कर रहा है। 12 देशों में 700 से अधिक कंर्स्ट पेश कर चुके अगम के मुख्य गायक और संस्थापक हरीश शिवरामकृष्णन ने ‘हर हर महादेव’ को गिटार, बास, कीबोर्ड और ड्रम जैसे पाश्चात्य वाद्य यंत्रों के जरिए प्रस्तुत किया।

विश्व के सर्वाधिक प्रशंसित सितार वादकों में शुमार विलायत खान के वशंज और उनकी विरासत को आगे बढ़ाने वाले हिदायत खान ने सितार पर विभिन्न रागों के साथ बीच बीच में कबीर के दोहों को गाया। बनारस में गंगा के किनारे भोंसले घाट के समीप गुलेरिया कोठी में पिछले दिनों आयोजित महेंद्रा कबीरा फेस्टिवल में इस समूह ने कबीर के दोहों को कव्वालियों में ढाल कर एक अलग ही अनोखा समा बांध दिया। संगीत के साथ ही कबीर के भक्ति साहित्य, दर्शन, उनकी प्रासंगिकता पर चर्चा की गई। टीमवर्क आर्ट्स के मैनेजिंग डायरेक्टर संजय के. रॉय ने कहा ‘‘ वाराणसी महिंद्रा कबीरा फेस्टिवल के लिए सिर्फ़ एक जगह से कहीं ज़्यादा है – यह इसकी भावना का एक अहम हिस्सा है। शहर के घाट, विरासत स्थल और रोज़मर्रा की लय कबीर की कविता और दर्शन से जुड़ने के लिए एक बहुत ही मौलिक माहौल प्रदान करते हैं।’’ 

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