स्मीयर माइक्रोस्कोपी से छूट जाते हैं कई टीबी केस, रिसर्च में हुए बड़े खुलासे

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Published By Muskan Dixit
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संक्रमण की पहचान में ट्रूनैट की बेहतर संवेदनशीलता

लखनऊ, अमृत विचार : ट्यूबरक्लोसिस (टीबी) के लिए सबसे ज्यादा इस्तेमाल होने वाले डायग्नोस्टिक टेस्ट- स्मीयर माइक्रोस्कोपी की सीमित संवेदनशीलता के कारण बड़ी संख्या में टीबी के मामले बिना पता चले रह जाते हैं। इस बात का खुलासा ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (एम्स), गोरखपुर द्वारा किए गए और इंटरनेशनल जर्नल ऑफ माइकोबैक्टीरियोलॉजी में प्रकाशित अध्ययन में हुआ है।

अध्ययन के अनुसार, 4,249 पल्मोनरी और एक्स्ट्रा-पल्मोनरी नमूनों के विश्लेषण से पता चला कि स्मीयर माइक्रोस्कोपी ने केवल 4.3 प्रतिशत मामलों में टीबी का पता लगाया। इसकी तुलना में, ट्रूनैट माइकोबैक्टीरियम टीबी-रिफैम्पिसिन (आरआईएफ) टेस्ट ने 13.7 प्रतिशत नमूनों में इन्फेक्शन की पहचान की, जो इसकी बेहतर संवेदनशीलता को दर्शाता है। चेस्ट रोग विशेषज्ञ डॉ. आशुतोष दुबे ने बताया कि स्मीयर माइक्रोस्कोपी सस्ती और आसानी से उपलब्ध है, लेकिन इसकी संवेदनशीलता सीमित है। ट्रूनैट, जो भारत में बना एक चिप-आधारित रियल-टाइम पीसीआर टेस्ट है और डब्लूएचओ द्वारा समर्थित है, टीबी का तेजी से पता लगा सकता है और रिफैम्पिसिन रेजिस्टेंस की पहचान कर सकता है, जो इस स्टडी में कन्फर्म मामलों में से 5.6 प्रतिशत में पाया गया था। उन्होंने कहा कि सही इलाज शुरू करने और आगे संक्रमण को रोकने के लिए दवा प्रतिरोध का शुरुआती पता लगाना बहुत जरूरी है। पारंपरिक माइक्रोस्कोपी को मॉलिक्यूलर डायग्नोस्टिक्स के साथ मिलाने से सीमित संसाधनों वाले व ज्यादा बोझ वाले क्षेत्रों में टीबी नियंत्रण प्रयासों को काफी मजबूत किया जा सकता है।

डॉ.श्यामा प्रसाद मुखर्जी (सिविल) अस्पताल लखनऊ के वरिष्ठ चेस्ट रोग विशेषज्ञ डॉ.आशुतोष दुबे ने बताया कि पारंपरिक माइक्रोस्कोपी को मॉलिक्यूलर डायग्नोस्टिक्स के साथ मिलाने से टीबी नियंत्रण प्रयासों को काफी मजबूत किया जा सकता है, खासकर ग्रामीण और वंचित क्षेत्रों में। अगर भारत को टीबी खत्म करने का अपना लक्ष्य पूरा करना है तो ट्रूनेट जैसे टेस्ट को बढ़ाना जरूरी है।

टीबी कार्यक्रम खुद टीबी की चपेट में, जांच ठप

वर्ष 2025 तक टीबी उन्मूलन का दावा करने वाले स्वास्थ्य विभाग में टीबी संदिग्ध और पंजीकृत मरीजों की जांच तक नहीं हो पा रही है। करीब एक माह पहले सीबी-नॉट कार्ट्रिज खत्म हो जाने से राजधानी समेत अन्य जिलों की सभी मशीनें बंद पड़ी हैं। इसी तरह ट्रूनैट चिप उपलब्ध न होने के कारण ट्रूनैट मशीनें भी पूरी तरह ठप हैं। इतना ही नहीं, जांच केंद्रों पर लैब रजिस्टर, कल्चर रजिस्टर और डीएसटी (ड्रग सेंसिटिविटी टेस्ट) रजिस्टर जैसे मूलभूत अभिलेख तक उपलब्ध नहीं हैं।

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