हल्द्वानी: वक्ताओं की ताकत, लेखक का अभिमान है भाषा : डॉ. प्रभा

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हल्द्वानी,अमृत विचार। हिंदी भाषा भारतीय संस्कृति की ध्वजवाहक है। इसके प्रचार-प्रसार को लेकर हर वर्ग को आगे आना चाहिए। हिंदी भाषा का अधिक से अधिक प्रचार ही विश्व पटल पर भारतीयता को मजबूती प्रदान करेगा। हिंदी के मान-सम्मान की बात तो सब करते हैं, लेकिन उनके प्रचार-प्रसार का दायरा बहुत सीमित रह जाता है। ऐसे …

हल्द्वानी,अमृत विचार। हिंदी भाषा भारतीय संस्कृति की ध्वजवाहक है। इसके प्रचार-प्रसार को लेकर हर वर्ग को आगे आना चाहिए। हिंदी भाषा का अधिक से अधिक प्रचार ही विश्व पटल पर भारतीयता को मजबूती प्रदान करेगा। हिंदी के मान-सम्मान की बात तो सब करते हैं, लेकिन उनके प्रचार-प्रसार का दायरा बहुत सीमित रह जाता है। ऐसे में कुछ ऐसे हिंदी प्रेमी ऐसे भी हैं जो समाज को भाषा प्रेम के लिए जागरूक करने का काम कर रहे हैं। वहीं युवा पीढ़ी में भाषा की महत्ता को लेकर ज्ञान की अलख जगा रहे हैं।

वक्ताओं की ताकत भाषा, लेखक का अभिमान है भाषा, भाषाओं के शीर्ष पर बैठी मेरी प्यारी हिंदी भाषा… यह कहना है शहर के प्रमुख एमबीपीजी कॉलेज में हिंदी विभागाध्यक्ष के पद पर कार्यरत डॉ. प्रभा पंत का। वह पिछले 24 वर्षों से विद्यार्थियों को न केवल हिंदी विषय पढ़ा रही हैं, बल्कि वह भाषा के प्रयोग और उसको जीवन में आत्मसात करने के लिए भी विद्यार्थियों को प्रेरित करती हैं।

उनकी पहचान भी उनकी भाषा विशेषज्ञता से ही है। स्वभाव से सौम्य और मृदुभाषी प्रभा को अनेक राष्ट्रीय सांस्कृतिक, सामाजिक और अकादमिक मंचों पर संचालन के लिए विशेषज्ञ के तौर पर आमंत्रित किया जाता है। बड़े-बड़े मंचों पर भी वह अपनी बात भी हिंदी में ही रखती हैं। इसके लिए उन्हें कई मंचों पर सम्मानित भी किया जा चुका है। यही उनकी विशेषता है कि कोई अंग्रेजी भाषा में भी बात करे तो वह उसका जवाब भी हिंदी में ही देती हैं।

हालांकि प्रभा कहती हैं कि वह भाषा को लेकर कट्टर नहीं हैं। वह इतना चाहती हैं कि सभी अपनी भाषा को अधिक महत्व और प्रेम दें। वह कहती हैं कि भाषा से उनके राष्ट्र की पहचान है। इसलिए जहां अन्य भाषाओं का ज्ञान व्यक्तित्व का विकास करता है, वहीं अपनी भाषा से व्यक्तित्व की पहचान होती है। इसलिए बच्चों को बालपन से ही भाषा के प्रयोग को लेकर संस्कार देने चाहिए। प्रभा बालसाहित्य सम्मेलनों के जरिए भी बच्चों और माता-पिता को हिंदी के लिए जागरूक करती हैं।

सिंहस्थ महाकुंभ में कर चुकी हैं राज्य का प्रतिनिधित्व
नेपाल, मुंबई, दिल्ली, उत्तराखंड के कई शहरों में वह सम्मानित मंचों पर हिंदी भाषा में अपना वक्त्वय दे चुकी हैं। साल 2016 में मध्य प्रदेश में हुए सिंहस्थ महाकुंभ में भी वह 142 देशों के प्रतिनिधित्वों के समक्ष राज्य का प्रतिनिधत्व कर चुकी हैं।

इतिहास के गुम रचनाकारों को दिला रहीं पहचान
प्रभा ऐसे रचनाकारों को लघुशोध के जरिए पहचान दिला रही हैं। जिन्हें इतिहास ने भले ही कोई महत्व नहीं दिया। मगर वास्तविक जिंदगी में उन्होंने भाषा के विकास, उसके प्रयोग को लेकर अपना अमूल्य योगदान दिया। इनमें कुमाऊं, गढ़वाल के लोक रचनाकार भी शामिल हैं। उनके 58 लघुशोध अभी तक प्रकाशित हो चुके हैं।

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