लखनऊ: प्रेसीडेंशियल ट्रेन के लोको पायलट ने कहा-जिंदगी भर याद रहेगा यह लम्हा

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लखनऊ। प्रेसीडेंशियल ट्रेन को लेकर कानपुर से लखनऊ पहुंचे लोको पायलट अपनी ड्यूटी करने के बाद काफी उत्साहित दिखें। ये सभी लोको पायलट उत्तर रेलवे लखनऊ मंडल के थे। ट्रेन पहुंचने पर उनसे बातचीत की गई तो उनका कहना था कि ये लम्हा उन्हें जिंदगी भर याद रहेगा। यह हमारे लिए तो गौरव के क्षण …

लखनऊ। प्रेसीडेंशियल ट्रेन को लेकर कानपुर से लखनऊ पहुंचे लोको पायलट अपनी ड्यूटी करने के बाद काफी उत्साहित दिखें। ये सभी लोको पायलट उत्तर रेलवे लखनऊ मंडल के थे। ट्रेन पहुंचने पर उनसे बातचीत की गई तो उनका कहना था कि ये लम्हा उन्हें जिंदगी भर याद रहेगा। यह हमारे लिए तो गौरव के क्षण हैं ही साथ ही भारतीय रेलवे के लिए भी गौरव की बात है। इस गौरव को इतिहास के पन्नों पर दर्ज किया जाएगा। जिसमें रेलवे के प्रयास और कर्मचारियों की अहम भूमिका का जिक्र होना भी अपने आप में गर्व का विषय होगा। ऐसे में लोको पायलटों की ख्वाहिश हैं कि राष्ट्रपति के साथ ही प्रधानमंत्री भी ट्रेन से सफर करें तो इससे भारतीय रेलवे का सम्मान और बढ़ेगा।

मुख्य लोको पायलट राजेश कुमार ने निभाई भूमिका
प्रेसीडेंशियल ट्रेन के मुख्य लोको पायलट राजेश कुमार बताते है कि यह बड़े गौरव की बात है और यह किस्मत की बात भी है। सबको ऐसा मौका नहीं मिलता। यह मेरा पहला अनुभव रहा है। लोको पायलटों की वर्किंग देखकर तैनाती का मौका मिला। आठ सदस्यीय लोको पायलटों के दल को मौका मिला कार्य करने का लिए। यह बहुत बड़ी उपलब्धि है। महामहिम राष्ट्रपति स्पेशल ट्रेन चलाने पर गर्व महसूस हो रहा है।

दो पायलटों से बातचीत
प्रदीप रस्तोगी-सब कुछ पहले से तय था। ट्रेन कब रवाना होगी और कितने बजे पहुंचेगी। ट्रेन की रफ्तार भी 90 से 110 किलोमीटर प्रति घंटे से रही। इस ट्रेन को चलाकर हम लोग रास्ते भर सिर्फ अपने भाग्यशाली मान रहे थे कि प्रेसीडेंशियल ट्रेन चलाने का मौका मिला।

नंदलाल-लोको चालक दल के मुख्य सदस्य थे। समय-समय पर अन्य पायलटों को दिशा निर्देश दिए जा रहे थे। बीच रास्ते में ट्रेन कहीं भी नहीं रूकी। ट्रेन संचालन का पूरा सिस्टम हाईटेक था। पहली बार प्रेसीडेंशियल ट्रेन का चलाने का अनुभव जोश भर देने वाला था।

इन आठ पायलटों की लगी थी ड्यूटी
मुख्य पायलट राजेश कुमार, सेकेंड पायलट प्रदीप रस्तोगी के अलावा नंदलाल, प्रभाकर कुमार, शिवकुमार, आरजी वर्मा, पूणेश्वर और आरके अरोड़ा मिलाकर आठ लोगों की पायलटों की ड्यूटी लगी थी। इनमें दो पायलट इंजन पर, दो पायलट पीछे व चार पायलट बीच में नजर बनाए हुए थे।

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