उत्तराखंड में एक बार फिर सियासी बदलाव की सुगबुगाहट
अंकुर शर्मा, हल्द्वानी। उत्तराखंड में एक बार फिर सियासी बदलाव की सुगबुगाहट शुरू हो गई है। भाजपा के चिंतन शिविर के तुरंत बाद ही मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत को दिल्ली तलब किए जाने से राजनैतिक गलियारे में सियासी बदलाव की चर्चाएं तेज हो गई हैं। हालांकि भाजपा का दावा है कि मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत …
अंकुर शर्मा, हल्द्वानी। उत्तराखंड में एक बार फिर सियासी बदलाव की सुगबुगाहट शुरू हो गई है। भाजपा के चिंतन शिविर के तुरंत बाद ही मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत को दिल्ली तलब किए जाने से राजनैतिक गलियारे में सियासी बदलाव की चर्चाएं तेज हो गई हैं। हालांकि भाजपा का दावा है कि मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत से उपचुनाव और आगामी विस चुनाव की तैयारियों को लेकर चर्चा की जा रही है।
भाजपा ने रामनगर में तीन दिन चले चिंतन शिविर में उत्तराखंड में वर्तमान राजनैतिक परिदृश्य, पार्टी की स्थिति, एंटी इंकम्बेंसी के प्रभाव, गुटबाजी, कमजोरियां और ताकत, विपक्षी दल कांग्रेस की स्थिति आदि को लेकर गहन मंथन किया। इस मंथन में भाजपा के राष्ट्रीय संगठन मंत्री बीएल संतोष, मुख्यमंत्री, कैबिनेट मंत्री समेत चुनिंदा पदाधिकारियों ने हिस्सा लिया था। इस शिविर में मुख्यमंत्री को बदले जाने को लेकर भी कयास लगाए जा रहे थे। इधर, मंगलवार को चिंतन शिविर के समाप्त होने के तुरंत बाद ही सीएम तीरथ सिंह रावत व दिग्गजों को दिल्ली तलब कर लिया गया है।
राजनैतिक जानकारों की मानें तो टीएसआर-टू को सितंबर से पूर्व विस चुनाव लडना है लेकिन चुनाव आयोग ने महामारी का हवाला देते हुए चुनाव कराने से इंकार कर दिया है। पश्चिम बंगाल को घेरने में जुटा भाजपा का आलाकमान उत्तराखंड में कोई गलती नहीं करना चाहता है। ऐसे में नेतृत्व परिवर्तन की चर्चाओं को बल मिल गया है। वहीं, यह भी कयास लगाए जा रहे हैं कि टीएसआर-वन या टू को केंद्र में भी बुलाया जा सकता है। वहीं, अभी तक नंबर दो की हैसियत में रह रहे कैबिनेट मंत्री या सीनियर विधायक को भी मौका दिया जा सकता है। उधर, कांग्रेस से बागी होकर भाजपा में शामिल हुए मंत्रियों ने भी सियासी चेहरा बनने के लिए पैरवी शुरू कर दी है, लेकिन इससे भाजपा कैडर में टकराव हो सकता है। इसी के मद्देनजर आलाकमान बीच का रास्ता निकालने में जुट गया है।
यह नियम आया आड़े
तीरथ सिंह रावत ने 10 मार्च 2021 को मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी। भारतीय संविधान अनुच्छेद के 164 (4) के तहत कोई भी छह माह की अवधि तक मंत्री रह सकता है। इस अवधि के समाप्त होने पर मंत्री नहीं रहेगा। इससे पूर्व सदन की सदस्यता लेनी होगी। कानूनी जानकारों के अनुसार लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 151 क के अनुसार कोई भी विस सीट खाली होने पर छह माह के भीतर चुनाव कराया जाना चाहिए लेकिन यह नियम तब लागू नहीं होगा जब निर्वाचित व्यक्ति का कार्यकाल एक साल से कम रह गया हो। चूंकि अब जून का महीना निकल चुका है। जबकि 24 मार्च 2022 को यानी 8 माह 24 दिन बाद नई सरकार का गठन होना है। ऐसे में तीरथ सिंह रावत के सामने संकट विकट हो गया है।
… तो राष्ट्रपित शासन भी हो सकता है विकल्प
मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत की अधिकतम छह माह तक बने रहने की अवधि भाजपा के पास सितंबर में समाप्त हो रही है। ऐसे में भाजपा के पास इसके बाद राष्ट्रपति शासन लागू करने का भी विकल्प है क्योंकि केंद्र में भाजपा की सरकार है। ऐसे में अप्रत्यक्ष तौर पर यहां भी भाजपा का शासन रहेगा।
