हल्द्वानी: फिर से ठाकुर चेहरे पर ही खेला दांव, पांच ठाकुर तो पांच ब्राह्मण जाति के नेता बन चुके हैं सीएम

Amrit Vichar Network
Published By Amrit Vichar
On

नरेन्द्र देव सिंह, हल्द्वानी। जाति और क्षेत्र की राजनीति उत्तराखंड पर भी अपना असर डालती है। राज्य गठन के बाद से जहां एक सीएम को छोड़कर ज्यादार ब्राह्मण जाति के सीएम का बोलबाला रहा है वहीं हरीश रावत के सीएम के बनने के बाद यह परिपाटी बदल गई। जिसका नतीजा यह है कि भाजपा ने …

नरेन्द्र देव सिंह, हल्द्वानी। जाति और क्षेत्र की राजनीति उत्तराखंड पर भी अपना असर डालती है। राज्य गठन के बाद से जहां एक सीएम को छोड़कर ज्यादार ब्राह्मण जाति के सीएम का बोलबाला रहा है वहीं हरीश रावत के सीएम के बनने के बाद यह परिपाटी बदल गई। जिसका नतीजा यह है कि भाजपा ने इस बार जीतनी बार भी सीएम के चेहरे दिए वो सब ठाकुर जाति के ही रहे। जबकि एक समय भाजपा में भी ब्राह्मण चेहरों का इस पद के लिए बोलबाला रहता था।

राज्य गठन के बाद भाजपा की सरकार बनी। जिस चेहरे की सबसे ज्यादा चर्चा थी वो नाम था भगत सिंह कोश्यारी। कोश्यारी उस समय भाजपा के युवा और तेज तर्रार नेता माने जाते थे। लेकिन लाल कृष्ण आडवाणी से नजदीकी के चलते गुमनाम से ब्राहमण चेहरा नित्यानंद स्वामी को सीएम बना दिया गया। भाजपा का यह पासा ज्यादा दिन तक नहीं चला और चुनाव से कुछ माह पहले ही भगत सिंह कोश्यारी को सीएम बना दिया गया। कोश्यारी ठाकुर जाति के थे। बाद में भाजपा सत्ता से बाहर हो गई तो कांग्रेस ने कद्दावार एनडी तिवारी को सीएम बना दिया। इसके बाद से राज्य में सीएम पद के लिए ब्राह्मण नेताओं की तूती बोलने लगी।

चाहें भाजपा हो या कांग्रेस सीएम पद के लिए ब्राह्मण चेहरे की चुने जाने लगे। जब कांग्रेस सत्ता से बाहर से हुई तो भाजपा ने पांच साल में तीन बार सीएम बदले। इसमें दो बार मौका ब्राह्मण जाति के भुवन चंद्र खंडूड़ी तो एक बार ब्राह्मण जाति के रमेश पोखरियाल निशंक को ही सीएम बनाया गया। 2012 फिर से कांग्रेस की सरकार बनी। हरीश रावत ने सीएम बनने के लिए पूरी ताकत लगा दी लेकिन मौका विजय बहुगुणा को मिला। हालांकि बाद में कांग्रेस ने हरीश रावत को ही सीएम बना दिया और 12 साल बाद उत्तराखंड में फिर से किसी ठाकुर नेता को सीएम बनने का मौका मिला।

कहा जाता है कि हरीश रावत ने अंदर ही अंदर ही ठाकुर राजनीति को लेकर लॉबी बनाना भी शुरू कर दी थी। हरीश रावत बाद में सत्ता से बाहर हो गए। बाद में भाजपा ने सरकार बनने पर त्रिवेंद्र सिंह रावत को मौका दिया। लग रहा था कि रावत पूरे पांच साल का कार्यकाल पूरा कर लेंगे। लेकिन उनके बाद तीरथ सिंह रावत और कुछ ही महीनों बाद पुष्कर सिंह धामी को सीएम बना दिया गया। भाजपा ने सीएम तो बदला लेकिन इस बार भी ठाकुर जाति पर ही भरोसा दिखाया है। देखना यह है कि भाजपा का यह दांव कितना सफल होता है।

उत्तराखंड के सीएम जाति क्षेत्र
नित्यानंद स्वामी, ब्राह्मण, गढ़वाल
भगत सिंह कोश्यारी, ठाकुर, कुमाऊं
एनडी तिवारी, ब्राह्मण, कुमाऊं
भुवन खंडूड़ी, ब्राह्मण, गढ़वाल
रमेश पोखरियाल निशंक, ब्राह्मण, गढ़वाल
विजय बहुगुणा, ब्राह्मण, गढ़वाल
हरीश रावत ठाकुर कुमाऊं
त्रिवेंद्र सिंह रावत, ठाकुर, गढ़वाल
तीरथ सिंह रावत, ठाकुर, गढ़वाल
पुष्कर सिंह धामी, ठाकुर, कुमाऊं

दलित नेताओं को कभी नहीं मिला मौका
हल्द्वानी। उत्तराखंड में सीएम पद के लिए कभी भी दलित नेता का मौका नहीं दिया गया है। जबकि यहां पर दलित जाति की काफी आबादी है। इस समय भाजपा में बड़े दलित नेता हैं। यशपाल आर्या और अजय टम्टा का कद भी बड़ा है। हालांकि एक बार साल 2012 में यशपाल आर्या सीएम बनने के नजदीक पहुंच गए थे लेकिन बाद में बाजी विजय बहुगुणा मार ले गए। उसके बाद और उससे पहले कभी भी कोई भी दलित नेता सीएम पद के लिए चर्चाओं में नहीं आया।

संबंधित समाचार