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Indian Urdu poet
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मैं ढूँडता हूँ जिसे वो जहाँ नहीं मिलता
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By Amrit Vichar
मैं ढूँडता हूँ जिसे वो जहाँ नहीं मिलता नई ज़मीन नया आसमाँ नहीं मिलता नई ज़मीन नया आसमाँ भी मिल जाए नए बशर का कहीं कुछ निशाँ नहीं मिलता वो तेग़ मिल गई जिस से हुआ है क़त्ल मिरा किसी के हाथ का उस पर निशाँ नहीं मिलता वो मेरा गाँव है वो मेरे गाँव …
नई दुनिया मुजस्सम दिलकशी मालूम होती है
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By Amrit Vichar
नई दुनिया मुजस्सम दिलकशी मालूम होती है मगर इस हुस्न में दिल की कमी मालूम होती है हिजाबों में नसीम-ए-ज़िंदगी मालूम होती है किसी दामन की हल्की थरथरी मालूम होती है मिरी रातों की ख़ुनकी है तिरे गेसू-ए-पुर-ख़म में ये बढ़ती छाँव भी कितनी घनी मालूम होती है वो अच्छा था जो बेड़ा मौज के …
नई दुनिया मुजस्सम दिलकशी मालूम होती है
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By Amrit Vichar
नई दुनिया मुजस्सम दिलकशी मालूम होती है मगर इस हुस्न में दिल की कमी मालूम होती है हिजाबों में नसीम-ए-ज़िंदगी मालूम होती है किसी दामन की हल्की थरथरी मालूम होती है मिरी रातों की ख़ुनकी है तिरे गेसू-ए-पुर-ख़म में ये बढ़ती छाँव भी कितनी घनी मालूम होती है वो अच्छा था जो बेड़ा मौज के …
