पढ़ें हीर और रांझा की प्रेम कहानी, जानें क्यों होना पड़ा था एक-दूसरे से अलग?

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हीर रांझा की कहानी दुनिया को ये बतलाती है कि इंसान के लिए प्यार से बड़ी दौलत और कुछ भी नहीं। प्यार की पहचान हो जाए तो कोई बादशाह अपना तख्त छोड़ कर संयासी तक बन सकता है। तख़्तहज़ारे गांव के एक संपन्न परिवार का लड़का था रांझा। अपने मां बाप का लाडला था। वहीं …

हीर रांझा की कहानी दुनिया को ये बतलाती है कि इंसान के लिए प्यार से बड़ी दौलत और कुछ भी नहीं। प्यार की पहचान हो जाए तो कोई बादशाह अपना तख्त छोड़ कर संयासी तक बन सकता है। तख़्तहज़ारे गांव के एक संपन्न परिवार का लड़का था रांझा। अपने मां बाप का लाडला था। वहीं सियाल कबीले की हीर की सुंदरता के चर्चे हर तरफ थे। रांझा वैसे तो चार भाइयों में सबसे छोटा होने के कारण पिता का दुलारा था लेकिन अपने भाइयों और भाभिओं के भेदभाव के कारण घर छोड़ आया था। उसकी किस्मत उसे भटकाते हुए सियाल ले आई। यहीं उसने हीर को पहली बार देखा और उसे दिल दे बैठा।

वो हीर के पिता के यहां भैंसों की देखभाल और उन्हें चराने का काम करने लगा। हीर भी उसकी मोहब्बत में पड़ चुकी थी। दोनों के प्रेम को बारह साल बीत गये। इस प्रेम कहानी के साथ वियोग तब जुड़ गया जब हीर की शादी सैदा खेड़ा के साथ कर दी गयी। रांझा इस वियोग को सह ना सका और गोरखनाथ से दीक्षा लेकर संन्यासी बन गया। वो हीर के वियोग में भटकता रहा और एक दिन किस्मत उसे हीर के ससुराल तक ले गयी।  यहां हीर को जहर दे दिया गया तथा रांझे ने भी उसके वियोग में मौत को गले लगा लिया।

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