सहारनपुर: देवबंद में ‘पैंदी’ प्रजाति के बेर लुप्त होने की कगार पर, बड़ा रसीला होता है यह फल

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सहारनपुर। कृषि वैज्ञानिकों की उपेक्षित रवैये और नगरीकरण की होड़ के चलते सहारनपुर में देवबंद का प्रसिद्ध विशेष ‘पैंदी’ प्रजाति के रसीला बेर अब लुप्त होने के कगार पर है। स्थानीय फल कारोबारियों का कहना है कि लगता है कि आने वाले समय में देवबंद नगर का यह मीठा बेर लोगों को ढूढ़ने से भी …

सहारनपुर। कृषि वैज्ञानिकों की उपेक्षित रवैये और नगरीकरण की होड़ के चलते सहारनपुर में देवबंद का प्रसिद्ध विशेष ‘पैंदी’ प्रजाति के रसीला बेर अब लुप्त होने के कगार पर है।

स्थानीय फल कारोबारियों का कहना है कि लगता है कि आने वाले समय में देवबंद नगर का यह मीठा बेर लोगों को ढूढ़ने से भी नहीं मिलेगा और यह बीते दिनों की बात बनकर रह जाएगा। यहां के बेरों की विशेषता एवं पहचान यह है कि यह बहुत अधिक मीठा होने के कारण बीच में से फट जाता है और यह फटा हुआ बेर ही ‘देवबंदी बेर’ के नाम से जाना जाता है। दूर-दराज एवं आस-पास के सभी शहरों में बेरों को अब भी देवबंद का बेर कहकर बेचते हुए देखा जा सकता है।

बेरों के रखरखाव में आ रहा ज्यादा खर्च

देवबंद में बेरों के बागों के मालिकों का कहना है कि बेर के बागों की हर साल एक बहार 30 से 40 हजार रूपए से अधिक नहीं बिकती है, जबकि इनके रख-रखाव में इससे भी कहीं अधिक खर्च हो जाता है। इस कारण बाग के स्वामी बचत न होने के कारण बेरियों को काटनें को मजबूर है।

एक पेड़ से करीब 60 किलो से लेकर एक क्विंटल तक बेर मिलते है और इन्हें बाजार में बेचने के बाद 15 सौ से 2 हजार रूपए तक की आमदनी ही बामुश्किल हो पाती है। देवबंद क्षेत्र में दो दशक पहले तक बेरों के 50 से 70 बाग हुआ करते थे लेकिन नगरीकरण के चलते यह इस समय घटकर मात्र 10-11 के करीब ही रह गए है।

ईदगाह आदि जगहों से बड़ी मात्रा में हुआ पेड़ों का कटान

यह चिंता का विषय है कि बेरों के बाकी बचे बाग आबादी के बीच में आ चुके है। नगर के मौहल्ला दगड़ा एवं ईदगाह आदि स्थानों से बेरियों का कटान व्यापक पैमाने पर हुआ है और यही वजह है कि देवबंद का दूर-दूर तक मशहूर बेर अब देवबंदी लोगों को भी थोड़े ही समय के लिए दिख पाता है और बाद में यह देवबंद में भी ढूढ़ने से भी नहीं मिल पाता है। इसकी भरपाई देवबंद के विक्रेता बाहर से मंगाए हुए बेरों से करते है लेकिन उन बेरों में वह स्वाद नहीं है जो देवबंद के मीठे बेरों में।

मीठे और स्वादिष्ट होने के कारण बेर को बहुत चाव से खाते हैं लोग

मीठे एवं स्वादिष्ठ देवबंदी बेर एक बार खाने के बाद लोग बार-बार बडे चांव के साथ खाते है। पर्यावरण,पक्षी एवं पेड़-पौधों से अत्यधिक प्रेम रखने वाले देवबंद नगर के मौहल्ला कानूनगोयान निवासी शशांक जैन एवं मोहल्ला छिम्पीवाड़ा के गौरव सिंघल ने देश के कृषि वैज्ञानिकों से इस ओर विशेष ध्यान देने की मांग करते हुए देवबंदी बेरों के बागों को बचाने की अपील की है।

जैन एवं सिंघल का कहना है कि सरकारी उपेक्षा के चलते देवबंदी बेर लुप्त होने के कगार पर है। उन्होने इसके लिए कृषि वैज्ञानिकों द्वारा इसके प्रति बरती जा रही उदासीनता पर नाराजगी जताते हुए इसके लिए उन्हें दोषी मानते है।

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