Women’s Day Special: 9 सालों में दो लाख महिलाओं को आत्म सुरक्षा के गुर सिखाकर मिसाल बनीं ऊषा

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आजादी के 75 साल बाद भी महिलाएं अपने अधिकारों से वंचित हैं लेकिन जिनके अंदर कुछ कर दिखाने का जुनून और जज्बा हो वह अपने अलावा दूसरे को भी आत्मनिर्भर बनाकर मिसाल कायम कर रहे हैं। इसका जीता-जागता उदाहरण राजधानी में रेड ब्रिगेड की संचालिका ऊषा विश्वकर्मा (33) एक हैं। फोर्ब्स ने दुनिया की 20 …

आजादी के 75 साल बाद भी महिलाएं अपने अधिकारों से वंचित हैं लेकिन जिनके अंदर कुछ कर दिखाने का जुनून और जज्बा हो वह अपने अलावा दूसरे को भी आत्मनिर्भर बनाकर मिसाल कायम कर रहे हैं। इसका जीता-जागता उदाहरण राजधानी में रेड ब्रिगेड की संचालिका ऊषा विश्वकर्मा (33) एक हैं। फोर्ब्स ने दुनिया की 20 सबसे शक्ति शाली महिलाओं में उनकी बेहतर कार्यों कारण जगह दिया है।

9 सालों बाद ऊषा ने दो लाख महिलाओं को आत्मसुरक्षा के गुर सिखाकर यह साबित कर दिया कि वह किसी से कम नहीं हैं। मनचलों का खुद डटकर सामना कर सबक सिखाने की क्षमता रखती हैं। आठ मार्च को महिला दिवस के उपलक्ष्य में अमृत विचार से खास बातचीत के दौरान उन्होंने बताया कि 29 सालों से वह लखनऊ में रह रहीं और 2011 से रेड ब्रिगेड संस्था का संचालन महिलाओं को विषम परिस्थितियों में अपनी सुरक्षा करने को लेकर कर रही हैं।

दरअसल, 2005 में 18 वर्ष में उनके साथ जबरदस्ती करने की वारदात को अंजाम देने की कोशिश हुई थी। घटना से वह अवसाद में चली गईं जिससे निकलने के बाद उन्होंने उस दौर में महिलाओं के लिए समाज में मानसिकता बहुत अच्छी नहीं थी। वर्तमान में 200 महिलाओं का रेड ब्रिगेड ग्रुप जबकि 35 ट्रेनर है, जो महिलाओं को आत्मरक्षा की ट्रेनिंग दे रहीं।

आरोपियों को भिजवाया जेल

उन्होंने बताया कि रेप की वारदात को अंजाम देने वालों को वह कभी भी माफ नहीं कर सकतीं। 2013 में एक नाबालिग (13) के साथ रेप का मामला मेरे पास पहुंचा। जिसके बाद आरोपियों को पकड़कर जेल भिजवाया और बच्ची को अपनी संस्था में जगह दी। वह मुझे बड़ी बहन मानती है और आज बच्ची की मां भी है।

आजादी के 75 साल बाद भी वही जिंदगी

उनका कहना है कि आजादी के 75 साल बाद भी महिलाओं की परिस्थितियों में सुधार न के बराबर ही हुआ है। कड़े कानून बेशक बनाए गए लेकिन क्रियान्वयन सही से नहीं हो रहा। आरोपी वारदात को अंजाम देने के बाद भी खुलेआम घूमते रहते हैं। सरकार से हमें किसी तरह की आर्थिक मदद की आवश्यकता नहीं है।

राष्ट्रपति पुरुस्कार से सम्मानित

महिलाओं के लिए अपना सबकुछ दांव पर लगा संघर्ष कर रहीं ऊषा 2016 में राष्ट्रपति पुरुस्कार से सम्मानित हो चुकी हैं। 2018 देवी अहिल्या और 2020 में फोर्ब्स ने 20 सबसे शक्तिशाली महिलाओं में जगह दी।

इसलिए संस्था का नाम रेड ब्रिगेड

ऊषा ने बताया कि संस्था की शुरुआत नुक्कड़ नाटक से शुरु की थी। जहां सभी महिलाओं का कहना था कि हमें एक जैसे दिखना चाहिए। जिसके बाद हमने तय किया की हम साल और काले रंग का सलवार सूट अपनी ड्रेस बनाएंगे। लाल का मतलब है संघर्ष और काले का मतलब है विरोध। महिला दिवस पर हर महिलाओं को यही संदेश है कि वह खुद को लाचार नहीं समझें यदि जुल्म हो तो काली का रूप धारण करें। रेड ब्रिगेड जैसी कई संस्थाए उनकी मदद को तैयार हैं।

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