रोमांचकारी है पिंडारी ग्लेशियर की यात्रा, यहां बरबस ही खींचे आते हैं सैलानी

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देवभूमि उत्तराखंड में प्रकृति के वरदान से भरी ऐसी तमाम जगहें हैं जहां देश-विदेश के सैलानी बरबस ही खींचे चले आते हैं। विकासखंड कपकोट के उत्तरी भाग में स्थित प्रसिद्ध पिंडारी ग्लेशियर की यात्रा साहसिक के साथ ही रोमांच से भरी है। यही वजह है कि इस ग्लेशियर की यात्रा करने के लिए देश-विदेश के …

देवभूमि उत्तराखंड में प्रकृति के वरदान से भरी ऐसी तमाम जगहें हैं जहां देश-विदेश के सैलानी बरबस ही खींचे चले आते हैं। विकासखंड कपकोट के उत्तरी भाग में स्थित प्रसिद्ध पिंडारी ग्लेशियर की यात्रा साहसिक के साथ ही रोमांच से भरी है। यही वजह है कि इस ग्लेशियर की यात्रा करने के लिए देश-विदेश के सैलानियों में आकर्षण बना रहता है।

समुद्र की सतह से 12500 फीट की ऊंचाई पर स्थित पिंडारी ग्लेशियर अत्यंत मनोहारी है। यहां पहुंचने के लिए पर्यटकों को वाहन के जरिये जिला मुख्यालय से 38 किमी दूर सोंग गांव फिर वहां से तीन किमी लोहारखेत जाना पड़ता है। इसके बाद धाकुड़ी की 11 किमी की कठिन पदयात्रा शुरू होती है। रात्रि विश्राम धाकुड़ी में करने के बाद दूसरे दिन पर्यटक करीब सात किमी पैदल दूर खाती पहुंचते हैं। इसके बाद वह 11 किमी की पैदल दूर द्वाली, अगले रोज पांच किमी फुरकिया पहुंचकर रात्रि विश्राम करते हैं।

पिंडारी ग्लेशियर का नयनाभिराम नजारा।

दूसरी सुबह वह सात किमी की पदयात्रा करके जीरो प्वाइंट पहुंचकर उन्हें पिंडारी ग्लेशियर के नयनाभिराम होते हैं। यहां पहुंचकर सैलानी मखमली घास में मस्ती करते हैं। हिमालय की विहंगम छटा के साथ ही मंद-मंद बहती पिंडर और मनमोहारी झरनों का भी खूब लुत्फ उठाते हैं। गर्मी का मौसम आते ही यहां रंग-बिरंगे फूल खिलने शुरू हो जाते हैं। ग्लेशियर मार्ग पर राज्य पुष्प बुरांश के फूलों की खूबसूरती यात्रा को और भी मनोरम बना देते हैं। इस उच्च हिमालयी क्षेत्र में कस्तूरी मृग, बारासिंघा, घुरल, कांकड़, तेंदुए, भालू, जंगली मुर्गियां समेत अनेक जानवर दिखाई देते हैं।

पिंडारी ग्लेशियर ट्रेक में जाते सैलानी।

इस ग्लेशियर की यात्रा मई के आखिरी सप्ताह से शुरू होकर जून के दूसरे सप्ताह तक होती है। इसके बाद बरसात का मौसम शुरू होने पर गधेरों को पार करना मुश्किल हो जाता है। सितंबर महीने में थोड़े समय के लिए ग्लेशियर की यात्रा होती है। बाद में बर्फबारी के कारण यात्रा नहीं हो पाती है। पर्यटकों के रात्रि विश्राम और भोजन के लिए लोनिवि और केएमवीएन के लोहारखेत, धाकुड़ी, खाती, द्वाली और फुरकिया में आवास गृह बने हैं।

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