उत्तराखंड: ओखलकांडा के इस गांव की 62 साल पुरानी ग्रीष्मकालीन रामलीला है बेहद खास, दूर-दूर से खिंचे चले आते हैं दर्शक
संजय पाठक, हल्द्वानी। होइहि सोइ जो राम रचि राखा, को करि तर्क बढ़ावै साखा… राम सिया राम सिया राम जै जै राम…. इन दिनों ओखलकांडा क्षेत्र के अधौड़ा डूंगरी गांव में कुछ इस तरह राम नाम की धूम मची है। बीते 62 साल से क्षेत्र के धर्मप्रेमीजन एकजुट होकर ग्रीष्मकालीन रामलीला का मंचन कर रहे …
संजय पाठक, हल्द्वानी। होइहि सोइ जो राम रचि राखा, को करि तर्क बढ़ावै साखा… राम सिया राम सिया राम जै जै राम…. इन दिनों ओखलकांडा क्षेत्र के अधौड़ा डूंगरी गांव में कुछ इस तरह राम नाम की धूम मची है। बीते 62 साल से क्षेत्र के धर्मप्रेमीजन एकजुट होकर ग्रीष्मकालीन रामलीला का मंचन कर रहे हैं।
शनिवार को नौंवे दिन अंगद-रावण संवाद की लीला का मंचन किया गया। यहां मंचन के दौरान रावण के रूप में पिता विष्णु शरण शर्मा और अंगद के रूप में बेटे रामू शर्मा के जीवंत अभिनय ने दर्शकों को भावविभोर कर दिया। पिछले 10 वर्षों से पिता-पुत्र की इस जोड़ी का अभिनय देखने के लिए दूर-दूर से लोग पहुंचते हैं। इसके साथ में क्षेत्र के खनस्यूं, डालकंडिया, मिडार समेत आसपास के गावों में भी इस समय रामलीला के मंचन से माहौल भक्तिरस से सराबोर है।
रामलीला कमेटी के अध्यक्ष बद्रीदत्त शर्मा बताते हैं कि 1960 में पहली बार रामलीला में लक्ष्मण शक्ति का एक अभिनय किया था। उस दौर में आर्थिक संसाधन न होने के कारण रामलीला का मंचन कराना सहज नहीं था। लेकिन इच्छाशक्ति और प्रभु राम की कृपा से लगातार रामलीला का मंचन होता रहा। ग्रीष्मकालीन रामलीला करवाने का उद्देश्य यह था कि पहाड़ के जो लोग नौकरी की वजह से मैदानी इलाकों में चले जाते हैं, वह गर्मियों की छुट्टियों में पहाड़ आकर अपनी धर्म- संस्कृति से रूबरू हो सकें। क्षेत्र निवासी योगेश भट्ट ने बताया कि हर 12 साल में रामलीला के दौरान लव-कुश कांड का मंचन किया जाता है। 2010 के बाद इस बार भी लव-कुश कांड के मंचन को लेकर धर्म प्रेमीजनों में उत्साह है।
