पुरी : महाप्रभु जगन्नाथ की भव्य रथयात्रा में सनातनी आस्था का सैलाब, जल, थल और नभ तक सुरक्षा का संजाल
महेश शर्मा अमृत विचार, पुरी। महाप्रभु जगन्नाथ की रथयात्रा शुक्रवार (एक जुलाई) को निकलेगी। सनातन धर्मियों की अटूट आस्था का तीर्थ ओडिशा पुरी धाम में महाप्रभु जगन्नाथ के भक्तों का सैलाब उमड़ पड़ा है। कोरोना के कारण दो वर्ष तक भक्तविहीन रथयात्रा सेवायतों और सुरक्षाबलों की सहायता से निकाली जाती रही ताकि परंपरा खंडित न …
महेश शर्मा
अमृत विचार, पुरी। महाप्रभु जगन्नाथ की रथयात्रा शुक्रवार (एक जुलाई) को निकलेगी। सनातन धर्मियों की अटूट आस्था का तीर्थ ओडिशा पुरी धाम में महाप्रभु जगन्नाथ के भक्तों का सैलाब उमड़ पड़ा है। कोरोना के कारण दो वर्ष तक भक्तविहीन रथयात्रा सेवायतों और सुरक्षाबलों की सहायता से निकाली जाती रही ताकि परंपरा खंडित न होने पाए। रथयात्रा पर रोक की याचिका सुप्रीमकोर्ट तक में थी जिसे खारिज करते हुए कोरोना प्रोटोकॉल का पालन करते हुए अनुमति दी गयी।
विश्व का सम्भवत: यह पहला महापर्व होगा जिसमें भगवान अपने भाई बहिन के साथ मन्दिर से निकलकर दर्शन देते हैं। हिंदी में दूरदर्शन पर 16 साल से लगातार रथयात्रा पर सजीव हिंदी कमेंट्री करने वाली नम्रता चड्ढा कहती हैं कि मन, बुद्धि, चित्त और अहंकार रूपी चार पहियों पर टिके आत्मा रूपी रथ पर परमात्मा रूपी महाप्रभु जगन्नाथ विराजमान होते हैं। श्रीमन्दिर प्रबंधन में सक्रिय वरिष्ठ पत्रकार जगन्नाथ बस्तिया का कहना है कि रथयात्रा का लौकिक पक्ष तो और भी विशाल है।
तीन स्तर की सुरक्षा व्यवस्था के साथ जगन्नाथ धाम करीब 10 लाख भक्तों के समागम के लिए पुख्ता इंतजाम के साथ तैया है। समुद्र में कोस्टगार्ड, जमीन पर भारी संख्या में सुरक्षाबल तथा आकाश में हेलीकाप्टर ड्रोन चक्कर लगाते रहेंगे। कोरोना के कारण दो साल बाद भक्तों को आने अवसर मिला है। दिनभर रथयात्रा मार्ग पर भजन कीर्तन होते रहे। झुंड बनाकर दुनिया कोने कोने से रथयात्रा को देखने के लिए आ रहे हैं। पुरी में 180 प्लाटुन पुलिस बल तैनात किए गए हैं।
इसमें 250 इंस्पेक्टर, 10 आईजी स्तर के अधिकारी, 200 एसपी तथा अतिरिक्त एसपी स्तर के अधिकारी जगन्नाथधाम की सुरक्षा पर नजर बनाए हुए हैं। कुल मिलाकर लगभग 10 हजार से ज्यादा पुलिस कर्मचारी तैनात किए गए हैं। विभिन्न जगहों पर 80 से ज्यादा सीसीटीवी कैमरे लगाए गए हैं।
सेवायतों का कहना है कि रथयात्रा के दिन शुक्रवार को तड़के चार बजे मंदिर का दरवाजा खोला जाएगा। सुबह छह बजे मंगल आरती, छह बजकर 10 मिनट पर मइलम यानी प्रभु का वस्त्र बदला जाएगा। सुबह साढ़े छह बजे तड़प लागी यानी भगवान को फुलों से सजाया जाएगा और रसोई शाला में रोष होम अर्थात हवन किया जाएगा। सात बजे अवकाश नीति होगी, जिसमें भगवान को मंत्र स्नान कराया जाएगा।
सात बजकर 10 बजे सूर्य पूजा, साढ़े सात बजे द्वारपाल पूजा किया जाएगा इसके बाद भगवान को पुन: पाट वस्त्र एवं फुल से सजाया जाएगा। इसके बाद सुबह आठ से नौ बजे के बीच गोपाल बल्लभ भोग लगाया जाएगा।
नौ बजे मंदिर के पुरोहित द्वारा विधि विधान एवं परंपरा के अनुसार तीनों रथ प्रतिष्ठा किया जाएगा। सवा नौ बजे मंगलार्पण होगा और फिर साढ़े नौ बजे से चतुर्धा विग्रहों की पहंडी बिजे शुरू होगी जो कि 12:30 बजे खत्म होगी। पहंडी बिजे खत्म होने के बाद 12:30 बजे भगवान के प्रतिनिधि मदन मोहन एवं राम-कृष्ण विराजमान होंगे। डेढ़ से ढाई बजे के अंदर भगवान को रथ के ऊपर सजाया जाएगा।
दो से तीन बजे के अन्दर गजपति महाराज तीनों रथ पर छेरापहंरा अर्थात सोने के झाड़ू से झाड़ू लगाएंगे। तीन बजे के बाद रथ में सारथी बिठाए जाएंगे इसके बाद चारमाल खोलकर घोड़ा लगाया जाएगा। एक रथ में चार घोड़ा के हिसाब से तीनों रथों कुल 12 घोड़े लगाए जाएंगे। चार बजे रथ खींचने की प्रक्रिया शुरू होगी।
जगन्नाथ के भात को सभी पसारे हाथ
महाप्रभु जगन्नाथ के भोग महाप्रसाद कहते हैं। लोकमान्यता है मि उन्मी रसोई दुनिया में सबसे निराली है जिसमे प्रसाद कभी कम नहीं पड़ता। मिट्टी के बर्तनों पर चूल्हों पर बनाया जाता है। चूल्हे पर एक के ऊपर एक सात पात्र रखे जाते हैं। सबसे ऊपर वाले बर्तन की सामग्री सबसे पहले पकती है।
खास बातें
-तीनों रथों में कील या किसी भी धातु का प्रयोग नहीं किया जाता है। लकड़ी काचयन बसंत पंचमी के दिन होता है तथा निर्माण अक्षय तृतीया के दिन से शुरू होता है।
– इन रथों में रंगों की भी विशेष ध्यान दिया जाता है। 3-पुरी के भगवान जगन्नाथ के रथ में कुल 16 पहिये होते हैं। भगवान जगन्नाथ का रथ लाल और पीले रंग का होता है और यह अन्य दो रथों से थोड़ा बड़ा भी होता है। 4-भगवान जगन्नाथ का रथ सबसे पीछे चलता है पहले बलभद्र फिर सुभद्रा का रथ होता है।
-महाप्रभु जगन्नाथ के रथ को नंदीघोष, बलराम के रथ का नाम ताल ध्वज और सुभद्रा के रथ का नाम दर्पदलन रथ है।
-महाप्रभु जगन्नाथ को हमेशा एक ही कुएं के पानी से 108 घड़ों में पानी से स्नान कराया जाता है।
-आषाढ़ माह शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को नए बनाए हुए रथ में यात्रा में भगवान जगन्नाथ,बलभद्र और सुभद्रा जी नगर का भ्रमण करते हुए जगन्नाथ मंदिर से जनकपुर के गुंडीचा मंदिर पहुंचते हैं।
गुंडीचा मंदिर भगवान जगन्नाथ की मौसी का घर है। यहां पहुंचकर विधि-विधान से तीनों मूर्तियों को उतारा जाता है। फिर मौसी के घर स्थापित कर दिया जाता है।
-भगवान जगन्नाथ अपनी मौसी के घर पर सात दिनों तक रहते हैं। फिर आठवें दिन आषाढ़ शुक्ल दशमी पर रथों की वापसी होती है। इसे बहुड़ा यात्रा कहा जाता है।
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