लखनऊ : प्रो. विनय पाठक प्रकरण को टेकओवर करेगी सीबीआई!

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Published By Vinay Shukla
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राज्य सरकार की सिफारिश के बाद उठने लगे सवाल, आयुष कालेजों के दाखिले में घोटाला प्रकरण जैसा हश्र तो नहीं होगा

अमृत विचार, लखनऊ कानपुर विश्वविद्यालय के कुलपति विनय पाठक के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामलों की जांच सीबीआई से कराने की राज्य सरकार द्वारा सिफारिश किए जाने की बाबत हालांकि गृह विभाग के अफसर कुछ नहीं बोल रहे हैं, लेकिन एसटीएफ के सूत्र इसकी पुष्टि कर रहे हैं।

इसके साथ ही एक बार फिर यह सवाल उमड़ने-घुमड़ने लगा है कि क्या सीबीआई यह केस टेकओवर करेगी? आयुष कालेजों के दाखिले में घोटाला प्रकरण समेत कई अन्य प्रकरणों का हश्र इस सवाल को मजबूत आधार दे रहा है।

यूं ही नहीं उठ रहे हैं सवाल

प्रो. विनय पाठक मामले की सीबीआई द्वारा जांच टेकओवर किए जाने पर सवाल यूं ही नहीं उठ रहे हैं। जिन वजहों से सीबीआई ने पूर्व के कुछ मामलों को अपने हाथ में लेने से मना किया था, प्रो. पाठक का मामला भी कमोबेश उसी तरह का है। प्रो. पाठक पर शुरुआती दिनों में ठेके में कमीशन लेने का आरोप लगा था।

इस पर उनके खिलाफ मुकदमा दर्ज हुआ। बाद में इस मामलों की जांच एसटीएफ को दी गई थी। उसके बाद से ही वह अपना काम पूरी ऊर्जा के साथ निर्बाध गति से कर रही है। प्रो. पाठक के कई करीबियों को सलाखों के पीछे भी भेज चुकी है। उससे पहले उन सभी से पूछताछ में पाठक से जुड़े कमोबेश सारेराज जान लिया है।

इसके साथ ही प्रो. पाठक के खिलाफ भ्रष्टाचार के ढेर सारे पुख्ता सबूत भी जुटा लिए हैं। एक दर्जन से अधिक लोगों ने पूछताछ में प्रो. पाठक के काले कारनामों का ब्यौरा भी एसटीएफ को दिया है। सूत्रों के मुताबिक इस मामले में अभी तक कोई पेचिंदगी सामने नहीं आयी है।

एसटीएफ के सामने सिर्फ एक दिक्कत रही है, वह यह कि कई बार की नोटिस के बाद भी प्रो. पाठक पूछताछ के लिए उसके पास नहीं आये और ही वह कहां हैं इसकी जानकारी एसटीएफ को दे रहे हैं। एसटीएफ सूत्रों के मुताबिक इस बीच प्रो. पाठक विश्वविद्यालय का संचालन कर रहे हैं। विभागाध्यक्षों को इंटरनेट के माध्यम से अवकाश भी दे रहे हैं। ऐसे में सीबीआई द्वारा केस हाथ में लेने पर जानकार संशय जाहिर कर रहे हैं।

प्रदेश सरकार की सिफारिश पर दिलचस्पी नहीं ले रही सीबीआई

आयुष कालेजों के दाखिले में घोटाले की जांच सीबीआई से कराने के लिए राज्य सरकार ने तकरीबन दो माह पहले ही सिफारिशी पत्र केंद्र सरकार को भेजा था, लेकिन सीबीआई ने अभी तक इस मामले को हाथ में नहीं लिया है। सूत्रों के मुताबिक सीबीआई ने जांच करने से ही मना कर दिया है। इसी तरह दिल्ली-सहारनपुर हाइवे के तकरीबन 455 करोड़ घोटाले के मामले को जांच लायक ही नहीं मानते हुए लौटा दिया गया था। वह भी तब जब इस मामले में यूपी सरकार की ओर से दो बार पत्र भेजा गया था।

यूपी को-आपरेटिव शुगर फैक्ट्री फेडरेशन के एमडी के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामले में सिफारिश के तकरीबन चार साल बाद प्रारम्भिक जांच शुरू हुई थी। गोरखपुर में व्यवसायी मनीष गुप्त हत्याकांड की सीबीआई जांच तो अदालत के हस्तक्षेप के बाद ही शुरू हो पायी थी। इससे यह स्पष्ट होता है कि प्रदेश सरकार की सिफारिश पर सीबीआई बहुत दिलचस्पी नहीं ले रही है।

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