पृथ्वी की है एक चुंबकीय पूंछ 

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Published By Anjali Singh
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सुनकर अजीब लगता है कि पृथ्वी की एक पूंछ भी है और यह बहुत लंबी है। यह चुंबकीय पूंछ अंतरिक्ष में  20 लाख किलोमीटर लंबबाई में फैली हुई है। यह पूंछ नंगी आंखों से दिखाई नहीं देती, लेकिन अंतरिक्ष में घूमने वाले हमारे उपग्रह और दूरबीन इसे देख सकते हैं। सौर मंडल में हमारी पृथ्वी ब्रह्मांडीय वातावरण की ताकतों के साथ कैसी अपना अस्तित्व कायम रखती , यह पूंछ के बारे में वैज्ञानिक जानकारी जुटाने से मालूम होता है। पृथ्वी का चुंबकीय क्षेत्र या मैग्नेटोस्फीयर एक कुदरती फिनॉमिना है, जो हमारे लिए एक अदृश्य ढाल है, जो हमें कॉस्मिक और गामा किरणों के अलावा एक्स-रेज के प्रभाव और सौर-तूफानों से बचाता है। इस चुंबकीय क्षेत्र के परिणामस्वरूप पृथ्वी के उत्तरी अक्षांशों में नीली-पीली रौशनी अर्थात ऑरोरा दिखने की शानदार ब्रह्मांडीय घटनाएं होती हैं। 

पृथ्वी के मैग्नेटोस्फीयर

मैग्नेटोस्फीयर पृथ्वी के बाहरी कोर के अंदर पिघली हुई धातुओं की गति, अर्थात डायनामिक्स ऑफ अर्थ्स मैटेलिक कोर के कारण बनता है। यह चुंबकीय क्षेत्र सूर्य की सतह के नीचे मौजूद प्लाज्मा से बाहर की तरफ तेज आंधी के तरह निकलने वाले आवेशित ऊर्जा कणों सोलर कोरोनल मॉस इजेक्शन को फंसाता और निर्देशित करता है। पृथ्वी का अपना एक चुंबकीय क्षेत्र है, यह अच्छी तरह से ज्ञात है, लेकिन इस बाबत पूरे तौर से मालूम नहीं कि हमारे ग्रह और चुंबकीय क्षेत्र का रिश्ता कितना गहरा है और यह पूंछ की शक्ल में क्यों दिखाई देता है। इसकी वास्तविकता अब उन्नत अंतरिक्ष अन्वेषी उपकरणों द्वारा इसे देखे और दर्ज किए जाने के बाद ही मालूम हुई। अब यह अनेक खगोल विज्ञानियों का ध्यान आकर्षित कर रही है ताकि इसकी प्रकृति और भूमिका के बारे में अधिक तथ्य जुटाए जा सकें।  

धूमकेतु या अन्य खगोलीय पिंडों पर देखी जाने वाली पूंछों के विपरीत, पृथ्वी की पूंछ अदृश्य और बहुत कम स्पष्ट है। यह पूंछ प्लाज्मा से बनी है, जो चार्ज कणों से बनी एक गैस है और जिसे मैग्नेटोस्फीयर पकड़ लेता है। जैसे ही सौर विकिरण या पवन पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र से टकराता है वे इस पृथ्वी के पिघले हुए मैटेलिक कोर प्लाज्मा को पीछे धकेलती हैं। इसी के प्रभाव से एक पूंछ बनती है, जो लाखों किलोमीटर तक खिंच जाती है। पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र और सौर हवा के बीच इंटरैक्शन का के परिणाम को हम एक बूंद की उपमा से समझ सकते हैं। सौर हवा पृथ्वी के मैग्नेटोस्फीयर को एक आंसू के आकार में बदल देती है, जिसकी पूंछ पीछे की ओर फैली होती है। इससे अंतरिक्ष में एक जटिल और गतिशील संरचना बनती है, जोकि बहुत सुंदर दिखती है। इस विशाल संरचना को औपचारिक रूप से मैग्नेटोटेल नाम दिया गया है। यह पूंछ पृथ्वी ग्रह के वायुमंडल से बहुत दूर तक फैला हुआ है। यह स्थिर भी नहीं है और सौर-पवन की तीव्रता और दिशा परिवर्तन की वजह से लहराता भी है। अर्थात सौर हवाओं की ताकत के आधार पर यह पूंछ अपना आकार बदलती है। सौर हवा सूर्य से निकलने वाले चार्ज्ड कणों का एक निरंतर प्रवाह है, जोकि कभी तेज, कभी बहुत तेज और कभी अत्यंत प्रबल हो जाता है। जब ये कण पृथ्वी के मैग्नेटोस्फीयर के साथ इंटरैक्ट करते हैं, तो वे उतार-चढ़ाव पैदा करते हैं, जिसके परिणाम स्वरूप मैग्नेटोटेल खिंचता और सिकुड़ता है। जब सौर गतिविधि विशेष रूप से तीव्र होती है, जैसे कि सौर ज्वालाओं या कोरोनल मास इंजेक्शन के दौरान, तो मैग्नेटोटेल में काफी बदलाव हो सकता है। दशकों के अंतरिक्ष अन्वेषण के बावजूद, मैग्नेटोटेल की वास्तविक प्रकृति हमारे ग्रह की अंतरिक्ष के साथ सक्रिय होने के अनजान और रहस्यमय पहलुओं में से एक है। 

मैग्नेटोटेल की वास्तविक प्रकृति अनजान और रहस्यमय 

जब सोलर एक्टिविटी ज्यादा होती है, जैसे कि सोलर फ्लेयर्स के समय, तो पूंछ में बहुत ज्यादा बदलाव आ सकता है और इससे सैटेलाइट ऑपरेशन, कम्युनिकेशन और यहां तक कि पृथ्वी पर पावर ग्रिड भी प्रभावित हो सकते हैं। मैग्नेटोटेल और सोलर हवा के इंटरैक्शन की डायनामिक्स को समझना स्पेस वेदर का अनुमान लगाने और आधुनिक टेक्नोलॉजिकल सिस्टम को बचाने के लिए बहुत जरूरी है। पूंछ में प्लाज्मा पृथ्वी के रात वाले हिस्से से एक वापसी पैटर्न में सूर्या की तरफ बहता है, जिससे यह अंतरिक्ष में कणों की बहती नदी जैसा दिखता है। प्लाज्मा का सूर्य की ओर वापस प्रवाह एक जटिल प्रणाली का सिर्फ एक हिस्सा है और वैज्ञानिकों का मानना है कि यह पृथ्वी और सूर्य की शक्तियों के बीच संतुलन बनाए रखने में भूमिका निभाता है।

हालांकि मैग्नेटोटेल सीधे पृथ्वी पर जीवन को प्रभावित नहीं करता है, लेकिन यह हमारे ग्रह के आसपास के व्यापक अंतरिक्ष परिवेश पर गहरा प्रभाव डालता है। असल में पृथ्वी की मैग्नेटो-शील्ड ही पृथ्वी को नुकसानदायक सौर और कॉस्मिक रेडिएशन से बचाकर धरती पर जीवन को फलने-फूलने देती है। स्पेस वेदर में मैग्नेटोटेल की एक महत्वपूर्ण भूमिका होने का अनुमान है। अभी जोर इस बात पर है कि पृथ्वी की मैग्नेटोटेल की मैपिंग की जाए। इस पूरी स्थिति को लेबोरेटरी में दोहराया गया है। इस तरीके को सिमुलेशन कहते हैं, जिसके नतीजे हमें यह समझने में मदद करते हैं कि मैग्नेटोटेल इन सौर हवा के बदलावों पर कैसे और कितनी तेजी से प्रतिक्रिया करती है। अमेरिका में गोडार्ड स्पेस फ्लाइट सेंटर के कम्युनिटी कोऑर्डिनेटेड मॉडलिंग सेंटर में सौर हवा और पृथ्वी के मैग्नेटोस्फीयर के इंटरैक्शन के लिए मिशिगन विश्वविद्यालय के बीएटीएस-आर-यूएस ग्लोबल मैग्नेटो-हाइड्रोडायनामिक मॉडल को उपर्युक्त सिमुलेशन स्टडी के लिए इस्तेमाल किया गया है। दूर के मैग्नेटोटेल के आकार से जुड़े एक लंबे समय से चले आ रहे सवाल को हल करने के अलावा, सिमुलेशन अध्ययन दिखाता है कि सौर हवा में बदलाव के प्रति इसकी प्रतिक्रिया बहुत तेज होती है। चूंकि मैग्नेटोटेल को नए कॉन्फ़िगरेशन में बदलने में एक या ज़्यादा घंटे लगेंगे, इसलिए 10-15 मिनट की प्रतिक्रिया में कोई दूसरी, तेज प्रक्रिया शामिल होनी चाहिए। परिणाम बताते हैं कि यह प्रक्रिया पृथ्वी के डे-साइड मैग्नेटोपॉज पर मैग्नेटिक रिकनेक्शन है। सौर हवा का प्रवाह नए सिरे से जुड़े इंटरप्लेनेटरी और मैग्नेटोस्फेरिक मैग्नेटिक फील्ड लाइनों को सूर्य से दूर ले जाता है और उन्हें तुरंत मैग्नेटोटेल स्थानों पर जमा कर देता है, जो इनिशियल मॉस फंक्शन ओरिएंटेशन पर निर्भर करते हैं। नतीजतन, मैग्नेटोटेल के आकार, आकृति और संरचना पर भविष्य का काम दूर, डेसाइड मैग्नेटोपॉज पर रिकनेक्शन की प्रकृति के बारे में महत्वपूर्ण सुराग भी प्रदान कर सकता है। इनिशियल मास फंक्शन तारों के बनने के समय उनकी आबादी के लिए द्रव्यमान के डिस्ट्रीब्यूशन का वर्णन करता है, जो तारे बनने और गैलेक्सी के विकास को समझने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इनिशियल मास फंक्शन एक अनुभवजन्य फंक्शन है, जो किसी दिए गए क्षेत्र में बने तारों के द्रव्यमान के शुरुआती डिस्ट्रीब्यूशन को दिखाता है। इसे आमतौर पर एक प्रोबेबिलिटी डेंसिटी फंक्शन के रूप में व्यक्त किया जाता है, जो तारे के बनने के दौरान एक विशिष्ट द्रव्यमान होने की संभावना को बताता है। इनिशियल मास फंक्शन खगोलविदों के लिए जरूरी है, क्योंकि यह अलग-अलग तारों के बनने और विकास को गैलेक्सी बनने और विकास के व्यापक संदर्भ से जोड़ने में मदद करता है। रणबीर सिंह, लेखक