बरेली: इज्जतनगर रेलवे स्टेशन की मजार का इतिहास, अंग्रेजों ने की थी हटाने की नाकाम कोशिश!
बरेली, अमृत विचार। इज्जतनगर रेलवे स्टेशन पर स्थित सूफी संत सय्यद नन्हें शाह मियां की मजार सदियों पुरानी बताई जाती है। इस मजार पर मुस्लिम ही नहीं हिंन्दू समेत सभी धर्मों के लोग भी अपनी आस्था रखतें है।
बीते दिनों मजार को हटाए जाने की खबरें सामने आई थीं। जिसमें रेलवे प्रशासन ने मजार को हटाने का नोटिस चस्पा किया था। जब यह मामला कोर्ट तक पहुंचा तो रेल प्रशासन ने कार्रवाई से अपने हाथ खींच लिए।

आखिर क्या है सूफी संत सय्यद नन्हें शाह मियां की मजार का इतिहास?
सूफी संत की मजार से जुड़ा एक किस्सा बहुत प्रचलित है। यह बात तब की है जब भारत देश गुलामी की जंजीरों से जकड़ा हुआ था। भारत में ब्रिटिश सरकार ने कोलकाता, दिल्ली और इलाहाबाद जाने के लिए ट्रेन चलाने का फैसला किया।
जब रेल लाइन डालने का काम शुरू हो गया तो कुछ दूर तक रेल लाइन बिछाने के बाद रेल लाइन के बीच में एक मजार आ गई। अंग्रेजों ने मजार को हटाकर रेलवे लाइन डालने का मैप तैयार कर लिया।
दिन में रेलवे लाइन डालते, रात में अपने आप हट जाती
शहर के बुजुर्गों का कहना है उस वक्त यहां जंगल हुआ करता था, जहां सैयद नन्हें शाह की मजार बनी हुई है। इस जंगल से होते हुए अंग्रेजी सरकार रेल लाइन डालना चाहती थी।
ताकि यहां से ट्रेनें आ जा सकें। प्रतिदिन अंग्रेज अफसर मजार के पहले तक रेल लाइन डलवाते थे और अगली सुबह रेल लाइन अपनी जगह से हटी जाया करती थी। यह सिलसिला कई दिनों तक चला। इससे ब्रिटिश हुकूमत के अधिकारी परेशान हो गए। उनको शक हुआ कि रात में कोई आकर ट्रैक को हटा देता है।

मजार के पास लगाई गई अंग्रेज सिपाही की ड्यूटी
इसके बाद अंग्रेज सिपाहियों की यहां ड्यूटी लगा दी गई। उसके बाद रात में अंग्रेजी फौज की आंखों के सामने बाबा की मजार के पीछे वाली रेल लाइन अपने आप हटने लगी। अंग्रेज सिपाहियों ने अपने अफसरों को इस बात की जानकारी दी तो उन्हें विश्वास नहीं हुआ।
अगले दिन अफसर रात में खुद वहां पहुंचे। उनके सामने भी यही रहस्यमयी घटना हुई। मजार के पीछे वाली रेल लाइन अपने आप हटने लगी। बहुत कोशिशों के बाद भी अंग्रेज कुछ ना कर सके तो ब्रिटिश हुकूमत ने रेल लाइन के मैप में बदलाव करने का फैसला किया और रेल लाइन का रूट बदला गया। यह मजार स्टेशन पर अप-डाउन लाइन की दो रेल पटरी के बीच में था। जो अब प्लेटफार्म पर आ गया है।

मजार को हटाने का किया गया प्रयास
अंग्रेजों द्वारा पहाड़ से मैदानी इलाकों को जोड़कर रेलवे ट्रैक बिछाने का कार्य 1875 में शुरू हुआ था। अंग्रेजी हुकूमत जाने के बाद इज्जत नगर रेल मंडल में 14 अप्रैल, 1952 को भारत सरकार के जीएम और डीआरएम स्टेशन पर आए।
बताया जाता है कि उन्होंने भी मजार को हटाने की भरपूर कोशिश की, लेकिन वो भी इसमें कामयाब नहीं हो पाए। उनके साथ भी कुछ रहस्यमयी घटनाएं हुईं। इसके बाद उन्होंने भी मजार को हटाने से मना कर दिया। उसके बाद स्टेशन का रेल ट्रैक मीटरगेज से ब्रॉडगेज में परिवर्तित हुआ। इस दौरान भी मजार को हटाने का प्रयास किया गया, लेकिन फिर रेल प्रशासन ने अचानक यह इरादा छोड़ दिया।
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