NMCG, पतंजलि गंगा के तटीय क्षेत्रों में वनस्पति, मिट्टी, पानी की गुणवत्ता, प्रभाव का करेंगे आकलन

Amrit Vichar Network
Published By Ashpreet
On

नई दिल्ली। राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन और पतंजलि अनुसंधान संस्थान (पीआरआई) एवं पतंजलि जैविक अनुसंधन संस्थान (पीओआरआई) मिलकर, गंगा नदी के तटों के पास संरक्षण और क्षेत्र के आर्थिक विकास कार्य एवं कौशल कार्यक्रमों के जरिये पुष्प विविधता के वैज्ञानिक अन्वेषण की परियोजना पर कार्य करेंगे।

राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (एनएमसीजी) की कार्यकारिणी समिति की हाल ही में हुई 46वीं बैठक में इस परियोजना को मंजूरी दी गई। बैठक के दस्तावेज के अनुसार, 18 महीने की इस परियोजना की अनुमानित लागत 4,32,36,107 रूपये है।

परियोजना लागत में एनएमसीजी की हिस्सेदारी 2,41,50,545 रूपये (56 प्रतिशत) और पीओआरआई की हिस्सेदारी 1,90,85,562 रूपये (44 प्रतिशत) है। बैठक में एनएमसीजी के महानिदेशक जी अशोक कुमार ने कहा कि इस परियोजना के परिणामों से अर्थ गंगा को मदद मिलने की उम्मीद है तथा इससे स्थानीय समुदायों की आजीविका के आयामों में वृद्धि होगी एवं प्राकृतिक खेती को बढ़ावा मिलेगा।

इस परियोजना का मकसद गंगा तटीय क्षेत्रों में पादप रसायन विश्लेषण, वनस्पति सर्वेक्षण, पौधारोपण के अलावा जीव एवं वनस्पतियों पर शोध एवं दस्तावेजीकरण और वाणिज्यिक संभावनाओं का आकलन करना है।

चुनिंदा औषधीय पौधों एवं प्रजातियों के औषधीय लाभ एवं वाणिज्यिक स्तर पर उपयोग की संभावनाओं को लेकर भी रासायनिक विश्लेषण किया जायेगा। पादप रसायन विविधता को समझने के लिये पौधों एवं सूक्ष्मजीवों की सहजीविता पर ध्यान दिया जायेगा। चुनिंदा क्षेत्रों में जल एवं मिट्टी की गुणवत्ता के मानदंडों की भी जांच की जायेगी ताकि प्रदूषण के स्तर और वनस्पति विविधता को समझा जा सके।

इसके तहत आर्थिक रूप से महत्वपूर्ण कुछ पौधों की प्रजातियों के औषधीय गुणों का पता भी लगाया जायेग। इस परियोजना में किसान, पारंपरिक चिकित्सकों जैसे हितधारकों का प्रशिक्षण और कौशल विकास किया जायेगा तथा मिट्टी और पानी की गुणवत्ता, मृदा सूक्ष्म जीव परस्पर क्रिया और इसका प्रभाव, औषधीय पौधों की किस्में और औषधीय गुणों की खोज पर ध्यान दिया जायेगा।

इसमें कहा गया है कि भारत में पादप विविधता की खोज, भंडारण और दस्तावेजीकरण का कार्य बॉटेनिकल सर्वे ऑफ इंडिया (बीएसआई) करता है । ऐसे में पतंजलि को बीएसआई के पास उपलब्ध सूचना का उपयोग करना चाहिए ताकि पुनरावृति से बचा जा सके।

ये भी पढ़ें : महाराष्ट्र के पेंच बाघ अभयारण्य में सर्वेक्षण के दौरान मिली पक्षियों की 226 प्रजातियां 

संबंधित समाचार