अल्मोड़ा: ग्रामीण क्षेत्रों में जीवंत है ओखल कूटने की परंपरा
शुभ कार्यों के लिए धान कूटकर निकाले जाते हैं चावल
रमेश जड़ौत/अल्मोड़ा, अमृत विचार। विज्ञान और प्रौद्योगिकी के इस युग में भले ही आज हम आगे क्यों ना निकल गए हों और हमारी प्रगति के साथ साथ हमारी परंपराएं भी क्यों ना बदली हों। लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी इन परंपराओं को निर्बाध गति से आगे बढ़ाने का काम हो रहा है। इन्हीं परंपरंपराओं में एक है ओखल कूटने की परंपरा।

ओखल कूटने की परंपरा सदियों पुरानी है। इस परंपरा के तहत ग्रामीण क्षेत्रों के लोग अपने घरों में कोई भी शुभ कार्य होने से पहले अपने खेतों में उगाए गए धान को अपने घरों के बाहर बनी ओखली में कूटकर उससे चावल निकालते हैं। इस कार्य को महिलाएं करती हैं। धान को कूटने के लिए बांज की लकड़ी से बनाए गए मूसल को प्रयोग किया जाता है। जिसकी लंबाई दो से ढाई मीटर होती है। मूसल के नीचे लोहे का एक छल्ला लगाकर उसे रंगोली से सजाया भी जाता है।

ओखल में धान कूटकर निकाले गए चावल को ही नौ ग्रहों की पूजा और पुरोहित को आबदेब दिए जाने के लिए प्रयोग किया जाता है। परंपरा के अनुसार पूर्व में जिन क्षेत्रों में धान नहीं होते थे। वहां के लोग ग्रामीण क्षेत्रों से ओखल में कूटकर इन चावलों को मंगाते थे और शुभ कार्यों में इन्हीं का प्रयोग भी करते थे।

क्योंकि इस चावल में लक्ष्मी का वास माना जाता है। लेकिन समय के साथ परंपराएं बदली और जगह जगह मशीनें लगी तो खासकर नगरीय क्षेत्रों के लोग इस परंपरा से विमुख होते चले गए। लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों के लोगों ने आज भी इस परंपरा को सामूहिक रूप से जीवंत बनाए रखा है और वह आज भी इसका निर्वहन कर रहे हैं।
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