प्लास्टिक की समस्या
दुनिया में प्रदूषण की बढ़ती समस्या मानव की महत्वाकांक्षाओं का परिणाम है। प्रदूषण की समस्या दिनों-दिन बढ़ रही है। इसमें प्लास्टिक भी एक समस्या है जो सबसे अधिक चिंताजनक है। इसके कारण पानी से लेकर हवा और भूमि सभी प्रदूषित होते हैं। पिछले दिनों जल व जमीन के लिए मुसीबत बने प्लास्टिक के कचरे से बनी जैकेट पहनकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी संसद में गए।
प्रधानमंत्री ने जैकेट पहनकर प्लास्टिक के पुनर्चक्रीकरण को बढ़ावा देने के साथ पर्यावरण संरक्षण की दिशा में एकजुट होकर काम करने का संदेश दिया। दुनिया भर में प्लास्टिक की बोतलों और इससे निर्मित पदार्थों की खपत सबसे अधिक है। ध्यान रहे दुनिया में हर मिनट में लगभग एक मिलियन प्लास्टिक की बोतलें बेची जाती हैं, जबकि इनका सिर्फ 14 प्रतिशत ही रिसाइकिल हो पाता है, शेष को समुद्र में फेंक दिया जाता है जिससे उत्पन्न होने वाले प्रदूषण से न केवल समुद्री जीवों को हानि पहुंचती है बल्कि समुद्री भोजन का सेवन करने वाले लोगों पर भी इसका नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
प्लास्टिक की बोतलें ही केवल समस्या नहीं हैं, बल्कि प्लास्टिक के कुछ छोटे रूप भी हैं, जिन्हें माइक्रोबिड्स कहा जाता है। इनका इस्तेमाल सौंदर्य उत्पादों तथा अन्य क्षेत्रों में किया जाता है। ये बेहद खतरनाक तत्व होते हैं। भारतीय मानक ब्यूरो ने हाल ही में जैव रूप से अपघटित न होने वाले माइक्रोबिड्स को उपभोक्ता उत्पादों में उपयोग के लिए असुरक्षित बताया है।
इस समस्या की गंभीरता को समझते हुए इस संदर्भ में वैश्विक स्तर पर जागरुकता फैलाई जा रही है। साथ ही इसके समाधान हेतु नए-नए विकल्पों की भी खोज की जा रही है। अब इस्तेमाल करने के बाद फेंकी गई प्लास्टिक की बोतलों को पुनर्चक्रित कर इससे पेट यार्न बनाए जा रहे हैं। इनसे बने वस्त्र पर्यावरण को सुरक्षा प्रदान करने वाले होते हैं।
पुनर्चक्रण उद्योग रोजगार पैदा करता है और आर्थिक विकास को प्रोत्साहित करता है। यह वेस्ट मैनेजमेंट की लागत को भी कम कर देता है। रिसाइकिल कपड़ों के माध्यम से लोग पृथ्वी को बचाने को लेकर अपनी प्रतिबद्धता जताते हैं। पर्यावरण के अनुकूल उत्पादों की मांग करने वाले उपभोक्ताओं का रुझान इनकी तरफ बढ़ रहा है।
धीरे-धीरे इससे बने उत्पाद की बाजारों में मांग बढ़ रही है। फिर भी हमें इस दिशा में और अधिक गंभीरता के साथ कार्य करने की आवश्यकता है। प्लास्टिक कचरे के पुनर्चक्रीकरण के बारे में गंभीरता से सोचना होगा और व्यक्तिगत रूप से भी अपनी जिम्मेदारी का निर्वाह करना पड़ेगा, तभी यह धरती सुरक्षित रह सकती है।
