अल्मोड़ा: पहाड़ के किसानों के चेहरे पर चिंता की लकीरें 

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Published By Shweta Kalakoti
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मौसम में बदलाव, बारिश का संतुलन गड़बड़ाने से बिगड़ी स्थिति 

अल्मोड़ा, अमृत विचार। मौसम की बेरुखी का सबसे अधिक असर इस बार रबी की फसल पर देखने को मिला है। पर्याप्त बारिश और बर्फबारी न होने से खेतों को नमी नहीं मिल पाई। जिस कारण रबी की फसल लगभग बर्बाद हो गई है, जिस कारण अभी से किसानों के चेहरे पर चिंता की लकीरें दिखने लगी हैं। 

कुमाऊं के चार जनपदों की बात करें तो यहां अल्मोड़ा में करीब 43 हजार, बागेश्वर में 15 हजार पांच सौ, पिथौरागढ़ में 27 हजार और चम्पावत में 10 हजार चार सौ हेक्टेयर में गेहूं की खेती की जाती है। इसके अलावा यहां के किसान जौ, चना, मटर, मसूर, सरसों, अलसी और आलू का उत्पादन भी करते हैं।

अक्टूबर से शुरू होने वाली रबी की खेती अप्रैल तक की जाती है। लेकिन इस बार यहां दस अक्टूबर के बाद से बारिश ही नहीं हुई और रबी की फसलें उगने से पहले ही चौपट हो गई। रबी की फसलों के लिए यहां करीब 342 एमएम पानी की जरूरत होती है। लेकिन इस बार यहां केवल 50-60 एमएम वर्षा से स्थिति बेहद विकट हो चुकी है जिस कारण यहां के किसानों के चेहरे पर चिंता की लकीरें खिंचना लाजमी है। 

दरअसल मैदानी भू-भाग में 99 प्रतिशत कृषि भूमि सिंचित है लेकिन पहाड़ी जिलों में आठ से दस प्रतिशत क्षेत्रफल ही सिंचित है जबकि शेष खेती पूर्ण रूप से वर्षा आधारित है। ऐसे में यहां के छोटी जोत के किसानों को सिंचाई की सुविधा न मिल पाने के कारण उनकी भूमि का अधिकांश हिस्सा बंजर हो गया है।

विषम परिस्थितियों में जहां किसान खेती कर भी रहे थे, वहां इस बार मौसम की मार ने उनकी बची-खुची उम्मीदों पर भी पानी फेर दिया है। कुमाऊं के इन चारों जिलों की बात करें तो इस बार करीब तीन लाख से अधिक किसान मौसम की इस मार का शिकार हो सकते हैं।